Thursday 20 December 2018

ग़ज़ल - कुछ भी नही

*ग़ज़ल - कुछ भी नही*
2122 2122 2122 212

छोड़कर तेरी गली अब आसरा कुछ भी नही
मौत से इस जिंदगी का फासला कुछ भी नही

खामखाँ ही आँख में सपने सजाये बारहां
ये कहाँ मालूम था होगा भला कुछ भी नही

वो बड़ा खुदगर्ज जिसपे दिल हुआ ये आशना
धड़कनें अपनी बनाकर दे गया कुछ भी नही

हम कसीदे प्यार के पढ़ते रहे ये उम्रभर
वो शिकायत ये करें हमने किया कुछ भी नही

डूबना था हाय किस्मत रोकता मै क्या भला
कागजी सी नाँव पर था काफिला कुछ भी नही

चाँद तारे आसमाँ क्या क्या नही छूटा तरुण
एक तेरे छूटने से है बचा कुछ भी नही

कविराज तरुण

Sunday 16 December 2018

गीत - तुम्हे देने आया

मै मधुबन के गीतों का अधिकार तुम्हे देने आया
जो भी मुझमे संचित है वो प्यार तुम्हे देने आया

अंतस के अभ्यास जगत में चित्रों की अलमारी है
सपनों ने कोशिश तो की पर तू सपनों पर भारी है

मधुर मधुर अनुभूति हृदय में मंद मंद मुस्कान खिली
निद्रा में वशीभूत नयन के दर्पण को पहचान मिली

स्वप्नलोक का अपना ये संसार तुम्हे देने आया
जो भी मुझमे संचित है वो प्यार तुम्हे देने आया

संरक्षित है बातें तेरी हिय के कोने कोने तक
आरक्षित स्थान प्रिये धड़कन के खंडित होने तक

तू उपवन का अंचल तेरी पुष्प सरीखी काया है
मुझमे अंकित भाव विटप की तू आह्लादित छाया है

मै शब्दों के पुष्पों का भंडार तुम्हे देने आया
जो भी मुझमे संचित है वो प्यार तुम्हे देने आया

प्रणय प्रेम की बेला में अनुरोध यही तुमसे प्रियवर
वैदेही का रूप धरो तुम और बनूँ मै भी रघुबर

साथ चलूँ जन्मों जन्मों तक नेह सूत्र के बंधन में
रिक्त रहे अवशेष नही कुछ भर दो मधुरस जीवन में

अपने प्रीत की प्रतिमा को विस्तार यहाँ देने आया
जो भी मुझमे संचित है वो प्यार तुम्हे देने आया

मै मधुबन के गीतों का अधिकार तुम्हे देने आया
जो भी मुझमे संचित है वो प्यार तुम्हे देने आया

कविराज तरुण

Friday 14 December 2018

गीत - पहली दफा

फोन पर पहली दफा जब सर्दियों में , आपने दिल खोलकर के बात की थी
सो गया था चाँद भी उस चाँदनी में , और हमने जागकर ये रात की थी

चुस्कियाँ थी चाय की मेरी तरफ से , और कॉफी हाथ में तेरे सजी थी
जानती क्या ठंड में सहमी रजाई , गर्म प्याली से बड़ी जलने लगी थी

मेघ कोसों दूर मौसम था सुहाना , बारिशों का था नही कोई ठिकाना
एक तुम भीगे वहाँ पर और इक हम , बादलों ने इसतरह बरसात की थी

मै अँधेरे में दिया चाहत का लेकर , आपका श्रृंगार मन में गढ़ रहा था
जो लिखा था आपकी आवाज ने तब , मूक रहकर ही उसे मै पढ़ रहा था

सुन रहा था आसमाँ लेकर सितारे , जुगनुओं की भीड़ दोनों को पुकारे
पर हमें क्या ध्यान ऐसे खो गये थे , खूबसूरत प्यार की शुरुआत की थी

कविराज तरुण

Monday 10 December 2018

गीत - मै अल्हड सा सावन हूँ

मै अल्हड़ सा सावन हूँ और तू गंगा की धारा है
यूँ लगता है पाकर तुमको तू ही तो जग सारा है

क्या चमकेंगे हीरे मोती क्या चमकेगा कोई रतन
तू चंदा की नवल चाँदनी में लिपटा अंगारा है

खुद से प्यार किया था मैंने अबतक अपने जीवन में
तुमसे मिलकर भान पड़ा है तू जड़ है तू चेतन में
मुझमे तेरा अंश छुपा है दिल की धड़कन कहती है
अब मुझको खुद से भी ज्यादा तू इतना क्यों प्यारा है

मै अल्हड़ सा सावन हूँ और तू गंगा की धारा है
यूँ लगता है पाकर तुमको तू ही तो जग सारा है

अबतक थी जो घोर उदासी उसका अंत निकट आया
तेरे बिन वैरागी मै तू , मेरे मन की माया है
धूप घनी थी जीवन में , राह कठिन थी पास मेरे
मन को मेरे चैन मिला तू , शीतल ठंडी छाया है

रंगों में खिलता ये यौवन , फूलों से भी नाजुक तुम
आसमान की वृहद दिशा में , तू स्वर्णिम सा तारा है

मै अल्हड़ सा सावन हूँ और तू गंगा की धारा है
यूँ लगता है पाकर तुमको तू ही तो जग सारा है

कविराज तरुण

Friday 7 December 2018

पायल

पायल की झंकार तुम्हारी याद दिलाती है
रुनझुन रुनझुन ध्वनि कानों में जब भी आती है

याद तुम्हे क्या है वो दिन जब चाँदी की पायल दी थी
घंटों उसकी सुंदरता की तुमने तब बातें की थी

कभी नचाती हाथ में अपने कभी बाँधती मुठ्ठी में
सारेगामा का स्वर बजता तेरी हर एक चुटकी में

मेरे हाथ से प्रियतम तुमने पहनी थी पायल कैसे
यही सोचता रहता हूँ भीतर घर में बैठे बैठे

आज भी पायल लाया हूँ ये तुम्हे बुलाती है
पायल की झंकार तुम्हारी याद दिलाती है

कविराज तरुण

Thursday 6 December 2018

ग़ज़ल - कर गए

जोश भरकर इन रगो में खून ताजा कर गये
जिंदगी अपनी लुटाकर हमसे वादा कर गये

मौत बोलो क्या करेगी सोच मर सकती नही
लौटकर आऊँगा फिर से ये इरादा कर गये

लाल वो माँ भारती के वीरता की ज्योति थे
इस अँधेरे कुंड में भी वो उजाला कर गये

देश को जो तोड़ने की बात करता है सुनो
प्राण के बलिदान से वो जोड़ सारा कर गये

उन शहीदों को नमन जो जान देते हैं तरुण
कर्म से जो माँ का आँचल ही सितारा कर गये

कविराज तरुण

Monday 3 December 2018

बोलता ही रहा

212 212 212 212 212 212 212 212

प्यार की बात मै रोज ही रात में , चाँद के सामने बोलता ही रहा
जो मुझे छोड़कर चैन से सो रहा , मै उसे स्वप्न में खोजता ही रहा

कर सके ही कहाँ हाल-ए-दिल का बयां , दोस्तों वो नही अब मेरे हमनवां
राज थे यूँ कई उल्फ़तों मे दबे , मै उठा और दिल डोलता ही रहा

*प्यार की बात मै रोज ही रात में , चाँद के सामने .. ला लला ला लला*

कोशिशें दुश्मनों ने करी थी बहुत , हार का स्वाद वो पर चखा ना सके
उसने ऐसा रचा खेल ये प्रेम का , जीत थी द्वार पर छोड़ता ही रहा

जब भी कोई ख़ुशी पूँछती थी पता , बस यही गम रहा बस यही थी खता
भेजता मै रहा जिस गली तू चली , और तू प्यार को तोलता ही रहा

*प्यार की बात मै रोज ही रात में , चाँद के सामने .. ला लला ला लला*

है यही भेद बस चाहतों में सनम , है यही खेद बस राहतों में सनम
तुम घटाती रही मेरी हर याद को , मै तुम्हारा असर जोड़ता ही रहा

प्यार की बात मै रोज ही रात में , चाँद के सामने बोलता ही रहा
जो मुझे छोड़कर चैन से सो रहा , मै उसे स्वप्न में खोजता ही रहा

कविराज तरुण

दूसरा नही होता

इश्क़ ये दूसरा नही होता
दूर वो है जुदा नही होता
            जाने क्या कुछ रही खता मेरी
            यार अब वो ख़फ़ा नही होता
शाम मिलती है बनके गैरों सी
और अब कुछ बुरा नही होता
            रोज चादर में छुपके रोता हूँ
            दर्द लेकिन फ़ना नही होता
एक मुद्दत लगी मनाने में
प्यार का ये सिला नही होता
            रूठना फिर से तो नही आना
            सोचता हूँ मना नही होता
क्यों तरुण यूँ उदास रहता हूँ
शख्स आखिर खुदा नही होता

कविराज तरुण