Friday, 27 October 2017

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तुम मुझे कभी सुलाती नहीं हो
मैं पास आता हूँ तुम पास आती नही हो
ख़फ़ा बहुत हूँ तुमसे ऐ चाँदनी
चंदा को छोड़ कहीं भी जाती नही हो
***
चलो एक ऐसी रोली गाते हैं
आज इस रात को सुलाते हैं
***
वो ज़रा बन जाये दिलवाली
तो अपनी भी मन जाये दिवाली
***
जलाओ दीप कुछ इसतरह यारों
अँधेरा जग में कहीं रह न जाए
शुभ दीपावली
***
अगर ये है मुहब्बत तो मुहब्बत मान लेते हैं ।
चलो कुछ तुम कदम कुछ हम चलें ये ठान लेते हैं ।।
अदायें लाज़िमी हैं हुस्न की चौखट तले आयें ।
हया का तिल सजाकर वो हमेशा जान लेते हैं ।।
मिलावट हो नही पाती करूँ कोशिश भला मै क्यों ।
बिना कत्थे सुपारी के वो' मीठा पान लेते हैं ।।
०-कविराज तरुण-०
***
दुश्वारियां भी हैं ,बेकारियां भी हैं
मुहब्बत कर नही सकते, लाचारियां भी हैं
***
नींद को ख़बर नही है
मेरी आँख है , तेरा घर नही है
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कुछ असर तो तुझे भी होगा
नजरे तुमने भी मिलाई थी

क.त.००१

कान दीवारों के सजग थे
खबर दराजों को भी थी जब तू आई थी

क.त. ००२
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रवाँ हुस्न तेरा फलक का सितारा ।
तरुण जल न पाया जो बुझता दिया है ।।
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जब ख़ामोश हूँ मै
तो होश मे हूँ मै
कुछ बोलूँगा तो राज़ खुल जायेंगे ।
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कभी तकदीर हँसती है कभी तस्वीर हँसती है ।
मै' इनपर भी हँसूँ थोड़ा अगर तू साथ हँसती है ।।
कविराज तरुण
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फर्क पड़ता नही कितने दुश्मन हैं लिफ़ाफ़े मे
कोशिश बस इतनी है दोस्त होते रहे इज़ाफ़े में
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फिर वफ़ा का नूर आया है मुझे
चौक पर उसने बुलाया है मुझे

कविराज तरुण
***
शाम भी रात भी नाम भी बात भी
कुछ न मेरा रहा सब तेरा हो गया

कविराज तरुण
***
की एक सिफारिश और नींद आ गई
ख़्वाब तुमने अबतक मेरा साथ नही छोड़ा

कविराज तरुण
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मत आना छत पर जुल्फ़े संवारने
भीड़ ज्यादा है
बड़ी लंबी कतार है
कविराज तरुण
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आज के इस दौर में अफ़सोस यही होता है
कोई भी घटना हो जाये
जोश बस चार दिन का होता है
#ArrestRyanPinto
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ऐ सूरज बादलों के पार हो जाओ
बारिश की सलाखों में गिरफ्तार हो जाओ
सुप्रभात
कविराज तरुण
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दो चार आँसूं में लिपटकर रो जाऊँगा
याद करूँगा तुझे और सिमटकर सो जाऊँगा
💐शुभरात्रि 💐
कविराज तरुण 9451348935
***
मर गया प्रद्युम्न वो तो पढ़ने गया था
माँ के सपनो में दो कदम बढ़ने गया था
मासूमियत पर किसने चाकू चलाये
स्कूल में कैसे अब कोई जाये
***
कभी कोई , कभी कोई
कभी कोई खुदा से मांग लेता है
दुआ हो तुम कोई इंसान नही हो
कविराज तरुण
***
तुम गुल रहो मै गुलफाम हो जाऊँ
तेरे चौखट पर उतरी इक शाम हो जाऊँ
नही कुछ मांगूँ मै दुआ मे
रहो तुम ख़ास और मै आम हो जाऊँ
***
वो सरेआम लगाते रहे इल्ज़ाम
मैंने वफ़ा में मगर लफ्ज़ नही खोले

कविराज तरुण
***
न दिल न दुआ न जमीन है अबतक
जिंदगी फिरभी बेहतरीन है अबतक
सुप्रभात
कविराज तरुण
***
शायद यही दस्तूर था
उनका जाना एक सच
उनका आना मेरे मन का फितूर था
-कविराज तरुण
***
ख़्वाहिश है ,बारिश है ,मै हूँ और तुम
बंदिश है घरवालों की हुमतुम गुमसुम

कविराज तरुण
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Thursday, 19 October 2017

ग़ज़ल 57 दिवाली

1222 1222 1222 122

दिया बाती अभी से ही जलाने हम लगे हैं ।
दिवाली की कई रौनक लगाने हम लगे हैं ।।

सफेदी से दिवारें जगमगाई रात में भी ।
किवाड़ों को जतन से अब सजाने हम लगे हैं ।।

बढ़ा कुछ इसकदर अब धुंध मौसम खौफ़ मे है ।
पटाखे छोड़कर के गीत गाने हम लगे हैं ।।

मिठाई का रिवाजी पर्व जबसे आ गया है ।
जुबां पे चासनी के घोल लाने हम लगे हैं ।।

तरुण श्रीराम की उस जीत का अभिप्राय है ये ।
ख़ुशी अपनी जताकर फिर बताने हम लगे हैं ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Sunday, 15 October 2017

ग़ज़ल 55 हम लगे हैं

1222 1222 1222 122

तिरे आगोश में राते बिताने हम लगे हैं ।
हसीं सपने खुली आँखें सजाने हम लगे हैं ।।

ख़बर हो जाये' चंदा को यही सब सोचकर हम ।
दुप्पटे को फलक पर अब उड़ाने हम लगे हैं ।।

कभी आओ जमीने शायरी दहलीज पर तुम ।
बिना सोचे पलक अपनी बिछाने हम लगे हैं ।।

असर बस उम्र का है और कुछ भी है नही ये ।
तेरी बाते सनम खुद से छुपाने हम लगे हैं ।।

पिरोया हर्फ़ में हर हुस्न मोती जोड़कर के ।
तरुण के लफ़्ज़ बनकर बुदबुदाने हम लगे हैं ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Saturday, 14 October 2017

ग़ज़ल 54 - जब तुमसे मिलूँगा

1222 122

मै जब तुमसे मिलूँगा ।
लिपटकर रो ही' दूँगा ।।

मुहब्बत बेजुबां है ।
निगाहों से कहूँगा ।।

*मै' जब तुमसे मिलूँगा ...*

हसीं सपना संजोया ।
तिरे दिल में रहूँगा ।।

सफ़र में थाम बाहें ।
सितारों तक चलूँगा ।।

*मै' जब तुमसे मिलूँगा ...*

तू' जादू हुस्न का है ।
हया इसमें भरूँगा ।।

सजाकर मांग तेरी ।
तिरा शौहर बनूँगा ।।

*मै' जब तुमसे मिलूँगा ...*

ख़लिश हो या खता हो ।
तबस्सुम सा दिखूँगा ।।

तरुण की तू खुदाई ।
तिरा सजदा करूँगा ।।

*मै' जब तुमसे मिलूँगा ...*

*कविराज तरुण 'सक्षम'*

Tuesday, 10 October 2017

ग़ज़ल 53 आज़मा लो

1222 122

कदम आगे बढ़ा लो ।
खुदी को आजमा लो ।।

जो' नफ़रत की अगन है ।
उसे अब तो बुझा लो ।।

है' दिल में बेरुखी क्यों ।
हदें सारी हटा लो ।।

नई भाषा मुहब्बत ।
कभी तो गुनगुना लो ।।

अँधेरा कह रहा है ।
डरो मत मुस्कुरा लो ।।

चरागों को उठाकर ।
शमा कोई जला लो ।।

खलिश ऐसी भी' क्या है ।
कि पलकें ही गिरा लो ।।

चले आओ फ़िज़ा मे ।
हमे हमसे चुरा लो ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Wednesday, 4 October 2017

ग़ज़ल 52 प्यार की है

1222 1222 122

अभी दिल मे रवानी प्यार की है ।
अभी बाकी कहानी प्यार की है ।।

चिरागों से कहो जल जाये' अब वो ।
कई हसरत पुरानी प्यार की है ।।

कि गहरी हो चली है चोट दिल की ।
ज़रा देखो निशानी प्यार की है ।।

रवां हैं हुस्न की बारीकियां भी ।
जवां अबतक जवानी प्यार की है ।।

समझ मोती तरुण जो आँख नम है ।
यही अपनी ज़ुबानी प्यार की है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Tuesday, 3 October 2017

ग़ज़ल 51 मै हमेशा

1222 1222 122

रुका था सर झुकाने मै हमेशा ।
कई बातें बताने मै हमेशा ।।

कि तुमने डोर छोड़ी बीच मे ही ।
लगा खुद को मनाने मै हमेशा ।।

उनींदी आँख से सपने हुये गुम ।
चला जब नींद लाने मै हमेशा ।।

तुम्हे समझा मुहब्बत ये खता की ।
न समझा ये कहानी मै हमेशा ।।

जो' रूठे हो तरुण से रूठ जाओ ।
नही आता रिझाने मै हमेशा ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

Monday, 2 October 2017

ग़ज़ल 50 गम में काफ़िया

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किवाड़ों की' उलझन को' हमने जिया है ।।
दरारों को' भीतर से' हमने सिया है ।

फ़कीरी उदासी परेशानियां थी ।
रदीफ़े बहर ग़म मे' ये काफ़िया है ।।

मिला बंदिगी में खुदा का सहारा ।
तभी नाम जीवन ये' उसके किया है ।।

रहम की गुज़ारिश करे भी तो' कैसे ।
ज़हर अपने हाथों से' हमने पिया है ।।

रवाँ हुस्न तेरा फलक का सितारा ।
'तरुण' जल न पाया जो' बुझता दिया है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 49 भगत

122 122 122 122

भगत ये चरण में कदा चाहता है ।
नही और कोई दुआ चाहता है ।।

दुखों की दुपहरी विदा चाहता है ।
किरण में घुली हर अदा चाहता है ।।

कपूरी कहानी नही ज्यादा' दिन की ।
बिखरने से' पहले हवा चाहता है ।।

घने हैं अँधेरे बड़ी मुश्किलें हैं ।
उजाला हो' इतनी दया चाहता है ।।

किधर पुन्य छूटा किधर पाप आया ।
मगर साथ तेरा सदा चाहता है ।।

माँ' अम्बे भवानी कहूँ क्या कहानी ।
'तरुण' खूबसूरत फ़िजा चाहता है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 48 प्रेमी प्रेमिका

संशोधित

प्रतियोगिता हेतु ग़ज़ल
बहर- १२२ १२२ १२२ १२२

प्रेमी-
कभी है मुहब्बत कभी है बगावत ।
बता कैसे' दिल की मिलेगी युं राहत ।।
प्रेमिका-
कभी तुम फरेबी कभी हो हक़ीक़त ।
मिलेगी नही दर्द-ए-दिल को इनायत ।।

प्रेमी-
कभी पास आते कभी दूर जाते ।
अधूरी कहानी अधूरी सी' चाहत ।।
प्रेमिका-
नही तुम रिझाते नही तुम मनाते ।
हैं' बातें पुरानी तुम्हारी नज़ाक़त ।।

प्रेमी-
दिया लेके' खोजो न हमसा मिलेगा ।
शरीफो ने' सीखी है' हमसे शराफ़त ।।
प्रेमिका-
अजी झूठ बोलो न सबको पता है ।
तिरे यार ही मुझको' देते नसीहत ।।

प्रेमी-
नही दोस्त समझो वो' दिल के बुरे हैं ।
रखी जहन मे है अजब ही अदावत ।।
प्रेमिका-
चलो ठीक है मानती तेरी' बातें ।
मगर ध्यान रखना मिले ना शिकायत ।।

प्रेमी-
भरोसा करो मै न तोडूंगा' इसको ।
मिरे दिल की' रानी मै' तेरी रियासत ।।
प्रेमिका-
न अब हो हिमाकत न कोई शरारत ।
बड़े प्यार से हम करेंगे मुहब्बत ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 47 फ़साना है

1222 1222

न समझो तो बहाना है ।
जो' समझो तो फ़साना है ।।

गुले गुलज़ार की चाहत ।
सजोये आबदाना है ।।

खलिश किसको नही मिलती ।
रिवाज़ो में ज़माना है ।।

चलो देखो कुहासे मे ।
अगर इसपार आना है ।।

मुहब्बत बुलबुला जल का ।
इसे तो फूट जाना है ।।

करो कोशिश कभी तुम भी ।
जवानी इक तराना है ।।

नही सुरताल से मतलब ।
अदा से गुनगुनाना है ।।

मिले दुश्वारियां सच है ।
मज़ा फिरभी पुराना है ।।

'तरुण' घायल बहुत ये दिल ।
मगर किस्सा बनाना है ।।

कविराज तरुण सक्षम

ग़ज़ल 46 मन मेरा

1222 1222

दिखे उसको जतन मेरा ।
बड़ा मासूम मन मेरा ।।

दराजो से निहारूँ मै ।
करे कोशिश नयन मेरा ।।

चली आना दुआरे पे ।
नही करना हनन मेरा ।।

सजी है सेज फूलों की ।
सजे जो तू चमन मेरा ।।

मिरी सीरत मिरी चाहत ।
अदम बेशक बदन मेरा ।।

निकलते हर्फ़ दिल भारी ।
तरुण समझो वजन मेरा ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 45 रिश्ते निभाऊँगा


1222 1222

कभी मै सर झुकाउंगा ।
कभी पलकें बिछाऊँगा ।।

हथेली पर सजा रातें ।
फलक पर भी बिठाऊंगा ।।

नही यूँही बना शायर ।
ग़ज़ल तुझपर बनाऊंगा ।।

चली जिस ओर पुरवाई ।
वहाँ तुमको घुमाउंगा ।।

अदब दिल मे मिरे हसरत ।
कई किस्से सुनाऊंगा ।।

तरुण है नाम प्रेमी हूँ ।
सभी रिश्ते निभाऊंगा ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 44 असर देखो

1222 1222

हुआ दिल पर असर देखो ।
मिला तुमको ये' घर देखो ।।

कहाँ जाओ ख़फ़ा हो के ।
बिछी मेरी नज़र देखो ।।

कमल क्यों खिल उठा है ये ।
गुलाबों के अधर देखो ।।

अगर मुमकिन जवानी में ।
निकल मेरा शहर देखो ।।

जुबां से आदमी हूँ मै ।
खुदा अंदर ठहर देखो ।।

मुहब्बत की इनायत है ।
तरुण देखो ब-हर देखो ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 43 दिल टूटा

1222 1222

वफ़ा छूटी ये' दिल रूठा ।
सनम तुमने बहुत लूटा ।।

करी कोशिश सदा मैंने ।
मिला बस दर्द मन टूटा ।।

बढ़े बेशक कदम तेरे ।
मगर मेरा ही' दर छूटा ।।

खुदा नाराज़ था मुझसे ।
मिला जो सच वही झूठा ।।

तरुण लो सीख अब इससे ।
गुबारा प्यार का फूटा ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

ग़ज़ल 42 कसम से


1222 1222 122

चलो चल दे बहारों में कसम से ।
हो' अपना घर सितारों में कसम से ।।

नही वो बात आती है अकेले ।
मुहब्बत के दुआरों में कसम से ।।

तपिश हो साँस में औ रूह प्यासी ।
मज़ा है तब शरारों में कसम से ।।

बता कर दिल्लगी की है तो' क्या है ।
समझ लेना इशारों में कसम से ।।

तुम्हे मालूम पड़ जाये हक़ीक़त ।
ज़रा देखो दरारों में कसम से ।।

भँवर के बीच आओ और जानो ।
नही मोती किनारों में कसम से ।।

तरुण तेरी ख़बर मिलती नही कुछ ।
चुना है किन दिवारों में कसम से ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'