Wednesday, 31 May 2017

माँ शारदे वंदन

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शुद्ध पवित्र विचार दीजे
मन में अमृत तार दीजे

वाणी मधुरम चित्त सरगम
भाव में विस्तार दीजे

लेखनी हो सत् समर्पित
सद-आचरण व्यवहार दीजे

हो हृदय नव तरु-मंजरि सा
दल-कमल मुख पर खिले

ये नेत्र देखे बस वहीं
जहाँ सभ्यता आकर मिलें

देह माटी का कलश है
माँ रस सुधा संचार कीजे

वाणी मधुरम चित्त सरगम
भाव में विस्तार दीजे

*कविराज तरुण 'सक्षम'*

Tuesday, 30 May 2017

माँ शारदे वंदना

*माँ शारदे वंदना*

जय जय जय माँ वीणा वाली
अति मोहक छवि और निराली
हंसवाहिनी बुद्धि प्रदात्री
ज्ञानकोष के तिमिर मिटाती

वर दे भर दे नवगुण की थाली
जय जय जय माँ वीणा वाली

है विकार जो मन के द्वारे
माँ तू उनको सहज सुधारे
देवी सुरसा वसुधा भामा
पुंज अलौकिक तेरे नामा

कर दे तर दे ये जीवन खाली
जय जय जय माँ वीणा वाली

सुवासिनी तू विद्यारूपा
महाभुजा हे दिव्य अनूपा
चरण पखारूं शीश झुकाऊँ
तेरे वंदन में सुधि पाऊँ

मिट जायेगी किस्मत काली
जय जय जय माँ वीणा वाली

*कविराज तरुण 'सक्षम'*

Tuesday, 23 May 2017

प्रेमवृष्टि

*प्रेमवृष्टि*

सावन की ओस से बूँद बूँद पानी
बदरा उलास करे भीगती जवानी
मन की लपट अग्नि बड़ी विकराल सी
लोभ द्वेष तृष्णा से भरे हुए ताल सी
बहकती दहकती चले पग पग धरे
वैर भाव क्रोध मद अतिशोषण करे
ऐसे मे प्रेमवृष्टि से भरी हुई बाल्टी
खग-विहग जीव-जंतु के समक्ष उतार दी
भीग के अपार तर तार-तार कोना
मानवता के बिना धिक्कार नर का होना
छोड़ व्यर्थ ताप छोड़ दे मनमानी
सावन की ओस से बूँद बूँद पानी
बदरा उलास करे भीगती जवानी

*कविराज तरुण 'सक्षम'*

Tuesday, 16 May 2017

पिता

*पिता*

निष्ठा की अद्भुत पहचान होता है
घर के लिए वो ही भगवान होता है

काकर पाथर जोड़कर आशियां बनाता है
हर जरुरत पर वही बस याद आता है
होते हैं ये विद्यालय जमाने के लिए
हमारे लिए तो वो ही संस्थान होता है
घर के लिए वो भगवान होता है

बनता है छतरी बारिश की बूंदों में
बन जाता है दीवार तूफ़ान आने पर
अकेले अपने दम पर झेल लेता मुसीबत
परिवार अक्सर आफत से अंजान होता है
घर के लिए वो भगवान होता है

सख्त रहता है बाहर से पर अंदर से मोम
वो निगाहों से कहता है पर दिखता है मौन
बेटी की विदाई में उसका दर्द जान पाया कौन
पानी के छींटों मे आँसू छुपाकर रोता है
घर के लिए वो भगवान होता है

*कविराज तरुण 'सक्षम'*