Sunday, 25 October 2015

तू मेरी जरुरत है

जरूरी है तेरी हँसी मेरी उमर के लिये
नदिया जरूरी है जैसे समंदर के लिये
बस इतनी इबादत है ...
तू मेरी जरुरत है ।
हाँ तुमसे मोहब्बत है ।।

जरूरी है इन आँखों को तुमसे आराम मिले
सपनो की दुनियां मे तेरा ही नाम मिले
तुमसे ही सब रहमत है ...
तू मेरी जरुरत है ।
हाँ तुमसे मोहब्बत है ।।

ये आशिक़ी ये बेरुख़ी सब तुम्हारे लिये
कबसे खड़े हैं तलहटी में किनारे लिये
तेरे आने की आहट है ...
तू मेरी जरुरत है ।
हाँ तुमसे मोहब्बत है ।।

पहचान है तुझी से अनजान हैं शहर के लिये
खोये यूँ ख़्यालों में अनजान हर पहर के लिये
तू मेरी हक़ीक़त है ...
तू मेरी जरुरत है ।
हाँ तुमसे मोहब्बत है ।।

तमाम उम्र गुजार देते हैं लोग जिस असर के लिये
वो नशा कुछ भी नही तेरी एक नज़र के लिये
इन नज़रो की चाहत है ...
तू मेरी जरुरत है ।
हाँ तुमसे मोहब्बत है ।।

कविराज तरुण

थोड़ा दर्द तो चलता है

थोड़ा दर्द तो चलता है ...
खुशियों के दामन भीगे भीगे से हैं
हम खुश हैं पर संजीदे से हैं
चेहरे पर हँसी गई नही पर
आँखों से अश्क़ टपकता है ...
थोड़ा दर्द तो चलता है ...

वो बोले शाम चुरा कर ला
हाथों पर नूर उठा कर ला
तू ला दे चाँद सितारे ये
सावन में घुले नज़ारे ये
जिनपर मन रोज बहकता है ...
थोड़ा दर्द तो चलता है ...

तुमसे पहले मै गुम था
अब हम हैं तब तुम था
पर चले गए उसे छोड़ के तन्हा
जो तेरे लिए मासुम था
ये दिल को नही जँचता है ...
थोड़ा दर्द तो चलता है ...

बहके दिन थे बहकी रात कई
ज़िंदा है इस दिल में बात कई
तू भूल गया तेरी फिदरत
मेरी यादों मे है तेरा साथ कई
जब यादों का फूल महकता है ...
थोड़ा दर्द तो चलता है ...

कविराज तरुण

Sunday, 18 October 2015

हुनर सीख लिया

दर्द में भी मुस्कुराने का हुनर सीख लिया ,
झूठी उम्मीदों में दिल को बहलाने का हुनर सीख लिया ।
ना गवार सी उनके चले जाने की हर वजह ,
पर दरवाजों से कुंडी हटाने का हुनर सीख लिया ।
उनका ख्वाबों में दस्तक देने का सिलसिला  थमा नही ,
तो हमने आँखों को न सुलाने का हुनर सीख लिया ।
कहते हैं सच्चा प्यार किस्मत वालों को नसीब होता है ,
हमने अपने हाथों से लकीरें मिटाने का हुनर सीख लिया ।

कविराज तरुण

Thursday, 1 October 2015

आरक्षण

आरक्षण

तम का पर्याय हूँ मै
एक अधूरा अध्याय हूँ मै
किसी की दुआओं मे शामिल
किसी के दिल की हाय हूँ मै ।

समझना मुश्किल शायद है मुझको
भ्रम भ्रांतियों का एक निकाय हूँ मै
किसी के लिए बेमतलब की चीज
किसी के प्रयोजन का उपाय हूँ मै ।

साख के टूटे पत्तो की कतरन
कभी साध्य तो कभी सहाय हूँ मै
किसी के लिए विफलता का सूचक
किसी के सफलता की आशायें हूँ मै ।

संगोष्ठियों में कभी चर्चा का कारण
कभी मौन प्रस्तुति की आय हूँ मै
कभी व्यक्ति साधारण सी एक छवि
किसी के लिए कभी सम्प्रदाय हूँ मै ।

आभापटल से मुखरित एकल ध्वनि मै
कभी प्रलय तो कभी सर्वजन हिताय हूँ मै
विधी मे प्रस्तावित मै एक विकल्प
या फिर भूलवश एक अन्याय हूँ मै ।

अकारण हूँ या स्वार्थ इसमे निहित है
कुंठित जगत की बनाई संकाय हूँ मै
तम का पर्याय हूँ मै
एक अधूरा अध्याय हूँ मै ।

कविराज तरुण