Thursday 29 October 2020

ग़ज़ल - मुहब्बत

#ग़ज़ल - #मुहब्बत
#कविराजतरुण
#साहित्यसंगमसंस्थान

मुहब्बत में कोई भी पेशकश तो की नही जाती
अगर हो फूल कागज का तो फिर खुशबू नही आती

बना लोगे बहाने तुम मगर ये हो न पायेगा
जहाँ पर दिल नही लगता वहाँ नींदें नही आती

जो अपने इश्क़ को ही मान बैठा है खुदा बिस्मिल
उसे हर चीज मिल जाये मगर कुछ भी नही भाती

ज़रा सा चाँद पर बादल का पहरा और छाने दो
मुसीबत के बिना तो दिल्लगी भी हो नही पाती

'तरुण' हर दीन मजहब से यही तुम बोल कर आना
मुहब्बत से किसी भी धर्म की इज्जत नही जाती

चलो कुछ सोचते हैं

#विषय - #चलोकुछसोचतेहैं
#गीत
#कविराजतरुण
#साहित्यसंगमसंस्थान

चलो कुछ सोचते हैं आज नूतन
बजे जिससे खुशी के साज नूतन

बुरा कुछ भी नही सबका भला हो
महकते फूल से हर घर सजा हो
किसी को चोट ना पहुँचे कभी भी
कि मन को जीत लेने की कला हो
मिठाई सी लगे आवाज नूतन

चलो कुछ सोचते हैं आज नूतन
बजे जिससे खुशी के साज नूतन

करे सम्मान सबकी भावना का
विचारों की नई आराधना का
कदम मिलकर बढ़ाएं साथ ऐसे
कि पूरा हो मनोरथ साधना का
मिले सबको खुशी का ताज नूतन

चलो कुछ सोचते हैं आज नूतन
बजे जिससे खुशी के साज नूतन

सितारों सा सदा तुम जगमगाना
कि चिड़ियों से सदा ही चहचहाना
न डरना तुम ज़रा भी मुश्किलों से
हवाओं में खुशी के गीत गाना
बदलना तुम नही अंदाज नूतन

चलो कुछ सोचते हैं आज नूतन
बजे जिससे खुशी के साज नूतन