Sunday 17 March 2019

हाँ मै भी चौकीदार हूँ

हाँ मै भी चौकीदार हूँ

मै चौकीदार मेरी नियत खराब नही
फालतू की बातों का देता मै जवाब नही
रट जो लगाई तूने राफेल की डील पे
पप्पू जी बात ये गहरी है झील से
देश की सुरक्षा का देता मै हिसाब नही
मै चौकीदार मेरी नियत खराब नही

नोटबन्दी से सुनो बेटा हुआ क्या नया
लोन के मकान का ब्याज है घटा
मेहनत के पैसे सीधे खाते में आते हैं
चोर गद्दार डर के बाहर भाग जाते हैं
कर देने वालों की लिस्ट है बढ़ी
मुद्रा से लोगों की ये हालत सुधरी
हुए मुमकिन अब सोचे जो ख्वाब नही
मै चौकीदार मेरी नियत खराब नही

कविराज तरुण

Thursday 14 March 2019

कलम के सिपाही

*विषय - कलम के सिपाही*

सरेआम जब चौराहे पर सच ये बिकने लगता है
झूठ का ऐसा वार चले कि सच ये छुपने लगता है
माया के मंतर से ढोंगी गठरी अपनी भरते हैं
लालच तृष्णा चालाकी से मीठी बातें करते हैं

*तब उठता है ज्वार हृदय में मन व्याकुल हो जाता है*
*कलम सिपाही पृष्ठभूमि पर तब एक गीत सुनाता है*

चीरहरण होता है खुलकर जब इस बीच दुपहरी में
कलियां कुचली जाती हैं सामाजिक इस नगरी में
जब नारी की अस्मत पर नजरें ये मंडराती है
इन रश्मों के डर से जब ये सिसकी चुप हो जाती है

*तब उठता है ज्वार हृदय में मन व्याकुल हो जाता है*
*कलम सिपाही पृष्ठभूमि पर तब एक गीत सुनाता है*

रावण को जब रामराज का मालिक कहना पड़ता है
दुश्मन की हर साजिश को जबरन सहना पड़ता है
सत्ता के रखवालों से जब लोकतंत्र हिल जाता है
मान धरम सब बेच के नेता गठबंधन करवाता है

*तब उठता है ज्वार हृदय में मन व्याकुल हो जाता है*
*कलम सिपाही पृष्ठभूमि पर तब एक गीत सुनाता है*

सरहद पर आतंक का नंगा नाच दिखाई देता है
जब एक सैनिक की विधवा का कष्ट सुनाई देता है
सन्नाटों में विरह वेदना तब आवाज लगाती है
सपनों के खंडित होने की चिंता खूब सताती है

*तब उठता है ज्वार हृदय में मन व्याकुल हो जाता है*
*कलम सिपाही पृष्ठभूमि पर तब एक गीत सुनाता है*

कविराज तरुण