आत्मनिर्भर भारत
ये एक दौर है तुम इसे बीत जाने दो
बुरा वक्त तो आता है और निकल जाता है
जिसने दूसरों को हँसने के मौके दिए
एक न एक दिन वो जरूर मुस्कुराता है
तुम्हे किस बात की फिक्र है
तुम्हे किस चीज़ पर ऐतराज है
ऐसा कौन है जो कभी हारा नही
ऐसा कौन जो हुआ बे-सहारा नही
पर खुद को तो संभालना पड़ता है
अपने आप को निखारना पड़ता है
मुसीबतों से घबराकर आखिर क्या होगा
इन्हीं हाथों से मुकद्दर सँवारना पड़ता है
पाँचो उँगलियाँ बराबर नही होतीं
हर मौसम एक जैसे नही होते
सही मौके की तलाश में चलते रहो तो
मंजिल की ओर बढ़ता रास्ता नजर आता है
ये एक दौर है तुम इसे बीत जाने दो
बुरा वक्त तो आता है और निकल जाता है
जिसने दूसरों को हँसने के मौके दिए
एक न एक दिन वो जरूर मुस्कुराता है
डर तो लगता है इसमे कोई नई बात नही
सूरज कल दस्तक देगा हमेशा ये रात नही
बस एक उम्मीद का दिया जलाना जरूरी है
जो हो गया सो हो गया उसे भुलाना जरूरी है
अपनी ताकत पहचानो और जमकर प्रयास करो
काबिल नही हो अगर तो भी अभ्यास करो
ऐसा कुछ भी नही जो तुम कर नही पाओगे
इन्ही कदमों से एकदिन फलक छू के आओगे
बस 'आत्मनिर्भर' होने का अहसास जरूरी है
अपने हौसलों पर ज़रा सा विश्वास जरूरी है
फिर देखना तस्वीर बदल जायेगी देश की जहान की
तुम्हारे हाथों मे छुपी है तकदीर हिंदुस्तान की
ये एक दौर है तुम इसे बीत जाने दो
बुरा वक्त तो आता है और निकल जाता है
जिसने दूसरों को हँसने के मौके दिए
एक न एक दिन वो जरूर मुस्कुराता है
तरुण कुमार सिंह
(कविराज तरुण)
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