Thursday 3 October 2024

जिंदगी गुजरने को है बताओ कब आओगे

जिंदगी गुजरने को है बताओ कब आओगे
जिस्म से जां निकल जायेगी तब आओगे

आज हवा में ठंड है पहले से कहीं ज्यादा
ये तो इशारे हैं कुदरत के मतलब आओगे

हमने गुलदान में कुछ फूल सजा रखे हैं
ये खुद-ब-खुद ही खिल जायेंगे जब आओगे

इसी उम्मीद में नींदों से किनारा किया हमने
रात के मुसाफिर हो जब होगी शब आओगे

दिल तोड़कर फिर से जोड़ा कैसे जाता है
हमें यकीन तुम दिखाने ये करतब आओगे

मुश्किल लगता है

उम्मीदों के बिन ये जीवन कितना मुश्किल लगता है 
रेत में जैसे पानी का ही बहना मुश्किल लगता है 

इक दूजे का हाथ पकड़कर चलने वाले बतलाये
एक अकेले तूफ़ानो में चलना मुश्किल लगता है

गैरों से तो जीत हार का खेल पुराना है साहब 
पर अपनों से बीच युद्ध मे लड़ना मुश्किल लगता है

जिन लोगों को होती आदत कसमें वादे करने की 
उन लोगों पर यार भरोसा करना मुश्किल लगता है

भरते भरते भर जाता है जख्म हमारी चोटों का 
पर जब दिल में जख्म हुआ तो भरना मुश्किल लगता है

कविराज तरुण 

क़त्ल भी होगा इल्जाम भी ना आयेगा

कत्ल भी होगा इल्जाम भी न आयेगा
तुम्हारा हुनर कुछ काम भी न आयेगा

उसके चाहने वालों की लंबी फेरहिस्त में
हमें ये वहम है तेरा नाम भी न आयेगा

इंतजार में बैठे हो किसके और किसलिए
वो सुबह का भूला अब शाम भी न आयेगा

मान लो ये इश्क तुम्हारे बस का नही
दर्द भी होगा तुम्हे आराम भी न आयेगा

क्यों उसके आने की उम्मीद करें बैठे हो 
तुम देखना उसका पैगाम भी न आयेगा

गणमान्य हेतु विदाई प्रशंसा गीत

आसमान से ऊंचा निश्चय मन मस्तक में जिनके है
कार्यसिद्धि को पूर्ण समर्पण करना जिनकी आदत है

कल का जिनको अनुमान है और पता है जिन्हें आज का
जिनके रहता संज्ञान में स्तर कैसा काम काज का

जो रखते हैं ध्यान सभी का जैसे मुखिया परिवार में
जो भरते हैं ज्ञानचक्षु से ज्योत असीमित अंधकार में

जो उन्नति की दिशा दिखाते सबसे आगे चलते हैं
जो अपने ऊंचे आदर्शों से भाव जीत का भरते हैं

हमें खुशी है उनके जैसा पथ प्रदर्शक हमने पाया
यूं लगता है सूर्य अलौकिक आसमान में अपने छाया

यही कामना करते हमसब स्वास्थ्य हमेशा बना रहें
खुशियों का संचार आपके जीवन में अब सदा रहे

मुश्किल लगता है

उम्मीदों के बिन ये जीवन कितना मुश्किल लगता है 
रेत में जैसे पानी का ही बहना मुश्किल लगता है 

इक दूजे का हाथ पकड़कर चलने वाले बतलाये
एक अकेले तूफ़ानो में चलना मुश्किल लगता है

गैरों से तो जीत हार का खेल पुराना है साहब 
पर अपनों से बीच युद्ध मे लड़ना मुश्किल लगता है

जिन लोगों को होती आदत कसमें वादे करने की 
उन लोगों पर यार भरोसा करना मुश्किल लगता है

भरते भरते भर जाता है जख्म हमारी चोटों का 
पर जब दिल में जख्म हुआ तो भरना मुश्किल लगता है

कविराज तरुण 

मात्र चले जाने से कोई दूर नही होता है

चांद बिना तो अंबर में भी नूर नहीं होता है 
मात्र चले जाने से कोई दूर नहीं होता है 
पल भर में ये रिश्ता चकनाचूर नहीं होता है 
मात्र चले जाने से कोई दूर नहीं होता है 

मिलने और बिछड़ने का क्रम चलता रहता है 
सदा साथ रहने का सपना पलता रहता है 
पर बिछड़न के बिन किस्सा मशहूर नहीं होता है
मात्र चले जाने से कोई दूर नहीं होता है

इन आंखों से कभी-कभी तो होगी ही बरसाते
अधर पुकारेंगे तुमको तुम काश चले आ जाते 
पर जो सोचो अक्सर वो मंजूर नही होता है
मात्र चले जाने से कोई दूर नहीं होता है

परिवर्तन तो नियम है समझाना है खुद को 
नये सफर में नया जोश ले जाना है खुद को 
मुड़कर पीछे जाने का दस्तूर नही होता है 
मात्र चले जाने से कोई दूर नहीं होता है

कुछ मिलता है हमें समय से कुछ मिलता है आगे 
कुछ तो ऐसा भी होता हम जिससे रहें आभागे 
पर मिल ना पाये तो खट्टा अंगूर नही होता है
मात्र चले जाने से कोई दूर नहीं होता है

चांद बिना तो अंबर में भी नूर नहीं होता है 
मात्र चले जाने से कोई दूर नहीं होता है

जरूरी है बहुत

चाहत-ए-इश्क़ में नगमात जरूरी है बहुत 
वहाँद सितारों की बारात जरूरी है बहुत 

तुम मुझे जानो या न जानो, कोई बात नहीं
मै तुम्हें जानता हूँ, ये बात जरूरी है बहुत

मै दर्द सोख लेता हूँ ये यार मेरे कहते हैं
तुम्हें जो दर्द है तो मुलाकात जरूरी है बहुत 

मैंने हवा में लिखा तेरा नाम और आजाद किया
अब तो इन आंखों से बरसात जरूरी है बहुत 

केवल जिस्म के मिलने से तो नही होता है 
है अगर इश्क़ तो ज़ज़्बात जरूरी है बहुत

Wednesday 2 October 2024

हे पार्थ बोलो किस तरफ हो

युद्ध है ये धर्म का, हे पार्थ बोलो किस तरफ हो
नेत्र से पट्टी हटाकर, दृष्टि खोलो किस तरफ हो

एक तरफ तो फूल की चादर बिछाये झूठ बैठा 
एक तरफ काँटों से लिपटा सत्य सबसे रूठ बैठा
एक तरफ ये आधियाँ हैं शोर है तूफ़ान का 
एक तरफ ये दीप परिचय दे रहा अभिमान का

तुम अँधेरे और उजाले में टटोलो किस तरफ हो
युद्ध है ये धर्म का, हे पार्थ बोलो किस तरफ हो

तुमको दुश्शासन के जैसे चीर हरने की ललक है
या सभा के मध्य तुमको मौन धरने की ललक है
क्या तुम्हें पांडव के जैसे शर्म से बस सिर झुकाना
या तुम्हें कान्हा की तरहाँ द्रोपदी को है बचाना

उस सभा में हो कहाँ तुम? भेद खोलो किस तरफ हो
युद्ध है ये धर्म का, हे पार्थ बोलो किस तरफ हो

कर्ण के जैसे तुम्हें कुण्डल कवच का दान करना 
या दुयोधन की तरह तुमको अहम् का पान करना
तुम पितामह की तरह चुपचाप सब कुछ देख लोगे 
या विदुर की आँख से इस युद्ध का दर्शन करोगे

तुम उचित-अनुचित के भीतर भार तोलो किस तरफ हो
युद्ध है ये धर्म का, हे पार्थ बोलो किस तरफ हो

तुम हो शकुनी शल्य हो जरसंध या फिर द्रोण हो 
नीति नियम से अपरिचित पात्र आखिर कौन हो 
अश्वथामा सा तुम्हें वरदान है क्या ये कहो 
तुमको अभिमन्यु के जैसे ज्ञान है क्या ये कहो 

या तुम्हें लगता हवा के साथ हो लो किस तरफ हो
युद्ध है ये धर्म का, हे पार्थ बोलो किस तरफ हो

©कविराज तरुण 

Wednesday 25 September 2024

जो सदा धरातल पर रहता

जो सदा धरातल पर रहता उसका होता सम्मान सखे 
सकल सृष्टि के जीव जंतु करते उसका गुणगान सखे 

जो धर्म पर अपने चलता, अत्याचार नहीं स्वीकारेगा
कर्म क्षेत्र में कुछ भी हो, प्रतिकार नहीं स्वीकारेगा 
मानवता के बीच कभी, व्यापार नहीं स्वीकारेगा
हां! जब तक जीत नहीं जाता, वो हार नहीं स्वीकारेगा

इन्हीं तत्व से मिला जुला वो बनता है इंसान सखे 
जो सदा धरातल पर रहता उसका होता सम्मान सखे

द्वेषभावना लेकर मन में, चिंता का अम्बार लगेगा 
इतना दिल पर बोझ पड़ेगा, के जीना दुश्वार लगेगा
सरल नही तू बन पाया तो, कठिन जीत का द्वार लगेगा
मिथ्या बातें मिथ्या जीवन मिथ्या ये संसार लगेगा

लेष मात्र भी अपने अंदर रखना मत अभिमान सखे 
जो सदा धरातल पर रहता उसका होता सम्मान सखे

धारण कर लो अपने अंदर, रघुकुल की रघुराई को
रामचरित की मन में अंकित कर लो हर चौपाई को 
ऐसे देखो किसी और को, जैसे अपने भाई को
मर्यादा के नाम करो तुम, जीवन की तरुणाई को 

तब जाकर तुम कर पाओगे इस जीवन का उत्थान सखे 
जो सदा धरातल पर रहता उसका होता सम्मान सखे

Tuesday 24 September 2024

संशय मुक्तक

संशय की घोर अवस्था में राही कैसा विश्राम 
तबतक चल तू जबतक आ जाये ना पूर्ण विराम
नियति नही नियम से आता है उत्तम परिणाम
बस नेक भाव से पूरित कर तू अपना सारा काम

Sunday 22 September 2024

लिखो कुछ

अनगिनत अहसासों की असंख्य अठखेलियाँ
भ्रमित चेहरे को प्रश्नों का हल देती हैं |
जिह्वा से अनजाने में निकली कोई बात 
इतिहास के पन्नो को सहसा बदल देती है ||
उन्मुक्त विचारो की बहती हवा ही अक्सर
संकुचित दायरों को वृस्तित महल देती है |
रुको नहीं... कुछ सोचो ... कुछ लिखो या कहो कुछ
बात निकलती है तो नई उम्मीद को पहल देती है ||

Sunday 8 September 2024

लहजा बदल के देख

सब काम होगा तेरा लहजा बदल के देख 
इकबार अपने घर से बाहर निकल के देख

है झुनझुना मोहब्बत ये जानते हैं फिर भी
कुछ देर के लिए ही इससे बहल के देख

किस ख़ाक में जवानी हमने गुजार दी है
ये देखना अगर हो दुनिया टहल के देख

ये क्या कि छोटे छोटे सपनों की सैर करना 
गर देखना है सपना रंगो-महल के देख

कुछ बात बोल दी है कुछ बात है अधूरी
जो माइने छुपे हैं मेरी ग़ज़ल के देख

Wednesday 28 August 2024

कहाँ से आयेंगे

कौन कितने कब कहाँ से आयेंगे 
अपने नजदीकी मक़ाँ से आयेंगे 

वो तो दुश्मन हैं फ़रिश्ते थोड़ी हैं 
जोकि उड़ के आसमां से आयेंगे 

अहतियातन खुद को मजबूत रखना
तीर नश्तर के जबाँ से आयेंगे 

वक़्त बदला ना तरीका बदला है 
पीठ में खंजर छुपा के आयेंगे

दोस्त समझा तो बुराई क्या इसमें 
फैसले अब इम्तिहाँ से आयेंगे 

दिल लुटाने से नही फुर्सत जिनको 
अपना सबकुछ गवाँ के आयेंगे

कविराज तरुण 

Monday 19 August 2024

दोस्ती

दोस्ती 

रश्मोरिवाज हमको सिखाती है दोस्ती
इंसान को इंसान बनाती है दोस्ती

अच्छा हो या बुरा हो कि अपना या गैर हो
इन सब से बड़ा मेल कराती है दोस्ती

रिश्ते भी जहां छोड़ चले अपने साथ को 
उस मोड़ पर भी साथ निभाती है दोस्ती

पापा भी कभी कॉल करें मेरे वास्ते 
तो झूठ भी सच बोल बचाती है दोस्ती

मम्मी के लिए दोस्त मेरे लाजवाब हैं 
मेरी माँ को सबकी माँ बनाती है दोस्ती 

यारों को पता है कि मेरा दिल कहाँ फ़िदा
इस बात पे भी शर्त लगाती है दोस्ती

वैसे तो मजे लूटने में छोड़ते नही 
नाराज अगर हों तो मनाती है दोस्ती

जब राह में हों मुश्किलें तो टोर्च की तरह 
दे रोशिनी वो राह दिखाती है दोस्ती

लड़ना जो पड़े भीड़ से तो दोस्त के लिए 
कुछ सोचे बिना हाथ उठाती है दोस्ती

गमख्वार बने ढाल बने गम के सामने 
तन्हाइयों में जश्न मनाती है दोस्ती

आँखों की नमी पोंछ के गालों के दरमियाँ 
हलचल सी मचा जोर हँसाती है दोस्ती

ये बात सभी मानते जब यार साथ हों 
तो हार में भी जीत दिलाती है दोस्ती



कविराज तरुण

Saturday 10 August 2024

जीवन क्या है?

कविता - जीवन क्या है?

जीवन क्या है? हार-जीत की, मिली-जुली सी एक कहानी 
गगरी ऐसी! जिसमें सुख-दुख, दोनों आकर भरते पानी 

कभी अचंभित करने वाली, घटनाओं का आना-जाना 
कभी बिना रस फीका-फीका, इच्छाओं का ताना-बाना

कभी सफलता खुद आकर, चलने वाले का पाँव पखारे 
कभी विफलता 'धैर्य धरो तुम' कहकर तेरा नाम पुकारे

यही सफलता और विफलता हमें बनाये ध्यानी-ज्ञानी
जीवन क्या है? हार-जीत की, मिली-जुली सी एक कहानी 

बाल्य अवस्था में जीवन का रहता हरदम प्रश्न अधूरा 
बढ़ते-बढ़ते करते हम सब, इन प्रश्नों का आशय पूरा 

वृद्ध हुए तो लगता ऐसे, जैसे जीवन बहकावा है 
मिथ्या सारा जीव जगत है, झूठी सारी माया है 

बातों की अनबूझ पहेली, लेकर आये नई जवानी
इसी बीच अनबूझ पहेली, लेकर आये नई जवानी

कभी-कभी तो चकाचौंध में, लगा रहे लोगों का मेला 
कभी-कभी सब लोग अपरिचित, मन भीतर से रहे अकेला 

कभी -कभी उत्थान-पतन का कारण, अपनों की चतुराई 
कभी -कभी अपनों से ज्यादा, हमको प्यारी प्रीत पराई

इसी प्रीत की बातों में मन, खोजें कोई बात पुरानी
जीवन क्या है? हार-जीत की, मिली-जुली सी एक कहानी 
गगरी ऐसी! जिसमें सुख-दुख, दोनों आकर भरते पानी 

कविराज तरुण

Sunday 28 July 2024

ग़ज़ल - अगर हैं मंजिले

अगर हैं मंजिलें तो फिर कहीं पर रास्ता होगा
हमारे हक़ में जो भी है कहीं पर तो लिखा होगा

मै मीलों दूर जाने के लिए तैयार कबसे हूँ
अगर तुम साथ होगे तो सफर मे हौसला होगा

मुझे कुछ सोचकर रब ने बनाया है अलग तुमसे 
मै जैसा हूँ, नही बदलो, बदलकर क्या भला होगा

कभी जब साथ बैठेंगे पुराने दिन की कुर्बत में
रही क्या गलतियां अपनी इसी पर मशवरा होगा

मुझे अफ़सोस होता है मगर मै भूल जाता हूँ
अगर सब याद आ जाये तो कैसे फासला होगा

कविराज तरुण