221 2121 1221 212
दिल खोल करके आप मुलाकात कीजिये
जो हो सके तो आज सनम बात कीजिये
कहने को और भी हैं कई ख़्वाब दूसरे
मेरी निगाह में भी कभी रात कीजिये
221 2121 1221 212
दिल खोल करके आप मुलाकात कीजिये
जो हो सके तो आज सनम बात कीजिये
कहने को और भी हैं कई ख़्वाब दूसरे
मेरी निगाह में भी कभी रात कीजिये
मुहब्बत के सफर में तुम बड़े बर्बाद बैठे हो
लिए माशूक की फिरसे पुरानी याद बैठे हो
खुदा भी जानता है इश्क़ का अंजाम रुसवाई
बताओ किस भरोसे तुम लिए फरियाद बैठे हो
कविराज तरुण
हौसलों को आज अपनी औकात दिखाने दो
या तो खुद करीब आओ या मुझे पास आने दो
मुहब्बत करके मुकर जाओगी इतना आसान तो नही
मेरे दिल मे और क्या है आज खुल के दिखाने दो
कविराज तरुण
हौसलों में दम हो तो उड़ान भी हो जायेगी
जमीं की फलक से पहचान भी हो जायेगी
तुम्हारी काबिलीयत पर हमको यकीं है
ये राह जो कठिन है आसान भी हो जायेगी
कविराज तरुण
और क्या बाकी बचा तेरे हिसाब मे
अल्फ़ाज़ दफ्न हो रहे मेरी किताब मे
इश्क़ का तोहफा समझ अबतक बचाया जो
बू बगावत की बची अब उस गुलाब मे
एक तेरी आदत के सिवा
और कोई आदत तो नही
तू मेरी जिम्मेदारी है
तू मेरी चाहत तो नही
अपने हाथों से तुझे
खुद विदा कर आऊँगा
तू सिर्फ हसरत है मेरी
दिल की बगावत तो नही
डूबना नही इस बहाव मे
कश्तियाँ गईं धूप छाँव मे
छूटते यहाँ हैं भरम सभी
सोचना ज़रा मोल भाव मे
फिर सफर लिए इक शहर बना
टूटते शजर हैं दूर गाँव मे
बात बात पर कहकशे लगे
क्या दिखा उन्हें हाव-भाव मे
साहिलों को ये कब पता चला
छेद हो गया कैसे नाँव मे
साँस चल रही खैर शुक्रिया
खींचतान है रख-रखाव मे
कौन कह सका आगे हो क्या
जिंदगी रुके किस पड़ाव मे
उसे इश्क़ न सही मलाल होने दो
दो चार अपने नाम के सवाल होने दो
कबतक छुपाओगे हाल-ए-दिल मियां
बोल दो जो भी हो बवाल होने दो
कविराज तरुण
क्यों शहरों में झूठे बादल आये हैं
जाने कैसे कैसे पागल आये हैं
हमने तो बस हाथ लगाया था उनको
जाने कैसे इतने घायल आये हैं
हर पल जिनके साथ रही थी मक्कारी
लेकर आँखों मे गंगाजल आये हैं
मै किस मतलब से अब उनको प्यार करूँ
वो अपने मतलब से केवल आये हैं
खेल सियासतदारों का है बस कुर्सी
रैली में कुछ टूटी चप्पल आये हैं
कविराज तरुण
अल्फाज़ो की एक शाम होने दो
एक दूसरे का एहतराम होने दो
वक़्त का क्या है गुजर जायेगा
दो पल ज़रा बैठो आराम होने दो
यूँ मुद्दतों बाद मिली बेमिसाल दोस्ती
अब इसका ऐलान सरेआम होने दो
कुछ खट्टे कुछ मीठे पल बहुत सारे
जरूरी है इनका गुलाम होने दो
यादों के झंरोखो से देख लेंगे तुम्हे
चाहे आगे हो जो भी अंजाम होने दो
मै जानता हूँ नाम कमाना है मुश्किल
हो सके तो खुद को बदनाम होने दो
बारे मे जब भी तुम्हारे सोचता हूँ
फूल कलियों के नजारे सोचता हूँ
नींद का क्या है ये आये या न आये
जागकर ही ख़्वाब सारे सोचता हूँ
कविराज तरुण