Wednesday 6 March 2024

कविता - नारी जीवन || कविराज तरुण

कविता - नारी जीवन || कविराज तरुण || 7007789629

नारी जीवन बहुत कठिन है पग पग देखभाल के चलना
बेटी बनकर बाबुल के घर उनकी सारी चिंता हरना

बड़े भाई की निगरानी में अपने सारे फर्ज निभाना
और छोटे की माँ बन करके भले बुरे का भेद बताना
दादा दादी चाचा ताऊ सब रिश्तों में घुल मिल जाना
पापा की नित सेवा करना और मम्मी का हाथ बटाना

फिर इक दिन बाबुल के घर से दुल्हन बनकर दूर निकलना
नारी जीवन बहुत कठिन है पग पग देखभाल के चलना

पियहर में रिश्तों की डोरी नाजुक है ये भान उसे है
ननद जिठानी सास ससुर का हरदम रहता ध्यान उसे है
सबके हित का सोच रही वो सबका ही सम्मान उसे है
संग पिया के रहना उसको केवल ये अरमान उसे है

प्रेम भाव में प्रियतम से ही उसका लड़ना और झगड़ना
नारी जीवन बहुत कठिन है पग पग देखभाल के चलना

हालांकि उसके जीवन में भी सपनों का अम्बार बहुत है
उसके अंदर क्षमता इतनी जीवन में किरदार बहुत है
देख रही वो ऑफिस बिजनस देख रही परिवार बहुत है
उसे सफलता के पर्वत पर जाने का अधिकार बहुत है

यही सोचकर चलते रहना जीवन पथ पर आगे बढ़ना
नारी जीवन बहुत कठिन है पग पग देखभाल के चलना

Tuesday 5 March 2024

ग़ज़ल - उसकी मासूमियत

ग़ज़ल - उसकी मासूमियत || कविराज तरुण || 7007789629

उसकी मासूमियत पर फ़िदा हो गए मेरे अल्फाज़ भी मेरे ज़ज़्बात भी
हम उसे देखकर ये कहाँ खो गए अब कटेगी नही मेरी ये रात भी

अब के मुस्का के तुमने जो देखा मुझे तो मै दिल को भला कैसे समझाऊंगा
मुझको डर है कहीं दिल ना दे दूँ तुम्हें कितने नाजुक हुए मेरे हालात भी

यूँ तो मुश्किल भरा है सफर ये मेरा आप आओगे तो रोशिनी आएगी
गूँज जायेगी ऐसे गली ये मेरी जैसे गलियों में गूंजे ये बारात भी

एक तो तू हसीं उसपे ऐसी अदा उसपे आवाज में मदभरा ये नशा
उसपे मौसम का ये जादुई पैतरा आज हद करने आई है बरसात भी

जबसे लिखने लगा हूँ तुम्हें नज़्म में सब मुबारक मुबारक ही कहने लगे
हो गए हैं रुहानी मेरे शेर भी हो गए हैं रुहानी ये नगमात भी

ग़ज़ल - थोड़ा धीरे धीरे

ग़ज़ल - थोड़ा धीरे धीरे || कविराज तरुण || 7007789629

सच को झूठ बताना है और वो भी थोड़ा धीरे-धीरे
दुख में भी मुस्काना है और वो भी थोड़ा धीरे-धीरे

वक़्त लगेगा कहते कहते ज़ख्म मेरा गहराया है
पर मुझको दर्द छुपाना है और वो भी थोड़ा धीरे-धीरे

एक नही दो बार नही ना जाने कितनी बार हुआ
फिर भी उसे मनाना है और वो भी थोड़ा धीरे-धीरे

इश्तहार में निकला है कल नाम हमारा महफिल से
ये तुमको भी दिखलाना है और वो भी थोड़ा धीरे-धीरे

इक बार इजाजत दो मुझको तो दुनिया तेरे नाम करूँ
ये बातें करते जाना है और वो भी थोड़ा धीरे-धीरे