Sunday 12 May 2019

माँ

माँ

तेरी लोरी जब भी याद आती है माँ
एक ठंडक आँखों मे उतर जाती है माँ
भूल जाता हूँ परेशानियां रंजोगम इस जमाने का
इसतरह तू नींद मे सुलाती है माँ

गोल चपाती में आज भी तेरी सूरत मुझे नजर आती है
हल्की आँच पर उबलती सब्जियाँ
तेरे होने का अहसास दिलाती हैं

जब फालतू में जलता बल्ब कमरे में छूट जाता है
तो तेरी डाँट मुझे सुनाई देती है
दरवाजा खुला है मच्छर आ जायेंगे
ये चिंता अब मुझे रोज रहती है

माँ आज भी जब कभी मै भूखा सोता हूँ
तू सपनों में आकर बहुत गुस्साती है माँ

तेरी लोरी जब भी याद आती है माँ
एक ठंडक आँखों मे उतर जाती है माँ
भूल जाता हूँ परेशानियां रंजोगम इस जमाने का
इसतरह तू नींद मे सुलाती है माँ

कविराज तरुण

Thursday 9 May 2019

जिजीविषा


घोर कुहासों में छुपकर
जीवन के मरुस्थल में
कहाँ चले हो पथिक अकेले
रुको तनिक विश्राम करो

सत्य प्रकाशित कहाँ स्वार्थ से
वैभव के इस दलदल में
भाव अकिंचन व्यथा अनगिनत
कुछ पल को तो संग्राम करो

जिजीविषा अगर न मन मे
कर्म सिद्ध कैसे जीवन मे
पत्थर के भीतर अंकुर हो
ऐसा कुछ तो काम करो

चाँद चकोरे की अभिलाषा
मौन प्रेम की अतुलित भाषा
विश्वास यदि है मधुर मिलन का
मन के भीतर शाम करो

कविराज तरुण