Wednesday 31 October 2018

कुछ कविताएं

[10/9, 19:39] कविराज तरुण: विषय- हास्य
विधा- घनाक्षरी

बीवी मेरी आजकल
    फेसबुक चला रही
        एंगल बदल नये
            फोटो भी खिंचा रही

ईयरफोन कान में
    हाथ में एप्पल लिए
        एक हाथ से ही देखो
            रोटी वो बना रही

डीपी करे अपलोड
    रोज रोज रात में ही
        उठते ही भोर भोर
            लाइक करा रही

सखियाँ तो झूठ मूठ
    पुल बाँधे तारीफों के
        करीना भी फेल हुई
            माधुरी लजा रही

सुन सुन यही सब
    पेड़ चढ़ी मैडम जी
        बोलीं सुनो हे पति जी
            टीवी पर आऊँगी

मेरी स्माइल ग़दर
    मेरा स्टाइल ग़दर
        चलचित्र पे धमाके
            रोज ही कराऊँगी

सलमान साथ होगा
    ऋतिक भी पास होगा
        शाहरुख़ के साथ मै
            गीत नया गाऊँगी

परदे की क्वीन बनूँ
    नागिन की बीन बनूँ
        रैप में कभी कभी तो
            सुर मै लगाऊँगी

सुन मेरे होश उड़े
    भूत क्या चढ़ा है इन्हें
        घर बार छोड़ सब
            धुन क्या बजा रही

मैडम जी बात सुनो
    सब मायामोह है ये
        जाने कैसे कैसे स्वप्न
            आप ये सजा रही

फेसबुक का ही सारा
    लगता कसूर सब
        देखो तेरी सखियाँ भी
            कैसे मुस्कुरा रही

छोड़ दो भरम प्रिये
    हाथ तेरे जोड़ता हूँ
        स्वर्ग जैसे घर को क्यों
            नरक बना रही

कविराज तरुण
[10/9, 19:39] कविराज तरुण: अपनी पति (म्यूजिक टीचर) से तंग पत्नी की व्यथा-

कान्हा बने गोपियों के
बाँसुरी बजाओ नही
प्रीत में मगन होके
ऐसे गीत गाओ नही

सत्य है जो प्रेम तेरा
हमसे निभाओ रीत
अनेकता में एकता
पाठ सिखलाओ नही

देशप्रेम , भक्ति , सीख
ऑप्शन धरे हुये हैं
प्यार प्यार प्यार प्यार
ये ही दोहराओ नही

कुंडली सी मारे रहो
घर में पधारे रहो
गीत ये सिखाने कहीं
बाहर तो जाओ नही

अरिजीत के चचा हो
या कहो कि कौन हो जी
प्यार की ही धुन साधो
घर मे तो मौन हो जी

भज के भजन करो
मेरी ओर मन करो
कहीं और ताको नही
नर हो कि ड्रोन हो जी

पति बोला हाथ जोड़
शक न करो सनम
तुम्ही मेरी प्रेरणा हो
तुम्ही मेरा जोन हो जी

गीत मेरा काम धाम
ये ही मेरी जीविका है
रिंगटोन हो कोई भी
तुम्ही मेरा फोन हो जी

कविराज तरुण
[10/19, 16:03] कविराज तरुण: हमको मन के रावण को ,
आज अभी हरना होगा
जीवन की आपाधापी में ,
सत्य राह पर चलना होगा

कठिन नही है अच्छा बनना ,
बुरे कर्म से दूर रहो बस
तिमिर रेख पगडण्डी पर ,
दीप प्रज्ज्वलित करना होगा

चाह अगर स्वर्णबेल सा ,
जीवन चमके सकल धरा पर
तपन सोखते हुए चराचर ,
अगन ताप में गलना होगा

मारो मन के रावण को यूँ ,
कुछ शेष नही अवशेष रहे
सहज भाव समभाव सभी से ,
राम तुम्हे भी बनना होगा

कविराज तरुण

हास्य - फेसबुक

विषय - हास्य
अतुकांत

एक मोहतरमा का फेसबुक पर सन्देश आया
'मै आपसे दोस्ती करना चाहती हूँ'
मन गुलाटी खाने लगा
तीन बार शीशे में शक्ल देखी
पकी दाढ़ी काली लगने लगी
भौं ऊपर तान के आँखों को निहारा
वाह ! क्या कलर चढ़ा है इस बार
झट से फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी
और एक्सेप्ट होने का इंतजार शुरू
डीपी भी नई वाली लगा दी एडिटेड
मोहतरमा ने भी शीघ्र रिस्पांस दिया
और फ्रेंड रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट कर लिया
अजी फिर क्या था जनाब
गुड मॉर्निंग से गुड नाईट तक
तरह तरह की साइट पर
हम चुटकुले और शायरी खोजते रहे
कुछ मन के उदगार भी उन्हें भेजते रहे
और किसी काम में मन कहाँ लगता
उसकी तस्वीर बीवी से छुपछुप कर देखते रहे
वक़्त खिसकता रहा बात बढ़ती गई
हमारी दोस्ती धीरे धीरे प्यार में बदल गई
और मिलने की तारीख आ गई आखिरकार
पर हमारी खुशियाँ बीवी को कहाँ थी गवार
बोली कहाँ जा रहे हो बन ठन के हुजूर
हमें आज शॉपिंग पर चलना है जरूर
हमने बहाने बनाये ऑफिस के और निकल पड़े
ऑनलाइन दोस्त से मिलने को थे बेताब बड़े
पर जब पहुँचे तो खुशियाँ धुआँ हो गई
जाके देखा तो बीवी थी बैठी हुई
बोली आओ हुजूर मिल लो हमसे
बड़े बेताब थे
फेसबुक ने आपके जम कर बनाये
हसीं ख़्वाब थे
अब बोलो क्या बोलोगे
अपना राज-ए-दिल कैसे खोलोगे
मै शर्म से पानी पानी हो गया
पाँव पकड़े और फिर रोने लगा
माफ़ कर दो अब कभी ऐसा होगा नही
तुम ही हो मेरी सबकुछ बोलता हूँ सही
फिर फेसबुक का बुखार यों उतरा
कि अब गलती से भी नजर नही आता हूँ
अब तो फोन भी बीवी की आज्ञा से ही उठाता हूँ

कविराज तरुण

मारने के बाद

मरने के बाद वो मेरा हाल पूछते हैं
कहूँ क्या उनसे जो गुजरा साल पूछते हैं
मेरे मरने के बाद ...

मौत से आखिरी हाजिरजवाबी तक
हमने जिनकी राह मे पलकें बिछाई थी
वो मेरी चिता के सामने कह रही हैं
आज तेरे प्यार को मै समझ पाई थी
आज ले ली हमने रुखसत तो उन्हें इकरार हुआ
जब हम ही न रहे उन्हें हमसे प्यार हुआ

फिर बड़ी मासूमियत मे वो खुदा से सवाल पूछते हैं
मरने के बाद वो मेरा हाल पूछते हैं
मेरे मरने के बाद ...

मेरी नज़रों को तेरी तलाश रहती थी
इन साँसों को तेरी खुशबू की आस रहती थी
पर तू तो मेरे खत को भी बकवास कहती थी
मेरी चाहतों को सिर्फ एक प्यास कहती थी

और आज प्यासे जब खड़े वो मेरे सामने तो चाहतों भरा वो ताल पूछते हैं
मरने के बाद वो मेरा हाल पूछते हैं
मेरे मरने के बाद ...

जिनके इनकार ने मुझे बेहद रुसवा किया
मेरे इस दिल को मुझसे ही तनहा किया
गम का ऐसा ज़हर मुझे दे दिया
जिसको पीकर मै एक पल न जिंदा रहा

अब वो कैसे हुआ मेरा इन्तेकाल पूछते हैं
मरने के बाद वो मेरा हाल पूछते हैं
मेरे मरने के बाद ...

वरमाला तो तू मुझको दे न सकी
दो फूल चिता पर दे देना
अगणित आंसू का क़र्ज़ चढ़ाया है
तुम एक अश्रु से धो देना

अब कैसे थमेगी ये आंसुओं की बाढ़ पूछते हैं
मरने के बाद वो मेरा हाल पूछते हैं
मेरे मरने के बाद ...

अब वो कहते हैं तेरे बिन न जिंदा रहेंगे
इस विरह की अगन मे कबतक जलेंगे
बहुत हो चुका जुदाई का आलम
इस मिलन के लिए आज हम भी मरेंगे

इसतरह वो जीवन मरण का जंजाल पूछते हैं
मरने के बाद वो मेरा हाल पूछते हैं
मेरे मरने के बाद ...

Saturday 27 October 2018

वो पहली मुहब्बत

122 122 122 122

जो पहली दफ़ा थे तुम पास आये
क्या हालत हुई थी तुम्हे क्या बतायें
करो कितनी कोशिश
मगर जान लो तुम
वो पहली मुहब्बत भुलाई न जाये

ये रफ़्तार दिल की भी बढ़ने लगी थी
हाँ कितनी सुहानी वो अपनी घड़ी थी
कहो चाहे कुछ भी
मगर मान लो तुम
वो पहली मुहब्बत ही सबसे खरी थी

वो बारिश के टीलों पे पैरों की छनछन
मेरे साथ भीगा फुहारों में मधुबन
भिगो चाहे जितना
मगर जान लो तुम
वो पहली मुहब्बत का पहला था सावन

हवाओं में हल्की सी बरसात होगी
जो सहमी हुई सी अगर रात होगी
लगे चाहे जो भी
मगर मान लो तुम
वो पहली मुहब्बत की ही बात होगी

कविराज तरुण

Monday 22 October 2018

दर्द की शायरी पार्ट 1

ये चाँद सूरज मेरे घर नही आते
जबतलक ये तेरी खबर नही लाते
मौत गुजरती है आबरू खोकर
एक हम हैं जो गुजर नही पाते

कविराज तरुण

फिर दवा के नाम पर ये खता करी गई
यार जब मिले मुझे तब शराब पी गई
बेवफ़ा नही नही ! और कोई नाम दो
मिल गया उसे कोई और वो चली गई

कविराज तरुण

अब भी मेरे सवाल से तुम
बच रही हो क्या
क्यों आजकल नजर नही आती
बिजी हो क्या

ये मेरा दिल यहाँ वहाँ
लगता नही है क्यों
तुम ये बताओ इस जहाँ मे
आखिरी हो क्या

कविराज तरुण

इस दिल मे जो दर्द है
यकीनन उसकी बदौलत है
ये फनकारी मेरा शौक नही
ये मेरे तन्हाई की तंग सूरत है

क्यों दवा और ये दुआ
काम भी नही करती
ऐसा लगता है मुझे
उसकी ही जरूरत है

कविराज तरुण

फरेबी का ये हुनर कभी
सिखा देना हमें
मुनासिब हो तो एकबारगी
हँसा देना हमें

मिलो जो हमसे पहचानो
जरूरी तो नही
नजर झुका के ये मज़बूरी
बता देना हमें

कविराज तरुण

मेरी आवाज तुम तक पहुँचे तो बता देना
या यूँ करना कि हल्के से मुस्कुरा देना

हवा का तंज बदलेगा यकीनन यहाँ पर
एक काम करना दुपट्टे को ज़रा सा लहरा देना

-० कविराज तरुण ०-

जिंदगी सिर्फ रात का सफर नही होती
इसका अपना इक सबेरा भी है
तुममे तुम्हारा है सबकुछ नही
कहीं पर कुछ तो मेरा भी है

साल महीने हफ्ते दिन लम्हे
जो भी मेरे संग बिताये तुमने
यादों के चिलबन से तुम झाँक लेना
खुशियों का उसमे बसेरा भी है

-० कविराज तरुण ०-

Friday 5 October 2018

मतला और शेर - मंजिल

अर्ज़ है

वक़्त आयेगा तेरा थोड़ा तो इंतज़ार करो
मंजिलों से ना सही पर सफर से प्यार करो

ये मेरे बस का नही छोड़ो न ये बात सनम
कोशिशें करते रहो खुदपर तो इतबार करो

कविराज तरुण । 9451348935