ग़ज़ल - होने दो
मै जीना सीख जाऊँगा मुझे आजाद होने दो
शरीफों की कहाँ दुनिया ज़रा बर्बाद होने दो
था मुद्दत से जिसे पाया वही अब दूर है हमसे
भला हो या बुरा हो जिंदगी मे स्वाद होने दो
जरूरी ये नही उसके लिए हों बददुआ दिल मे
जहाँ जैसी भी हो उसको वहीं आबाद होने दो
महल बन जायेगा इकदिन हमारे ख्वाब का बेशक
अभी मजबूत थोड़ी सी मेरी बुनियाद होने दो
बिना बोले भी हाले दिल बताना है नही मुश्किल
'तरुण' आँखे उठाकर तुम अगर संवाद होने दो
कविराज तरुण