हसरतो पर लगाम लगाना नही आता ।
मै खुश हूँ मगर मुस्कुराना नही आता ।।
जो मिला जब मिला और जैसे मिला ...
ना किसी से शिकवा ना कोई गिला ...
अश्क आये तो उन्हें पलको में छिपाना नही आता ।
झूठे सपने इन आँखों मे सजाना नही आता ।
हसरतो पर लगाम लगाना नही आता ।
मै खुश हूँ मगर मुस्कुराना नही आता ।।
लोग कहते हैं इश्क छिपाए नही छिपता ...
सावन के अंधे को कुछ और नही दिखता ...
उतर जाती है हिना भी हथेली पर चढ़कर ...
रंग मोहब्बत का दिल से यार नही रिसता ...
बिक जाते हैं शहंशाह भी मुफलिसी में अक्सर ...
किसी कीमत मे मगर ये प्यार नही बिकता ...
पर फिरभी इस प्यार को आजमाना नही आता ।
जो है वो दिल मे है यूँ सरेआम दिखाना नही आता ।
सच है हमे रूठों को मनाना नही आता ।
ये भी सच है किसी को रुलाना नही आता ।
हो जाए गलती तो बस सुधार लेते हैं ।
बेवजह किसी को समझाना नही आता ।
हसरतो पर लगाम लगाना नही आता ।
मै खुश हूँ मगर मुस्कुराना नही आता ।।
--- कविराज तरुण
Wednesday, 24 September 2014
नही आता
Tuesday, 23 September 2014
बँटवारा
पहले बड़े प्यार से हम रोटी बांटा करते थे ।
आज देखो हम अपना ये घर बाँट रहे हैं ।
किसी के हिस्से मे आ जाए ना ज्यादा
इसी उधेड़बुन मे हर एक कोना नाप रहे हैं ।
आज देखो हम अपना ये घर बाँट रहे हैं ।।
ये आँगन जिसमे सीखे सब खेल खिलवाड़ ...
आज इसके बीच खिच गई है दीवार ...
और वो छज्जे जिसपर लटक कर गुलाटी मारते थे ...
अब उसे हथियाने के लिए लाठी मार रहे हैं ।
आज देखो हम अपना ये घर बाँट रहे हैं ।।
चाँदनी रातों का पहरा...
भाइयों का प्यार गहरा...
तारों मे शक्ल बनाना...
एक दुसरे से लड़ना-मनाना...
अब जब समझदार हुए हैं तो छत की ऊँचाई भांप रहे हैं ।
आज देखो हम अपना ये घर बाँट रहे हैं ।।
लुकाछुपी करते थे दीवारों के पीछे...
टॉफ़ी छुपा देते थे बिस्तर के नीचे...
खीर किस प्लेट मे कम है किसमे है ज्यादा ...
हालाँकि छीनने का किसी का नही था इरादा ...
पर सबकुछ भूलकर हम अपनी जड़े काट रहे हैं ।
आज देखो हम अपना ये घर बाँट रहे हैं ।।
--- कविराज तरुण
Saturday, 6 September 2014
फ़लसफ़ा
अंधेरों को चीरता आया हूँ मै
फिर एक फ़लसफ़ा लाया हूँ मै
मुद्दतें गुजर गई जिसको जलाने मे
वो चिराग-ए-रोशिनी तेरे दिल मे सजाया हूँ मै ।
वो रुक रुक के लेती रहती वफ़ा का इम्तेहां
मै बुझ बुझ के देता रहा जलने का निशां
तब कहीं जाकर तुमको मुकद्दर बनाया हूँ मै
अंधेरों को चीरता आया हूँ मै ।
हाँ मगर वक़्त लगा दिल में जगह बनाने मे
कसर ही कहाँ छोड़ी तुमने हमे आजमाने मे
और अब देखो हँसते हुए कैसे निखर आया हूँ मै
अंधेरों को चीरता आया हूँ मै ।
--- कविराज तरुण
Wednesday, 3 September 2014
online
तेरे online होने का इंतज़ार किया करता हूँ ।
watsapp को रोज मै घड़ी घड़ी तकता हूँ ।
न जाने कब आ जाए तेरा प्यार भरा message ...
इसी उम्मीद मे data को off नही करता हूँ ।
जब भी notification की ringtone बजती है ।
मेरे दिल की घंटी⏰ भी trinn trinn करती है ।
जवाब क्या भेजूँ तेरे question का हरदम...
इसी उधेड़बुन मे मेरी battery�� सुलगती है ।
मेरे थोक भरे messages से जब होती हो hyper ।
autostart हो जाता है आँखों का wiper ।
और दिल मे viberation सी alert होने लगी ...
हालत हो जाती है जैसे बच्चा बिन dyper ।
पर smiley तेरी जब kiss वाली आती है ।
मेरी profile pic तब ख़ुशी से इतराती है ।
और status की शब्दावली झट से बदल जाती है ...
sweet भरे message मे यूँही रात�� गुजर जाती है ।।
--- कविराज तरुण