Thursday 28 February 2019

देशप्रेम

देशप्रेम की अलख जगी है
गली गली चौबारे पे
भूल चुके तो याद दिला दूँ
कितनी बारी हारे थे

युद्ध कहो तो कह लो पर ये
बदला वीर जवानों का
अभी कहाँ देखा है तुमने
करतब इन विमानों का

कबर नही खुद पायेगी अब
गोलों में दग जाना होगा
इतनी बारिश होगी बम की
गम पीना बम खाना होगा

तुम्हे बड़ा ही शौक चढ़ा था
आतंकी मंसूबे थे
मानवता को आग लगाने
तुम घाटी में कूदे थे

अब घाटी की माटी से
अंगार बना हथगोला है
तेरे छदम इरादों का अब
पोल हिन्द ने खोला है

थू थू विश्व जगत मे तेरी
हर कोई गरियाता है
फिर भी ओछी हरकत से
तू बाज नही क्यों आता है

पुलवामा के जरिये तूने
मौत को दावत दे दी है
भूल गये बेटा गद्दी पर
बैठा अपना मोदी है

तुमको तो अधिकार नही है
एकपल भी अब जीने का
कहर अभी बरसेगा तुमपर
छप्पन इंची सीने के

कविराज तरुण
9451348935

Tuesday 26 February 2019

शहीद की पत्नी की व्यथा

हमारे ब्याह की बातें सभी क्या याद हैं शोना
पकड़के हाथ बोला था जुदा हमको नही होना

चले थे सात फेरों में कई सपने सुहागन के
मिला था राम जैसा वर खुले थे भाग्य जीवन के

ख़ुशी के थार पर्वत सा हुआ तन और मन मेरा
मुझे भाया बहुत सच में तुम्हारे प्यार का घेरा

कलाई पर सजा कंगन गले का हार घूँघट भी
समझता अनकही बातें समझता मौन आहट भी

मगर संदेश जब आया हुआ आतंक पुलवामा
थमी साँसे जमी नजरें उठा हर ओर हंगामा

हुआ सिंदूर कोसो दूर मेरा छिन गया सावन
सुनाई दे रही चींखें बड़ा सहमा पड़ा आँगन

बुला पाओ बुला दो जो गया है छोड़ राहों में
सभी यादें सिसक कर रो रही हैं आज बाहों में

तिरंगे में लिपटकर देह आई द्वार पर माना
वतन पर जान दी तुमने मुझे है गर्व रोजाना

कविराज तरुण

Thursday 21 February 2019

बेटियाँ

विधाता छंद

नही बेबस कहानी का रहीं किरदार बेटियाँ
जहाँ जाती बनाती हैं वहीं परिवार बेटियाँ
पराया धन कहो क्यों तुम यहीं हैं रूप लक्ष्मी का
यही नवरात की देवी यही हैं पर्व दशमी का

पिता की लाडली हैं ये यही माँ का सहारा हैं
यही हैं चाँदनी घर की चमकता सा सितारा हैं
नही घर में अगर बेटी हुआ फिर व्यर्थ जीवन भी
इन्ही के पाँव से आती बहारें और सावन भी

कविराज तरुण

Saturday 16 February 2019

तुमको वापस आना होगा

मातृभूमि के हे रखवाले ! तुमको वापस आना होगा ।
बूढ़ी माँ के सपनों का , कुछ तो कर्ज चुकाना होगा ।।

लहू बहा है मेरे घर में , मैंने बेटा खोया है ।
आँख से आँसूँ सूख चुके हैं , मन भीतर से रोया है ।
पीड़ित अपनी पीड़ा से , देखो न दुखियारी हूँ ।
बस एक बेटा था जीवन मे , उसको भी अब हारी हूँ ।

इस पीड़ा में मर न जाऊं , क्या खोना क्या पाना होगा ।
मातृभूमि के हे रखवाले ! तुमको वापस आना होगा ।।

मेरे लाल की अर्थी पर , लाल रक्त के छींटें हैं ।
छुट्टी उसकी खत्म हुए , कुछ ही दिन तो बीतें हैं ।
शादी का बोला था उसने , माँ अगली बारी कर लूँगा ।
बहू करेगी सेवा तेरी , और एक प्यारा घर लूँगा ।

नही चाहिए मुझको कुछ भी , पत्थर ही बन जाना होगा ।
मातृभूमि के हे रखवाले ! तुमको वापस आना होगा ।।

वो दानव जो रक्त के प्यासे , सरहद पर इतराते होंगे ।
उनसे कह दो वध करने अब , बेटे मेरे आते होंगे ।
प्रतिशोध भरे तन मन मे काली , माँ का स्वर ललकार उठा ।
शिव का डमरू बजा है रण में , हर बालक हुँकार उठा ।

चुन चुनकर हर दानव को , सबक अभी सिखलाना होगा ।
मातृभूमि के हे रखवाले ! तुमको वापस आना होगा ।।

कविराज तरुण
यूको बैंक
समेशी शाखा -1260