Tuesday, 20 November 2018

ग़ज़ल - कुछ भी नही

ग़ज़ल - कुछ भी नही

2122 2122 2122 212

छोड़कर तेरी गली अब आसरा कुछ भी नही
मौत से इस जिंदगी का फासला कुछ भी नही

खामखाँ ही आँख में सपने सजाये बारहा
ये कहाँ मालूम था होगा भला कुछ भी नही

वो बड़ा खुदगर्ज था जो दिल हुआ ये गमजदा
धड़कनें अपनी बनाकर दे गया कुछ भी नही

हम कसीदे प्यार के पढ़ते रहे ये उम्रभर
वो शिकायत ये करें हमने किया कुछ भी नही

डूबना था हाय किस्मत रोकता मै क्या भला
कागजी सी नाँव पर था काफिला कुछ भी नही

चाँद तारे आसमाँ क्या क्या नही छूटा तरुण
एक तेरे छूटने से है बचा कुछ भी नही

कविराज तरुण

Monday, 12 November 2018

दर्द भरी शायरी पार्ट 2

बहते पानी मे तेरी यादें बहा आया
ऐसा लगता है मै गंगा नहा आया