Monday 27 June 2022

युद्ध जब तांडव कराता

चित्र आधारित कविता - युद्ध जब तांडव रचाता 

युद्ध जब तांडव रचाता, कष्ट अगणित छोड़ जाता
रक्त के बीजाणु लेकर, नेत्र से क्रन्दन कराता

है अहम् के नाम पर जब, युद्ध तो फिर अंत क्या है
न्याय की सत्ता पुकारे, विश्व तेरा पंथ क्या है
त्रस्त हैं सबलोग इससे, युद्ध ये किसको सुहाता
युद्ध जब तांडव रचाता, कष्ट अगणित छोड़ जाता

हे! नये जग के पुरोधा, शक्ति अपनी थाम लो तुम
हो रही धरती अकिंचन, धैर्य से अब काम लो तुम
क्षेत्र के विस्तार में क्यों, तू रचे संहार गाथा
युद्ध जब तांडव रचाता, कष्ट अगणित छोड़ जाता

मर रहें लाखों सिपाही, मर रहें सब आमजन हैं
ये मनुजता के मरण का, काल शर्पित आगमन है
मन व्यथित हो सोचता है, काश! कोई रोक पाता
युद्ध जब तांडव रचाता, कष्ट अगणित छोड़ जाता

चोट की चादर लपेटे, लोग कितना रो रहे हैं
मृत्यु तेरा भय समेटे, सब तमस में खो रहे हैं
मान जा दमराज किलविश, क्यों प्रलय को यूँ बुलाता
युद्ध जब तांडव रचाता, कष्ट अगणित छोड़ जाता

तरुण कुमार सिंह
प्रबंधक
यूको बैंक, लखनऊ 
कर्मचारी संख्या - 57228

Friday 3 June 2022

ग़ज़ल कहाँ से रास्ता होगा

मुझे मालूम है दिल का कहाँ से रास्ता होगा
ज़रा नज़रेँ मिला लो तुम वहीँ से दाखिला होगा

अगर तुम हो सके तो देख लो फिर आज सीने मे
तिरा ही नाम इसके हरतरफ सच में लिखा होगा

ये दुनिया प्यार की दुश्मन इसे दिल से नही मतलब
लगेगा जब सही सबकुछ तभी कुछ अटपटा होगा

कहानी हीर राँझा की सबक देती यही हमको
के सच्चा प्यार होगा तो हमेशा फलसफा होगा

किसी के लाख कहने पर रुका कब है 'तरुण' आशिक
ये दुनिया जबतलक होगी मुहब्बत का सिला होगा