ख्वाबों का रंग आजकल क्यों लाल लाल है
चहरे पे तेरी ये हँसी तो बेमिसाल है
ये बेवजह दिखावटी या बात और है
अच्छा ! तुम्हे भी इश्क़ है ये तो कमाल है
कविराज तरुण
ख्वाबों का रंग आजकल क्यों लाल लाल है
चहरे पे तेरी ये हँसी तो बेमिसाल है
ये बेवजह दिखावटी या बात और है
अच्छा ! तुम्हे भी इश्क़ है ये तो कमाल है
कविराज तरुण
कुछ इसकदर उस सख्स ने तोड़ा मुझे साहब
पूछो नही किस काम का छोड़ा मुझे साहब
कश्ती भँवर के बीच मे उलझी रही मेरी
इस गर्त में क्यों खामखां मोड़ा मुझे साहब
कविराज तरुण
तुम किसी के घर में रहो रात पार हो जाये
तो ऐसे माहौल मे क्या कुछ सवार हो जाये
और कोई बात नही बस ज़रा सी दोस्ती है
इतना अब आसान कहाँ ऐतबार हो जाये
कविराज तरुण
मुझे ये इश्क़ था शायद बहुत पहले बहुत पहले
मेरे दिल की नही थी हद बहुत पहले बहुत पहले
मगर अब हाल ये अपना पता खुद का नही मिलता
हुई ओझल मेरी सरहद बहुत पहले बहुत पहले
कविराज तरुण