Friday 27 January 2017

ग़ज़ल 2122x4 हो गयी हो

बहर 2122 2122 2122 2122 पर प्रथम प्रयास
रदीफ़ - हो गयी हो
काफ़िया- आरी

हम हुए हैं आपके औ तुम हमारी हो गई हो ।
आँधियों के बाद वाली रात प्यारी हो गयी हो ।।

चंद लफ़्ज़ों में बनाया आपको अपना ख़ुदा है ।
फ़ासलों को तोड़ के मेरी दुलारी हो गयी हो ।।

कश्तियों को ही पता है मौज क्या है साहिलों की ।
मंजिलों की चाह में अब तुम खुमारी हो गयी हो ।।

आशियाँ ये प्यार का मेरे दिली व्यापार का है ।
पान से लिपटी हुयी भींगी सुपारी हो गयी हो ।।

चाहतों की रेख से तुमको बनाया शौख से है ।
जीवनी मेरे लिये एक चित्रकारी हो गयी हो ।।

कविराज तरुण सक्षम

Saturday 7 January 2017

ग़ज़ल सजा लीजियेगा

ग़ज़ल
रदीफ़ - लीजियेगा
काफिया- आ
बहर 122 122 122 122

अगर रूठ जाऊँ मना लीजियेगा ।
सबक प्यार का ये बना लीजियेगा ।।

झलकती अगर हो हया की पियाली ।
निगाहों से' अपने हटा लीजियेगा ।।

मुझे प्यार की बात सरगम की' चाहत ।
मुताबिक जहन के गुनगुना लीजियेगा ।।

सनम तुम दुआ हो दवा भी तो' तुम हो ।
पनाहों मे' भरकर सजा लीजियेगा ।।

गवारा नही पास आकर के' जाना ।
मुझे आज अपना बना लीजियेगा ।।

*कविराज तरुण सक्षम*

Thursday 5 January 2017

ग़ज़ल लीजिये जी

एक प्रयास

ग़ज़ल : लीजिये जी
बहर : 122 122 122 122
रदीफ़ : लीजिये जी
काफिया : थ

हिमालय से' ऊँचा ये' कद कीजिये जी ।
बदलने समय की शपथ लीजिये जी ।।

अगर हो सुराही भी' पानी की' प्यासी ।
डुबोकर के' पनघट मे' मथ लीजिये जी ।।

नही है मुनासिब यूं' घुट घुट के मरना ।
गिराकर दिवारों से' पथ लीजिये जी ।।

गिरें जो इरादों से' अपने हवाले ।
मुमकिन अगर हो तो' रथ लीजिये जी ।।

कविराज तरुण सक्षम

Wednesday 4 January 2017

ग़ज़ल दुबारा

*ग़ज़ल -- मुहब्बत दुबारा*

बहर -122 122 122 122
रदीफ़ - दुबारा
काफिया - त

मिलेगी नही ये मुहब्बत दुबारा ।
करेंगे नही फिर इबादत दुबारा ।।

ये' माना सफर में कई हमसफ़र हैं ।
चलेंगे नही पर नसीहत दुबारा ।।

है' मिलता कहाँ अब शरीफो को' मौका ।
करेंगे नही हम शराफ़त दुबारा ।।

अगर दिल की' बाते ये' तुम जान जाती ।
न करती ज़रा भी बगावत दुबारा ।।

न समझा सकूँगा मै' कुछ भी यहाँ पर ।
जुबां से समझ लो ये' चाहत दुबारा ।।

मिलेगी नही ये मुहब्बत दुबारा ।
करेंगे नही फिर इबादत दुबारा ।।

कविराज तरुण सक्षम

Tuesday 3 January 2017

ग़ज़ल अजी आप भी

ग़ज़ल (बहर 122 122 122 122)

अजी आप भी आके इस दिल मे रहिये ।
जुबां के बिना ही निगाहों से कहिये ।।
नहीं और कुछ भी है मुझको सहारा ।
मेरी धड़कनों को ज़रा आप सुनिये ।।

अजी आप भी आके इस दिल मे रहिये ।

मुलाक़ात की कोई सूरत नही है ।
ये माना हमारी जरूरत नही है ।।
घनी भीड़ लगती सदा ही तुम्हारे ।
मगर पास आके दो पल ठहरिये ।।

अजी आप भी आके इस दिल मे रहिये ।

कविराज तरुण सक्षम

Monday 2 January 2017

धुंध

धुंध

इस धुंध को थोड़ा हट जाने दो
राह नज़र भी आयेगी
पाती पाती पग पोछेगी
पाथर की पीर मिटायेगी

हो विस्मित क्यों अँधियारे से
सूरज की रश्मी आने दो
निष्काम निवृत्ति निराशित नर
आशाओं का दीप जलाने दो

है छलनी मन बिनरस जीवन
तिमिर रेख में धुँधला आँगन
संकल्प साध सुरमय सावन
कर निर्भय हो तनमन पावन

फिर ओस जमेगी पल्लव पर
तरु डाली थोड़ा झुक जायेगी
इस धुंध को थोड़ा हट जाने दो
राह नज़र भी आयेगी

कविराज तरुण सक्षम
9451348935

Sunday 1 January 2017

सुनहरे पल

शीर्षक - सुनहरे पल

मधुर मन की मधुर हलचल
सुनहरे पल
कभी बारिश कभी बादल
सुनहरे पल
थकते नही जब पाँव चल चल कर
सुनहरे पल
हो प्यार के अविरल भाव निश्छल
सुनहरे पल

तबियत बोलती है
खोलती है नयनो के विराम
होंठो की सहज प्याली
घोलती है कुसुमरस के विधान
गालों पर खिली लाली
आतुर मन के देती है प्रमाण
हर एक कृत्य मे खुशहाली
भरे पावन छलकते हैं निशान

नजर आता अनोखा क्षितिज व तल
सुनहरे पल
सीमित दायरे को मिलता असीमित बल
सुनहरे पल
मानव के जीवन का है संबल
सुनहरे पल
मधुर मन की मधुर हलचल
सुनहरे पल

कविराज तरुण सक्षम
9451348935