शीर्षक - कुमुद वाटिका
मेरी कुमुद वाटिका से, अभी न तुम प्रस्थान करो...
आओ बैठो तनिक प्रिये , थोड़ा सा विश्राम करो ...
ये बाग़ बगीचे और गुलाब , तेरे दर्शन के अभिलाषी हैं
बारिश की ये शीतल बूंदे , तेरे स्पर्श मात्र की प्यासी हैं
मधुवेग पवन के भीतर का, कहता है मेरे कानो में
रोको जाने मत दो तुमको, दो प्रेम पुष्प अरमानो में
इस सांझ की अनुपम बेला का , प्रिये ज़रा सम्मान करो ...
मेरी कुमुद वाटिका से, अभी न तुम प्रस्थान करो...
समय को थोड़ा पीछे लाकर, तुमको आवाज़ लगाता हूँ
वो घंटे बैठे रहना संग संग , सब स्मृति में दोहराता हूँ
वो प्यार की बातें सुन्दर सपने , जब तुम थे बस मेरे अपने
माला तेरे नाम की लेकर , लगता था दिनभर मै जपने
फिरसे आज उन्ही सपनो को , आओ पुनः निर्माण करो ...
मेरी कुमुद वाटिका से, अभी न तुम प्रस्थान करो...
जो हुआ दु: स्वप्न समझकर भूलो, नयी सुबह कल आनी है
जीवन की इस आपा धापी में , जो बीत गया बेमानी है
अम्बर की सौगंध रूपसी , भविष्य हमारा उज्जवल है
तुम भी तो संकल्प करो , ये विश्वास प्रेम का संबल है
बस इसी प्रेम के निकट समर्पित, अपने चारों धाम करो ...
मेरी कुमुद वाटिका से, अभी न तुम प्रस्थान करो...
आओ बैठो तनिक प्रिये , थोड़ा सा विश्राम करो ...
कविराज तरुण 'सक्षम'
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