Tuesday, 26 November 2024

दो चार कदम

अपनी हद से आगे निकल के देखते हैं 
और दो चार कदम चल के देखते हैं 

वो कौन है जिसकी मलकियत है मंजिल पर 
आओ उसका चेहरा बदल के देखते हैं

ख़्वाब में अक्सर अपना घर बनाने वालों 
हम ख़्वाब देखते हैं तो महल के देखते हैं

दिल को समझा रखा है किस बात के लिए 
दिलवालों के दिल तो मचल के देखते हैं

क्यों चकाचौंध है तेरे वजूद के इर्द गिर्द 
क्यों लोग तुझे आँखें मल मल के देखते हैं

तुम शमा के जैसे रौशन हो शामियाने में 
हम परवाने तेरी आग में जल के देखते हैं

तेरे इंतज़ार में मै रो भी नही सकता
मेरे कुछ यार मेरी पलकें देखते हैं

अब तो दौलत भी किसी काम की नही
गुड्डे गुड़ियों में फिर से बहल के देखते हैं 

कागज़ की नाँव बनाये ज़माना बीत गया 
बारिश है.. नंगे पाँव टहल के देखते हैं

आतिशबाजी है शोर है हिदायत भी है 
पर बच्चे कहाँ तमाशा संभल के देखते हैं

अपनी हद से आगे निकल के देखते हैं 
और दो चार कदम चल के देखते हैं

मेरे घर के जालों की

मैंने अपने दिल की सुन ली तुमने दुनिया वालों की
तुम क्या जानो कीमत क्या है मेरे घर के जालों की

इन्हें पता है तुमने कैसे ख़्वाब दिखाए रातों में 
इन्हें पता है आशाओं के दीप जले थे बातों में
इन्हें पता तुम खुश कितनी हो जाती थी बरसातों में 
इन्हें पता है चलना फिरना हाथ पकड़कर हाथों में

इन्हें पता है अपनी सारी बातें बीते सालों की
तुम क्या जानो कीमत क्या है मेरे घर के जालों की

पहली दफा जो आई थी तो इन्हें हटाया था मैंने 
चिपक गए थे दीवारों से खूब छुड़ाया था मैंने
पर इनको इन दीवारों से जाने कैसी उल्फत थी 
मुझको तुमसे, इनको दीवारों से बड़ी मुहब्बत थी

तभी उकेरी दीवारों पर तस्वीरें उलझे बालों की
तुम क्या जानो कीमत क्या है मेरे घर के जालों की

इन जालों से कह लेता हूँ जो भी आता है मन में 
दर्द तेरे जाने का सहना सबसे मुश्किल जीवन में 
खुशियाँ लेकर चली गई तुम तबसे घर के आँगन में 
पतझड़ ही पतझड़ है शामिल वर्षा गर्मी सावन में

यही जानते हैं केवल गति क्या है हिय के छालों की 
तुम क्या जानो कीमत क्या है मेरे घर के जालों की

Saturday, 2 November 2024

मिट्टी के दीपक लेते जाना

दीवाली है, घर पर मिट्टी के दीपक लेते जाना 
बिक जायेंगे दीपक तो मिल जायेगा मुझको खाना

क्या तुम बस एलईडी से ही अपना घर चमकओगे 
या फिर मिट्टी के दीपक भी अपने घर ले जाओगे 
सोच समझकर जो भी मन में आये मुझको बतलाना 
दीवाली है, घर पर मिट्टी के दीपक लेते जाना

पिछली दीवाली में भी मै बैठा था इस कोने में 
मेरी सारी रात कटी थी मन ही मन बस रोने में 
इस बार अगर हो पाये तो मुझको ना तुम रुलवाना 
दीवाली है, घर पर मिट्टी के दीपक लेते जाना

उधर लाइट की चमक धमक है इधर बड़ा सन्नाटा है 
दीपक लेकर छत पर जाने में बालक शर्माता है 
उसे कभी तुम दीपक और दीवाली क्या है समझाना 
दीवाली है, घर पर मिट्टी के दीपक लेते जाना

मेरे घर में दीपक हैं पर रौशन कैसे कर दूँ मै 
भूखे हैं बच्चे मेरे पर पेट कहाँ से भर दूँ मै 
उन्हें पता क्या कितना मुश्किल है दीपक का बिक पाना 
दीवाली है, घर पर मिट्टी के दीपक लेते जाना