Monday, 27 June 2016

उत्थान

रचना - उत्थान

हो संस्कृति का उत्थान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻
देशप्रेम का गान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻

क्यों निजहित की छंद चौपाई तुझको भाय रही है ।
पुरुषार्थ की पाई पाई तुझे खटाय गई है ।

हो मानवता का संज्ञान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻
सभ्य आचरण ज्ञान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻

क्यों धर्म-द्वेष की खाई तुझको लुभाय रही है ।
सब जीव हैं भाई भाई तुझे भुलाय गई है ।

हो स्नेहमिलन का प्रावधान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻
हर धर्म का हो सम्मान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻

✍🏻कविराज तरुण

जन्नत की तस्वीर

रचना
जन्नत की तस्वीर
💜🌸❤🌸💚🌸💛🌸❤
उसकी आँखों में जन्नत की तस्वीर देख ली
बंद हथेली में छुपी अपनी तकदीर देख ली

वो बोलती रही ... इश्क़ मुनासिब नही
इसतरह छुप के मिलना भी ... वाजिब नही
छोड़ कर वो गई ... अब मिलेंगे नही
गुल मोहब्बत के यक़ीनन ... खिलेंगे नही

पर जाते जाते उसके लफ़्ज़ों में पीर देख ली
उसके चेहरे पर उदासी की लकीर देख ली

उसकी आँखों में जन्नत की तस्वीर देख ली
बंद हथेली में छुपी अपनी तकदीर देख ली

✍🏻कविराज तरुण

Friday, 24 June 2016

रूप घनाक्षरी मानसून

रचना क्रमांक 🅾2⃣
रूप घनाक्षरी का प्रयास
16-16 पर यति , अंत में गुरु-लघु

विषय - मानसून

गर्मी से झुलस गये नही कटे अब जून ।
हरदिल करे पुकार आ जाओ मानसून ।।
रात सुहानी ओझल है सूरज देता भून ।
देरी करके मत कर अरमानों का खून ।।
आँखें मेघा राह निहारे आसमान है सून ।
वर्षा बूँदों को तरसे मुरझाये से प्रसून ।।
गर्मी से झुलस गये नही कटे अब जून ।
हरदिल करे पुकार आ जाओ मानसून ।।

✍🏻कविराज तरुण

Thursday, 23 June 2016

कुंडलियां - पलायन

कुंडलियां

गीत विरह के बंद कर , गा खुशियों के गान ।
फूल सोहते शाख पर , मत तोड़ो श्रीमान ।
मत तोड़ो श्रीमान , अर्ज है इतनी मोरी ।
प्रेम डोर रे बाँध , सभी को एकहै डोरी ।
कहै तरुण कविराज , सीख फूलों सँग रह के ।
खुशियों की दो तान , छोड़ के गीत विरह के ।

✍🏻 कविराज तरुण

ग़ज़ल -ओ रे शहज़ादी

ग़ज़ल - ओ रे शहज़ादी

अपने शीश महल में मुझको इतनी सलामी दे ।
शहज़ादी बन जाओ तुम बेशक मुझे अपनी गुलामी दे ।
मिलना और बिछुड़ना खुदा के रहमोकरम पर है...
मै तुझको याद आऊँ बस इतनी सी कहानी दे ।

अपने शीश महल में मुझको इतनी सलामी दे ।
शहज़ादी बन जाओ तुम बेशक मुझे अपनी गुलामी दे ।।

नही मुमकिन है तुमसे दूर रहना ओ रे शहज़ादी ।
तड़पते दिल की है तूही राहत ओ रे शहज़ादी ।
मै तुझको प्यार करता हूँ खुद से भी कहीं ज्यादा ।
नमाज-ए-अर्ज़ मेरी तू इबादत ओ रे शहज़ादी ।

तू मुझको रूह-ए-अज़मत की ज़रा कोई निशानी दे ।
दिल गुलज़ार हो जाए जो तू वादा ज़ुबानी दे ।
नज़र भर के निगाहें मोड़ दे मेरी निगाहों को ...
ख़ार से चाँद बन जाऊँ जो रहमत बे-नियामी दे ।

अपने शीशमहल में मुझको इतनी सलामी दे ।
शहज़ादी बन जाओ तुम बेशक मुझे अपनी गुलामी दे ।।

✍🏻कविराज तरुण

Tuesday, 21 June 2016

कुंडलिया - काया

विषय-काया
छंद- कुंडलियां
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
काया मायामोह है , मन का रूप अपार ।
दीनन की पीड़ा मिटे , ऐसा कर उपकार ।।
ऐसा कर उपकार , कि ये दुनिया याद करे ।
नाम तेरा जीवित , ये मरण के बाद करे ।
कहे तरुण कविराज , यही है जग की माया ।
बाहर से न देखो , भीतर बेहतर काया ।।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

✍🏻कविराज तरुण

योग कलाधर छंद

बड़े प्रयास के बाद कलाधर छंद में लिखी रचना 🙏🏻
वर्ण गणना व मात्रा भार

2121212121212121= 16 वर्ण व 24 मात्रा
212121212121212 = 15 वर्ण व 23 मात्रा

रचना विषय - योग🏃🏻🏃🏻🏃🏻

पीड़िता पुकारती शरीर शोध कामनाय ।
जिंदगी बिगाड़ती उपासना सही नही ।।

भोर को उठो निरा समाज बोध भावनाय ।
योग के समान कोई साधना बनी नही ।।

छोड़ नींद खाब प्रीत योग ही सही उपाय ।
योग हो विचार भोग वासना सही नही ।।

रोग वामपंथ है नही कभी सुखी हिताय ।
योग भागवंत सी अराधना बनी नही ।।

✍🏻 कविराज तरुण

योगाहास्य

रचना 02 विषय योग
हास्य

योग का बुखार चढ़ा जबसे अर्धांगिनी को
कान्हा की जगह घर मे रामदेव हो गए ।
सुबह सुबह सिंह आसन का ऐसा रूप धरा
जिह्वा - आँख देखकर मेरे प्राण खो गए ।
जल्दी उठाकर मुझे आसन कराने लगी
स्वप्न लोक के दर्शन अब दुर्लभ हो गए ।
जोर जोर हँसती है मुझे हँसने को कहे
लबालब आँसुओं मे मेरे नैन रो गए ।
धनुर् मृग मयूर कपाल भारती अनुलोम विलोम
शवासन करते करते हम फिर से सो गए ।
योग का बुखार चढ़ा जबसे अर्धांगिनी को
कान्हा की जगह घर मे रामदेव हो गए ।

✍🏻कविराज तरुण

Monday, 20 June 2016

लुप्त होता वेद

रचना 01

तरुण एक यही खेद है
विचारो से लुप्त होता वेद है ।

वेदों ने दिए हमें संस्कार
सिखाया जनमानस का सत्कार
खोल दिए सत्य के द्वार
दिखाया प्रकृति का उपकार

तरुण कलुषित मन के मेघ हैं
विचारों से लुप्त होता वेद है ।

वेदों में ज्ञान के कोष अपार
जीवन का अतुलित संसार
कर्म काण्ड का विस्तार
मुक्ति मार्ग भव सागर पार

तरुण बाधित परहित के वेग हैं
विचारों से लुप्त होता वेद है ।

✍🏻कविराज तरुण

कौमी एकता

रचना 02 विषय- कौमी एकता

समस्या का जड़ से , निदान होना चाहिये।
सर्व धर्म सम्भाव , भान होना चाहिये ।।

धरती को माता बोलो , चाहे तो अम्मी कहो ।
पर अपनी माता का , मान होना चाहिये ।।

हाथ इक गीता दूजी , कुरान होना चाहिये ।
छल द्वेष ईर्ष्या का , दान होना चाहिये ।।

बँट बँट गया क्यों , अपना समाज आज ।
एक सुर में देश का , गान होना चाहिये ।।

भावना संस्कृति की , उदार है माना मैंने ।
देशहित का मगर , ज्ञान होना चाहिये ।।

जब कोई आँख लिए , घूरने लगे है माँ को ।
पग में गिरा उसका , प्रान होना चाहिये ।।

भान होना चाहिये ।
मान होना चाहिये ।
गान होना चाहिये ।
प्रान होना चाहिये ।

✍🏻कविराज तरुण

Saturday, 18 June 2016

मनहरण घनाक्षरी शासन

मनहरण घनाक्षरी 🙏 शासन

चाल यहाँ शासन की , नीतियां प्रशासन की ।
ओजवाले भाषण की , ताल ठोकने लगे ।।
खाली पड़े राशन की , भूखे पेट आसन की ।
ख़ुशी वाले भोजन की , राह खोजने लगे ।।
टीन गिरे आँगन की , पानी भरे नालन की ।
मेघ देख सावन की , छत जोड़ने लगे ।।
आस मन भावन की , दुख के पलायन की ।
सुख क्षण आवन की , बाँट जोहने लगे ।।

✍🏻कविराज तरुण

मनहरण घनाक्षरी - तपन

तपन

आस लिए सावन की , पीड़ा में तन मन की ,
आग सुलगने लगी , मृदुवात पीजिये ।।
प्रीत इन नैनन की , जा रही चिलबन की ,
रात सिमटने लगी , सुप्रभात लीजिये।।
लय मन भावन की , बिखरी है जीवन की ,
राग सिसकने लगी , मीठीबात दीजिये ।।
रीति हटी गायन की , सुर के पलायन की ।
ताल बिदकने लगी , दृगपात  कीजिये।।

✍🏻कविराज तरुण

Monday, 13 June 2016

हेरा फेरी

रचना - हेरा फेरी

हेरा फेरी क्यों करता है
जहाँ देश धर्म की बात
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सब हैं एक ही जात
क्यों कलम से नही अपनी तू
मानवता का पाठ पढ़ाये
हेर फेर करके खबरों को
असहिष्णुता का राग दोहराये
देश की साख वतन की इज्जत
को मत कर यूँ मैला
भारतेंदु ने देश बचाने को था
भरा लेख से थैला
उनका अनुकरण करने में
मत कर तनिक भी देरी
एक बना ये भारत धरती
छोड़ दे हेरा फेरी

✍🏻 कविराज तरुण