Monday 21 June 2021

कवि कौन ?

फिर वही प्रश्न कौन हूँ मै
शब्द मूर्छित हैं मौन हूँ मै

कवि को समझने से पहले कविता को समझना बेहद जरूरी है । हम अक्सर शब्दों के फेरों में लिपटी खूबसूरत कविता को देखते हैं , पढ़ते हैं और आगे बढ़ जाते हैं । पर वह कविता कैसी है इससे कहीं ज्यादा ये प्रश्न गंभीर है कि वह कविता क्यों लिखी गई है । हम-आप सब लोग ये जानते हैं कि भावों का लयबद्ध सम्प्रेषण ही कविता है , परंतु कविता इससे कहीं ज्यादा गहरी होती है । कवि ने किन परिस्थितियों में कविता लिखी, उसे आखिर क्या जरूरत पड़ी अपनी भावनाओं को शब्दों में गढ़ने की, उसने क्या कहा और वो कहना क्या चाह रहा था । इन्ही सब बातों में तो कविता का सच छुपा है और कवि का भी । मै नही मानता कि कवि या कविता की तुलना उसकी लय , गति अथवा शिल्प के आधार पर होनी चाहिए , अपितु उसमे निहित भाव ठीक उसी प्रकार दिखे जैसा कवि दिखाना चाहता है तो कविता सफल है ।

हर कहानी में कविता हो न हो पर हर कविता में एक कहानी होती है । बस वही कहानी अपनी कविता में दर्शाना कवि का धर्म है । कवि कभी भी बंधनों में बँधा नही हो सकता । मुक्त भाव ही कवि का सबसे कारगर साधन है । प्रशंसा मनोबल के लिए आवश्यक है परंतु कवि तो वही है जो इन सबसे मुक्त हो । 'कवि कौन' ये प्रश्न कठिन भी है और आसान भी । प्रकृति को देखेंगे तो पशु, पक्षी, पेड़, वायु , अम्बर, बादल सब कवि लगेंगे क्योंकि ये मुक्त होकर अपना भाव प्रकट करते हैं । मनुष्य में कवि को खोजना कठिन है क्योंकि हम जो हैं वो स्वीकारते नही, जैसा होना चाहते हैं वैसा प्रयास करते नही और जो हो सकते हैं वो हो नही पाते । अपने आप को पहचानना ही कवि होना है , अपने अंदर झाँकना ही कविता है ।

एक कहानी सुनाता हूँ - एक व्यवसायी था जिसने वर्षों तक अथक परिश्रम करके अच्छी संपत्ति बना ली। सोते-जागते उसे अपने व्यवसाय की ही धुन सवार रहती। अपने व्यस्त जीवन में उसने महसूस किया कि उसे कढ़वेपन की बीमारी लग गई है। उसे कोई भी मीठी चीज फीकी या कढ़वी लगती । डॉक्टर को दिखाया, वैद्य, हकीम सभी के चक्कर लगा लिए फ़िरभी कोई फर्क नही पड़ा। विज्ञान समाधान खोजने में असमर्थ दिखा। बहुत परेशान होकर उसने एक आश्रम में शरण ली, वहां बैठे गुरूजी से अपना दुखड़ा कहा। वो कहते-कहते रो पड़ा कि बिना मिठास के जीवन का फायदा ही क्या है? गुरूजी हँस पड़े और कहा कि सब सही हो सकता है पर उसके लिए कुछ कठिन कार्य करने होंगे। वह झटपट सब कार्य के लिए तैयार हो गया।

सुबह हवन के लिए लकड़ी काटकर लाना, आश्रम में आये लोगों के लिए भोजन बनाना, आश्रम की सफाई करना और भोजन के नाम पर दिनभर खाली पेट रहने के बाद रात्रि में करेले की सब्जी एक रोटी के साथ खाकर सो जाना। कई दिन बीत गए, उसने मीठेपन की कल्पना करना तक छोड़ दिया।

पर इस नियमावली से तंग आकर आखिरकार वो गुरूजी के पास गया और बोला - गुरुदेव कई दिन से ठीक से भोजन तक नही किया। करेले की सब्जी इतने दिन से खाते-खाते परेशान हो गया हूँ। पहले तो मीठी चीज ही फीकी लगती थी पर अब तो करेला भी फीका लगने लगा है। बिना स्वाद के क्या जिंदगी गुरुदेव?
गुरुदेव ने कहा अभी ये कार्य कुछ दिन और करो।
पर कबतक गुरुदेव? - झुंझलाकर वो बोल पड़ा
जबतक करेले की सब्जी मीठी न लगने लगे - इतना कहकर गुरुदेव मुस्कुरा दिए
उस रात उसने यही सोचकर करेले की सब्जी खाई कि उसे वह मीठी लगे और यकीन मानिये हुआ भी ऐसा ही। वो भागकर गुरुदेव के पास गया और बोला - गुरुदेव आज तो करेला भी मीठा लगने लगा
गुरुदेव हँसकर उसे देखे और फिर बिना कुछ कहे सोने चले गए

सुबह जब वह उठा तो वो समझ चुका था कि अपने स्वाद को पुर्नजीवित करना उसी के हाथ में था पर वो अनायास ही दवाओं और डॉक्टरों की शरण में चला गया। उसने अपने दिनचर्या की व्यस्तताओं और अनिश्चिताओं में उलझकर जीवन के साथ-साथ, जिह्वा के स्वाद को भी कढ़वा कर लिया था। उसने खाने की मिठास को ही नजरअंदाज करना शुरू कर दिया था और शिकायतों के मकड़जाल में खुद को ही बीमार समझ लिया था परन्तु अब उसे सत्य की अनूभूति हो चुकी थी, संवेदना का परिचय हो चुका था, भावनाओं की महत्ता पता चल चुकी थी। उसे जीवन के हर स्वाद की उपयोगिता समझ आ चुकी थी। उसे यह पता चल चुका था कि हम जैसा महसूस करते हैं वैसे ही बन जाते हैं। अपने अंदर बसे जीव को पहचानना उसे आ चुका था, उसे यह पता चल चुका थे कि भावशून्य व्यक्ति स्वादहीन हो जाता है। अब वो भावप्रधान हो चुका था। उसे अपने अंदर की भावनाओं को पढ़ना और उसे प्रकट करना आ चुका था। वास्तव में अब स्वयं के लिए वो एक कवि बन चुका था।

कविराज तरुण

Friday 18 June 2021

ग़ज़ल - तुम हो

मेरी जिंदगी की ग़ज़ल खास तुम हो
मेरी हर दुआ मेरी अरदास तुम हो

मै जब भी गुजरता हूँ तेरी गली से
मेरी धड़कनों की अहसास तुम हो

नही है किसी की मुझे अब जरूरत
ये दुनिया मेरी है अगर पास तुम हो

बनाया है तुमने बिगाड़ा है तुमने
मेरी इस कहानी का इतिहास तुम हो

समंदर तुम्ही हो ये दरिया तुम्ही हो
मेरी इन निगाहों की हर प्यास तुम हो

कविराज तरुण

Sunday 6 June 2021

श्रीराम दिखाता सीने में

रघुनंदन की उस महिमा का गुणगान दिखाता सीने में
मै देवधरा के कण कण का अभिमान दिखाता सीने में

हाँ ! मुझमें अंश समाहित है उस मर्यादा पुरुषोत्तम का
हनुमान नही हूँ वर्ना मै भगवान दिखाता सीने में

भगवान दिखाता सीने में श्रीराम दिखाता सीने में