Saturday 29 June 2019

कतअ 4

मै उड़ना सीख जाऊँगा
हवा जो साथ हो मेरे
दवा की है किसे हसरत
दुआ जो साथ हो मेरे

बुराई ये नही की दिल
लगाया गैर से तुमने
बुराई ये कि बातों में
वफ़ा जो साथ हो मेरे

Sunday 23 June 2019

कतअ 3

प्यार से दो घड़ी मुस्कुराया करो
तुम कभी सामने जबभी आया करो

ये जरूरी नही जिस्म का हो मिलन
इतना काफी है रूहें मिलाया करो

कविराज तरुण

Saturday 22 June 2019

कतअ 2

ये दिल हसरतो के सिवा और क्या है
लुटा और क्या है बचा और क्या है

नही और कोई दुआ काम आई
बता दे मुझे अब दवा और क्या है

कविराज तरुण

ग़ज़ल - क्या फायदा

प्यार मजबूर हो तो भी क्या फायदा
वो अगर दूर हो तो भी क्या फायदा

माँग तेरी न हो जो मेरे सामने
हाथ सिंदूर हो तो भी क्या फायदा

जो मेरे दरमियां तेरी ख्वाहिश न हो
लाख मशहूर हो तो भी क्या फायदा

जीतकर तो तुझे जीत मै ना सका
हार मंजूर हो तो भी क्या फायदा

जब करेले से कड़वी हुई जिंदगी
मीठा अंगूर हो तो भी क्या फायदा

कविराज तरुण

कतअ 1

तू इतना हैरान परेशान क्यो है
दिल के मसलों से सावधान क्यो है

नही बताओगे तो क्या पता नही चलेगा
कहाँ की चोट है गहरा निशान क्यो है

कविराज तरुण

Wednesday 12 June 2019

हाल-ए-दिल सुनाया जाये

सोचता हूँ कुछ हाल-ए-दिल सुनाया जाये
हौले हौले ही सही इन पर्दों को उठाया जाये

ये सफर जिंदगी का तब बेहतर हो जायेगा
रूठे चेहरों को जब फिर से मनाया जाये

जहाँ दरबार लगा हो उल्फ़त के मारों का
बहुत जरूरी है वहाँ हमको बुलाया जाये

ये मेरा शौक ही शायद मेरी अदावत है
ख़्वाहिश-ए-दिल कि गुल नया खिलाया जाये

लोग हँसते हैं तो बिल्कुल बुरा नही लगता
बस यही कोशिश कि जम के हँसाया जाये

कविराज तरुण

Tuesday 11 June 2019

ओये सुन - चल ! अब तू कट ले

तुझे पता है क्या ! तेरी जुल्फों को मै बादल समझता था
जो खुद ही पागल है वो भी मुझे पागल समझता था
तेरे पीछे पीछे मैंने जाने क्या क्या न बर्बाद किया
जब जब मैंने साँस ली बस तुझको ही याद किया
और तू ये कह के चली गई - "जा किसी और से पट ले"
ओये सुन - चल ! अब तू कट ले

बाबू शोना जानू न जाने क्या क्या नाम दिये तुमने
एक गर्लफ्रैंड वाले अबतक सारे काम किये तुमने
मेरे खाने-पीने जगने-सोने की थी फिक्र तुझे कितनी
ऐसा लगता था सिर्फ मेरे लिए ही तू धरती पर बनी
पर मुझे क्या मालूम तुम्हे तो दिल से खेलने की लत है
ओये सुन - चल ! अब तू कट ले

कविराज तरुण

ग़ज़ल - बेहतर है

ग़ज़ल - बेहतर है

ये चिराग मेरी आँखों का नूर हो तो बेहतर है
रंज-ओ-गम तेरे चहरे से दूर हो तो बेहतर है

ये उदासी परेशानियां तुझपर ज़रा भी नही जँचती
तेरी अदाओं में फिर वही गुरूर हो तो बेहतर है

मै नही चाहता कि तुझे इश्क़ का नशा हो
पर थोड़ा बहुत इश्क़ का शुरूर हो तो बेहतर है

जब तुम नही दिखती तो दर्द होता है मुझे
इल्म इस बात का तुझे जरूर हो तो बेहतर है

मुहब्बत का मजा ऐशो-आराम में नही है
इस उल्फत में बदन थक के चूर हो तो बेहतर है

कविराज तरुण