Friday, 30 May 2014

पापा

ऊँगली पकड़कर चलना सीखा
विपदाओं से लड़ना सीखा
पापा की राहों पर कदम बढ़ाकर
मैंने शिखर पर चढ़ना सीखा
आदर्श मेरे बस आप ही हो
खुशियों का स्रोत सदा बस आप ही हो
आप की छाया सदा रहे बस
फूल सा मैंने खिलना सीखा
नमन आपको पापा मेरे
भगवान से बढ़कर पापा मेरे
भवबाधा से मैंने उबरना सीखा
जीवन में कुछ करना सीखा
उंगली पकड़कर चलना सीखा

--- कविराज तरुण

Friday, 23 May 2014

कुछ कह सकूँ

या तो शहर दो कोई दूसरा
या वजह दो दूसरी कि मै यहाँ रह सकूँ
या तो ख़ुशी दो कोई दूसरी
या हौसला दो मुझे कि ये गम सह सकूँ
आवाज़ नज़रंदाज़ करके देख चुका
एक नया आगाज़ करके देख चुका
तस्वीर से नज़रें फिरा के देख चुका
खुद से तुमको चुरा के देख चुका
अब तो बस उमर दो कोई दूसरी
या इस दिल में असर दो कि कुछ कह सकूँ
या तो शहर दो कोई दूसरा
या वजह दो दूसरी कि मै यहाँ रह सकूँ

--- कविराज तरुण

Monday, 19 May 2014

कैसे तुम अपना मुँह छिपाओगे

न दिल मिला न दिल्ली
'आप' की उड़ गई खिल्ली
अब भाग के कहाँ जाओगे
कैसे तुम अपना मुँह छिपाओगे ।
गंगा में लुटिया डूबी
गायब दिल्ली और यू पी
जमानत अब कैसे दिलवाओगे
कैसे तुम अपना मुँह छिपाओगे ।
पंजाब में खुल गया खाता
बाकी जगहों पर चाटा
मीडिया को क्या बतलाओगे
कैसे तुम अपना मुँह छिपाओगे ।
विश्वास का ड्रामा फ़िल्मी
सांप्रदायिक शाजिया इल्मी
गुल पनाग को फिर लड़वाओगे
कैसे तुम अपना मुँह छिपाओगे ।
पाने दिल्ली का शासन
थामके कांग्रेस का दामन
एकबार फिर तुम पछताओगे
कैसे तुम अपना मुँह छिपाओगे ।
--- कविराज तरुण