Monday 22 June 2015

है तो है

तुम हो किसी और की ज़माने भर की नज़रों में ।
मगर फिरभी तुम्हे पाने की चाहत है ... तो है ।
कोई रोके भी कितना धड़कनो को उनपर बहकने से ।
जो इस दिल में बेकरारी सी ये उल्फ़त है ... तो है ।
कहते हैं नही हासिल हुआ कुछ भी परवाने को ।
मगर फिर भी उसे शमा में जल जाने की हसरत है ... तो है ।
ज़मीं और क्षितिज मिल नही सकते ये सच है ।
मगर एक दुसरे से उनको मोहब्बत है ... तो है ।
रात भर देखता रहा चाँद को चकोर ।
मिलन मुमकिन नही है गर ये हकीक़त है ... तो है ।
ख़ुदा हो जाए बेशक हमसे खफ़ा कितना ।
तू मेरी मन के मंदिर की इबादत है ... तो है ।

कविराज तरुण

Monday 1 June 2015

कशिश

अब्र आँखों से गिरा देते हैं
यादों में तेरी ।
शहद सा स्वाद लगे मुझको बातों में तेरी ।
हर घड़ी गिन गिन के गुजारी तेरे इंतज़ार में ।
रूमानी असर आज भी बाकी है तेरे प्यार में ।
कशिश बाकी है ऐसी कि कोई और भाता ही नही ।
कोई भी आये तेरे करीब तो सहा जाता हो नही ।
झूठ बोलकर मुझसे तू फरेब मत कर ...
झूठ कितना भी मीठा हो सुना जाता ही नही ।
तू है चंचल तेरी हँसी क़यामत है ।
तेरी खुशियाँ मेरे प्यार की अमानत हैं ।
बिना देखे तुझे पलभर भी रहा जाता ही नही ।
तेरे सिवा इन ख्वाबो में कोई और आता ही नही ।

कविराज तरुण