Tuesday, 23 July 2019

कतअ 13

221 2121 1221 212

दिल खोल करके आप मुलाकात कीजिये
जो हो सके तो आज सनम बात कीजिये

कहने को और भी हैं कई ख़्वाब दूसरे
मेरी निगाह में भी कभी रात कीजिये

Monday, 22 July 2019

कतअ 12

मुहब्बत के सफर में तुम बड़े बर्बाद बैठे हो
लिए माशूक की फिरसे पुरानी याद बैठे हो
खुदा भी जानता है इश्क़ का अंजाम रुसवाई
बताओ किस भरोसे तुम लिए फरियाद बैठे हो

कविराज तरुण

Sunday, 21 July 2019

कतअ 11

हौसलों को आज अपनी औकात दिखाने दो
या तो खुद करीब आओ या मुझे पास आने दो
मुहब्बत करके मुकर जाओगी इतना आसान तो नही
मेरे दिल मे और क्या है आज खुल के दिखाने दो

कविराज तरुण

कतअ 10

हौसलों में दम हो तो उड़ान भी हो जायेगी
जमीं की फलक से पहचान भी हो जायेगी
तुम्हारी काबिलीयत पर हमको यकीं है
ये राह जो कठिन है आसान भी हो जायेगी

कविराज तरुण

Sunday, 14 July 2019

कतअ 9

मशवरा तो दो हो अगर कोई
जागता रहा रातभर कोई

धूप लग रही आज छाँव मे
शाम लग रही दोपहर कोई

कतअ 8

और क्या बाकी बचा तेरे हिसाब मे
अल्फ़ाज़ दफ्न हो रहे मेरी किताब मे
इश्क़ का तोहफा समझ अबतक बचाया जो
बू बगावत की बची अब उस गुलाब मे

कतअ 7

एक तेरी आदत के सिवा
और कोई आदत तो नही
तू मेरी जिम्मेदारी है
तू मेरी चाहत तो नही

अपने हाथों से तुझे
खुद विदा कर आऊँगा
तू सिर्फ हसरत है मेरी
दिल की बगावत तो नही

ग़ज़ल - धूप छाँव

डूबना नही इस बहाव मे
कश्तियाँ गईं धूप छाँव मे

छूटते यहाँ हैं भरम सभी
सोचना ज़रा मोल भाव मे

फिर सफर लिए इक शहर बना
टूटते शजर हैं दूर गाँव मे

बात बात पर कहकशे लगे
क्या दिखा उन्हें हाव-भाव मे

साहिलों को ये कब पता चला
छेद हो गया कैसे नाँव मे

साँस चल रही खैर शुक्रिया
खींचतान है रख-रखाव मे

कौन कह सका आगे हो क्या
जिंदगी रुके किस पड़ाव मे

Saturday, 13 July 2019

कतअ 6

उसे इश्क़ न सही मलाल होने दो
दो चार अपने नाम के सवाल होने दो

कबतक छुपाओगे हाल-ए-दिल मियां
बोल दो जो भी हो बवाल होने दो

कविराज तरुण

ग़ज़ल - आये हैं

क्यों शहरों में झूठे बादल आये हैं
जाने कैसे कैसे पागल आये हैं

हमने तो बस हाथ लगाया था उनको
जाने कैसे इतने घायल आये हैं

हर पल जिनके साथ रही थी मक्कारी
लेकर आँखों मे गंगाजल आये हैं

मै किस मतलब से अब उनको प्यार करूँ
वो अपने मतलब से केवल आये हैं

खेल सियासतदारों का है बस कुर्सी
रैली में कुछ टूटी चप्पल आये हैं

कविराज तरुण

Thursday, 11 July 2019

ग़ज़ल - होने दो

अल्फाज़ो की एक शाम होने दो
एक दूसरे का एहतराम होने दो
वक़्त का क्या है गुजर जायेगा
दो पल ज़रा बैठो आराम होने दो
यूँ मुद्दतों बाद मिली बेमिसाल दोस्ती
अब इसका ऐलान सरेआम होने दो
कुछ खट्टे कुछ मीठे पल बहुत सारे
जरूरी है इनका गुलाम होने दो
यादों के झंरोखो से देख लेंगे तुम्हे
चाहे आगे हो जो भी अंजाम होने दो
मै जानता हूँ नाम कमाना है मुश्किल
हो सके तो खुद को बदनाम होने दो

Tuesday, 2 July 2019

कतअ 5

बारे मे जब भी तुम्हारे सोचता हूँ
फूल कलियों के नजारे सोचता हूँ

नींद का क्या है ये आये या न आये
जागकर ही ख़्वाब सारे सोचता हूँ

कविराज तरुण