अन्तः की बेड़ी में जकड़े ज़ज्बात , बयाँ क्या हालात करेंगे |
किसी और दिन आना तुम , हम मिलकर सारी बात करेंगे ||
जो घाव ह्रदय के अन्दर हैं , न तुम्हे दिखाई देंगे |
ये बोलेंगे तुमसे सबकुछ , पर न तुम्हे सुनाई देंगे |
यथा मौन की प्रथा में रहकर ...
हम इन् आँखों से संवाद करेंगे |
किसी और दिन आना तुम , हम मिलकर सारी बात करेंगे ||
यूं तो बाहर से मै खुश हूँ , रंगरेज दिखाई देता हूँ |
पर अन्दर से व्याकुल मै , मन ही मन सब सहता हूँ |
जब करी कोशिशे बतलाने की ...
रुक गया ना ये आघात करेंगे |
किसी और दिन आना तुम , हम मिलकर सारी बात करेंगे ||
कुछ सपने जो थे अपने , अब दूर गगन के वासी हैं |
कुछ तुम बदलो कुछ हम बदले , सुखमय जीवन के अभिलाषी हैं |
पर अहंकार के रक्षक बनकर ...
हम यूंही सब बर्बाद करेंगे |
किसी और दिन आना तुम , हम मिलकर सारी बात करेंगे ||
मै कहता हूँ तू ही दोषी है , तुम कहती हो मेरी गलती है |
आरोप लगाने की ये प्रवृति , तथाकहित चलती रहती है |
सब भूल के फिर से चलना हो तो ...
हम प्रेम सरित अभ्यास करेंगे |
किसी और दिन आना तुम , हम मिलकर सारी बात करेंगे ||
--- कविराज तरुण
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