Monday, 23 December 2019

ग़ज़ल - बिगड़े हुए हालात

बिगड़े हुए हालात में खुद को बचाईये
बेशर्म होके यूँ नही पत्थर चलाईये

जिसको लगी है चोट वो वर्दी में कौन था
ऐसे नही घर का कोई दीपक बुझाईये

जो जल रहा वो देश है मेरा तुम्हारा भी
अफवाह की इस आग से घर ना जलाईये

इंसानियत है चीज क्या हैवान कौन है
ये आँख पर जो है पड़ा पर्दा हटाईये

जो कर सको तो चैन की बातें तमाम हैं
इस बेतुकी सी बात को अब ना बढाईये

कविराज तरुण

Monday, 16 December 2019

बाकी है

मेरे ख़्वाहिशों का अभी मंजर बाकी है
प्यास ज़ोरों की है और समंदर बाकी है
अभी सबकुछ बाहर नही आया है दोस्त
बहुत कुछ ऐसा भी है जो मेरे अंदर बाकी है

कविराज तरुण

Tuesday, 3 December 2019

नाम की तरह

आओ गुजारे शाम कभी शाम की तरह
करने हैं हमे काम सभी काम की तरह
तेरे रसूख से मेरा लड़ना फिजूल है
होने दो मेरा नाम अभी नाम की तरह

कविराज तरुण