Friday 28 May 2021

क्या मुझसे मिलने आओगी

मेरे अविनाशी मन का हर भाव तुम्हे जब प्रेषित हो
मेरे चित्तपटल पर तेरा नाम स्वयं आलेखित हो

तब तुम मिलने आओगी क्या मुझसे मिलने आओगी
तोड़ सभी ये बंधन तुम क्या मेरा साथ निभाओगी

अरुणांचल को छोड़ अरुण जब रूप चाँद का धर लेगा
दिन का उजियारा जब दीपक अपनी लौ में भर लेगा
जब अम्बर के तारे गिनते गिनते मै सो जाऊँगा
जब स्वप्नों की अमरबेल पर तुमको पास बुलाऊँगा

तब तुम मिलने आओगी क्या मुझसे मिलने आओगी
तोड़ सभी ये बंधन तुम क्या मेरा साथ निभाओगी

अधरालय की त्रिज्या से बात तुम्हारी की जायेगी
नयनों की हर कोन दिशा चित्र तुम्हारे दर्शायेगी
जब पुष्पों की गंध हृदय के भीतर आच्छादित होगी
ऋतुओं की जब भाव-भंगिमा तुमपर आधारित होगी

तब तुम मिलने आओगी क्या मुझसे मिलने आओगी
तोड़ सभी ये बंधन तुम क्या मेरा साथ निभाओगी

यदि मै सात वचन देने का वचन तुम्हारे नाम करूँ
अग्नि धरा जल जीवन अम्बर पवन तुम्हारे नाम करूँ
यदि मै नाम करूँ सब अपना जो भी मैंने पाया है
तुमसे कह दूँ तुम ही सच हो बाकी सब तो माया है

तब तुम मिलने आओगी क्या मुझसे मिलने आओगी
तोड़ सभी ये बंधन तुम क्या मेरा साथ निभाओगी

कविराज तरुण

Tuesday 18 May 2021

ग़ज़ल - बू आ रही है

खतों से अजब आज बू आ रही है
कहीं कोई साजिश रची जा रही है

महकते थे जो वो दहकने लगे हैं
के हर लफ्ज़ साँसों को सुलगा रही है

न रंगों की बातें न फूलों की खुशबू
मुहब्बत नये ढंग अपना रही है

किनारे खड़ा कौन कबतक रहेगा
लहर तेज साहिल से टकरा रही है

बड़ी देर कर दी 'तरुण' आपने भी
ये दुनिया तो कबसे ही समझा रही है

कविराज तरुण

Friday 14 May 2021

शायरी - खंडहर

विरासत में रख लेना ईमारत मेरी
एक उम्र लगी है इसे बनाने में
हर एक ईंट लहू से जोड़ी है
तब ये दीवार खड़ी ज़माने में

कविराज तरुण

Thursday 13 May 2021

गुमान से निकला

अपने खुद के गुमान से निकला
तेरी महफ़िल मकान से निकला

मेरा जाना तो ऐसे जाना है
तीर जैसे कमान से निकला

था चराग़ों सा बंद कमरे में
आज मै आसमान से निकला

जब लिखा था अजाब सहना है
खामखाँ इम्तिहान से निकला

तू भी जिंदा है मै भी जिंदा हूँ
दर्द केवल जुबान से निकला

हीर राँझा फराद शीरी क्यों
तू नये खानदान से निकला

कविराज तरुण

Monday 10 May 2021

नही मिलती

कभी साहिल नही मिलता कभी मंजिल नही मिलती
मेरे ज़ख्मों को जाने क्यों दवा काबिल नही मिलती
के उसका नाम लेता हूँ तो अपने रूठ जाते हैं
मेरी ग़ज़लें रहें तन्हा उन्हें महफ़िल नही मिलती

Saturday 8 May 2021

ना बहलाओ तुम

उसके जैसा चहरा किसका अच्छा ये बतलाओ तुम
चाँद अगर तुम ला सकते हो तो धरती पर लाओ तुम

फूलों की खुशबू तो उसके आने से ही आती है
हाथों में गुलदस्ता देकर हमको ना बहलाओ तुम

मै पागल हूँ आशिक़ हूँ तो दर्द हमारे हिस्से है
चारा साजी कहकर दिल पर मरहम ना सहलाओ तुम

Monday 3 May 2021

बचपन के दिन

बचपन के दिन बहुत याद आते हैं
चलो, हम फिर से वहीं लौट जाते हैं

एक मुद्दत से हँसना भूल गए हम
चलो, दो पल ठहरकर मुस्कुराते हैं

जो लोग इस दौड़ में पीछे छूट गए हैं
चलो, उन्हें मुड़कर आवाज़ लगाते हैं

हक़ीक़त का ये आईना कितना बुरा है
चलो, रेत पर नई तस्वीर बनाते हैं

दौलत शौहरत सियासत में उलझते रहे
चलो, नीम की छाँव तले वक्त बिताते हैं

हमें क्या मिला ? ये सवाल बेहद कठिन है
चलो, जो मिला उसी को आजमाते हैं

कविराज तरुण