Sunday, 16 March 2025

ज़िन्दगी कैसी चल रही है

किसी ने पूछा - जिंदगी कैसी कट रही है 
ये कट कहाँ रही है किश्तों में बंट रही है

न दिन का है ठिकाना न रात का पता है 
न दिल में जब्त अपने ज़ज़्बात का पता है
एक दौड़ है ये ऐसी दौड़े ही जा रहे हैं 
हम हसरतों को पीछे छोड़े ही जा रहे हैं 

और मंजिले हैं ऐसी छूते ही हट रही है 
किसी ने पूछा - जिंदगी कैसी कट रही है

पैसे की भूख ऐसी अंधे को जैसे लाठी
क्यों आदमी है भूला ये जिस्म एक माटी 
जिसको खबर नही है क्या मोह क्या है माया 
दिनभर संवारता है वो जिस्म देह काया

पर जिस्म की उमर तो पल पल ही घट रही है 
किसी ने पूछा - जिंदगी कैसी कट रही है

जो लालची है उसको तोहफ़े मिले हुए हैं 
दहशत को कौन रोके जब लब सिले हुए हैं 
जो सत्य का सिपाही सीधा है नेक बंदा 
उसके लिए बना है फाँसी का एक फंदा

उसकी तमाम कोशिश फंदे में घुट रही है 
किसी ने पूछा - जिंदगी कैसी कट रही है

पाने की उसको चाहत खोने का डर अलग है 
उसका गुलाबी चेहरा दुनिया से पर अलग है 
मै छोड़ना भी चाहूँ तो छोड़ कैसे पाऊं 
उसकी गली से खुद को मोड़ कैसे पाऊं 

अपनी जुबां जब वो मेरा नाम रट रही है
किसी ने पूछा - जिंदगी कैसी कट रही है
ये कट कहाँ रही है किश्तों में बंट रही है