Tuesday, 22 March 2016

होली 2016

तेरे रंग मे ही खुद को रंग लूँ
तेरी यादों को मै अपने संग लूँ ।
दो चुटकी गुलाल की लाली
तेरे माथे पर आजा मै भर दूँ ।

तेरे नयनों का नीला अम्बर
अधरों पर आभास गुलाबी
श्वेत वर्ण की अनुपम रचना
संदेह मात्र भी नही खराबी

हर रंग छुआ मेरे चित्तपटल ने
इन प्यार के रंगों से मै दंग हूँ ।
बिन तेरे होली कैसे होगी अब
भीतर ही भीतर इस बात से तंग हूँ ।

तेरे रंग मे ही खुद को रंग लूँ ।
तेरी यादों को मै अपने संग लूँ ।।

कविराज तरुण

Sunday, 6 March 2016

विजय स्वर

विजय-स्वर

मत रोको ... उड़ने दो ।
सपनों को ... दीवानों को ।
पथ पर पत्थर पड़ने दो ,
आने दो तूफानों को ।

माना असहज मन का कोना
माना अनीति का वार प्रबल
माना तम का है अनंत द्वार
पर इन आँखों मे है ज्वाल प्रजल
माना विस्मित अल्हड़ गान
माना कुंठित है स्वाभिमान
माना प्रश्नों के तीर अनंत
भीतर बैठे हैं जो नर भुजंग
है विष में इनके शक्ति अपार
माना डसने को खड़े तैयार
पर सत्य को कैसा भ्रांतिमान
वीरों की धरती आसमान

मत चौको ... बढ़ने दो ।
उम्मीदों को ... अरमानों को ।
शूल को थोड़ा चुभने दो ।
जलने दो परवानों को ।

कविराज तरुण