Thursday 30 December 2021

ग़ज़ल - ठीक है

हरकतें भी ठीक हैं और ये नज़र भी ठीक है
इक दफ़ा हो घूमना तो ये शहर भी ठीक है

सुब्ह-शामों पर लिखी नज़्में मुबारक हो तुम्हें
हम मिजाजी हैं ज़रा तो दोपहर भी ठीक है

तल्ख़ काँटों से भरी है ये डगर तो क्या हुआ
साथ है तेरी दुआ तो ये सफर भी ठीक है

वो पुरानी तख्तियों पर दिल बने हैं आज भी
वो पुरानी चिट्ठियों का डाकघर भी ठीक है

इश्क़ तेरी चाह में भटका रहा मै उम्रभर
दरबदर मै ठीक हूँ वो बे-खबर भी ठीक है

इक दफ़ा हो घूमना तो ये शहर भी ठीक है