Monday, 23 December 2019

ग़ज़ल - बिगड़े हुए हालात

बिगड़े हुए हालात में खुद को बचाईये
बेशर्म होके यूँ नही पत्थर चलाईये

जिसको लगी है चोट वो वर्दी में कौन था
ऐसे नही घर का कोई दीपक बुझाईये

जो जल रहा वो देश है मेरा तुम्हारा भी
अफवाह की इस आग से घर ना जलाईये

इंसानियत है चीज क्या हैवान कौन है
ये आँख पर जो है पड़ा पर्दा हटाईये

जो कर सको तो चैन की बातें तमाम हैं
इस बेतुकी सी बात को अब ना बढाईये

कविराज तरुण

Monday, 16 December 2019

बाकी है

मेरे ख़्वाहिशों का अभी मंजर बाकी है
प्यास ज़ोरों की है और समंदर बाकी है
अभी सबकुछ बाहर नही आया है दोस्त
बहुत कुछ ऐसा भी है जो मेरे अंदर बाकी है

कविराज तरुण

Tuesday, 3 December 2019

नाम की तरह

आओ गुजारे शाम कभी शाम की तरह
करने हैं हमे काम सभी काम की तरह
तेरे रसूख से मेरा लड़ना फिजूल है
होने दो मेरा नाम अभी नाम की तरह

कविराज तरुण

Thursday, 7 November 2019

मार्केटिंग

मार्केटिंग

हमारी जिंदगी इतनी भी आसान नही है
ये सच है किसी का इसतरफ ध्यान नही है

खर्चों का आलम ये है कि अपनी ख्वाहिशों का गला दबा देते हैं
और ये आँसूँ हमको भी आते हैं ये अलग बात है हम छुपा लेते हैं

और जिन्हें लगता है कि हम बड़े मौज में हैं
उन्हें क्या पता हम रहते किस खोज में हैं

अंदाजा लगाना हो तो स्वागत है आपका बाज़ार मे
अच्छे अच्छो की नाँव डूब जाती है मँझधार में

लड़को पर ग़ज़ल

हमारी जिंदगी भी इतनी आसान नही है
ये सच है किसी का इसतरफ ध्यान नही है
खर्चों का आलम ये है कि अपनी ख्वाहिशों का गला दबा देते हैं
और ये आँसूँ हमको भी आते हैं ये अलग बात है हम छुपा लेते हैं
धोकेबाज़ फरेबी न जाने क्या क्या नाम मिलते हैं
दारू दवा नही है पर इसी से तो ये ज़ख्म भरते हैं
सुनो तुम भी मेरी तरह किसी के होकर जानो
ये दिल क्या है और दिल्लगी क्या चीज है
एक जमाने से लड़कर अब ये समझ मे आया
खुदखुशी क्या है और खुशी क्या चीज है

Sunday, 3 November 2019

ग़ज़ल- तुम हमारे लिए हम तुम्हारे लिए

ग़ज़ल

तुम हमारे लिए हम तुम्हारे लिए
चाँद जैसे फलक पर सितारे लिए

अश्क़ का मोल क्या उसकी कीमत है क्या
मै छलकता रहा अश्क़ सारे लिए

इसतरह हो रही है हवा गर्द सी
फूल मुरझा रहे अब्र खारे लिए

आ गए आज खुद वो मेरे सामने
लग रहा रेत आई किनारे लिए

बंदिगी में खुदा की मजा आ गया
बन गए जब खुदा तुम हमारे लिए

कविराज तरुण

Thursday, 24 October 2019

कमाल है

ख्वाबों का रंग आजकल क्यों लाल लाल है
चहरे पे तेरी ये हँसी तो बेमिसाल है

ये बेवजह दिखावटी या बात और है
अच्छा ! तुम्हे भी इश्क़ है ये तो कमाल है

कविराज तरुण

छोड़ा मुझे साहब

कुछ इसकदर उस सख्स ने तोड़ा मुझे साहब
पूछो नही किस काम का छोड़ा मुझे साहब
कश्ती भँवर के बीच मे उलझी रही मेरी
इस गर्त में क्यों खामखां मोड़ा मुझे साहब

कविराज तरुण

Wednesday, 23 October 2019

ऐतबार हो जाये

तुम किसी के घर में रहो रात पार हो जाये
तो ऐसे माहौल मे क्या कुछ सवार हो जाये
और कोई बात नही बस ज़रा सी दोस्ती है
इतना अब आसान कहाँ ऐतबार हो जाये

कविराज तरुण

बहुत पहले बहुत पहले

मुझे ये इश्क़ था शायद बहुत पहले बहुत पहले
मेरे दिल की नही थी हद बहुत पहले बहुत पहले
मगर अब हाल ये अपना पता खुद का नही मिलता
हुई ओझल मेरी सरहद बहुत पहले बहुत पहले

कविराज तरुण

Saturday, 14 September 2019

शायर

लगी जो चोट दिल पर तो बड़े घायल हुये शायर
खुशी खुद कर गये कितने दुखी पागल हुये शायर
नही इसपार कश्ती है नही उसपार माँझी है
हुई बारिश शुरू फिरसे सभी बादल हुये शायर

Tuesday, 13 August 2019

वंदे मातरम

वंदे मातरम

देश के वीर जवानों का मतवाला सा ये टोला है
काश्मीर से कन्याकुमारी हरदिल अब ये बोला है
अपना करम अपना धरम
वंदे मातरम वंदे मातरम

धारा तीन सौ सत्तर हट गई काश्मीर की घाटी से
अलख जगी है देशप्रेम की केशर की इस माटी से
उरी और फिर पुलवामा का बदला केवल झाँकी है
थोड़ा सा तुम सब्र करो अभी पिक्चर आनी बाकी है

आतंकवाद की नस्लो पर पड़ गया आग का गोला है
काश्मीर से कन्याकुमारी हरदिल अब ये बोला है
अपना करम अपना धरम
वंदे मातरम वंदे मातरम

एक नही दो बार नही तुम कितनी बारी हारे हो
इतिहास पलटकर देखो तुम बस दहशत के लश्कारे हो
हम दहशतगर्दी का ये नंगा नाच नही चलने देंगे
इस स्वर्ग-सरीखी धरती पर आतंक नही पलने देंगे

अब तेरे छदम इरादों का सब पोल हिन्द ने खोला है
काश्मीर से कन्याकुमारी हरदिल अब ये बोला है
अपना करम अपना धरम
वंदे मातरम वंदे मातरम

कविराज तरुण

Wednesday, 7 August 2019

कतअ 16

तेरी गलियों से गुजरे ज़माना हुआ
इश्क़ तो न हुआ पर फसाना हुआ
'तुमसे बेहतर मिलेगी' -कहा आपने
वाह बहुत खूब ! ये भी बहाना हुआ

Monday, 5 August 2019

कतअ 15

तुम्ही दिन के उजाले में अँधेरी रात करते हो
खिली सी धूप है फिरभी यहाँ बरसात करते हो
मुझे बिल्कुल नही जँचता तेरा अंदाज सच में ये
किसी से भी बयाँ दिल के सभी जज़्बात करते हो

कतअ 14

मेरी उम्मीदों को कुछ तो हौसला दे दो
मेरे हक में भी कभी कोई फैसला दे दो
मै आज़ाद पंक्षी हूँ मगर अब थक चुका हूँ मै
तुम अपने दिल मे छोटा सा मगर एक घोंसला दे दो

Tuesday, 23 July 2019

कतअ 13

221 2121 1221 212

दिल खोल करके आप मुलाकात कीजिये
जो हो सके तो आज सनम बात कीजिये

कहने को और भी हैं कई ख़्वाब दूसरे
मेरी निगाह में भी कभी रात कीजिये

Monday, 22 July 2019

कतअ 12

मुहब्बत के सफर में तुम बड़े बर्बाद बैठे हो
लिए माशूक की फिरसे पुरानी याद बैठे हो
खुदा भी जानता है इश्क़ का अंजाम रुसवाई
बताओ किस भरोसे तुम लिए फरियाद बैठे हो

कविराज तरुण

Sunday, 21 July 2019

कतअ 11

हौसलों को आज अपनी औकात दिखाने दो
या तो खुद करीब आओ या मुझे पास आने दो
मुहब्बत करके मुकर जाओगी इतना आसान तो नही
मेरे दिल मे और क्या है आज खुल के दिखाने दो

कविराज तरुण

कतअ 10

हौसलों में दम हो तो उड़ान भी हो जायेगी
जमीं की फलक से पहचान भी हो जायेगी
तुम्हारी काबिलीयत पर हमको यकीं है
ये राह जो कठिन है आसान भी हो जायेगी

कविराज तरुण

Sunday, 14 July 2019

कतअ 9

मशवरा तो दो हो अगर कोई
जागता रहा रातभर कोई

धूप लग रही आज छाँव मे
शाम लग रही दोपहर कोई

कतअ 8

और क्या बाकी बचा तेरे हिसाब मे
अल्फ़ाज़ दफ्न हो रहे मेरी किताब मे
इश्क़ का तोहफा समझ अबतक बचाया जो
बू बगावत की बची अब उस गुलाब मे

कतअ 7

एक तेरी आदत के सिवा
और कोई आदत तो नही
तू मेरी जिम्मेदारी है
तू मेरी चाहत तो नही

अपने हाथों से तुझे
खुद विदा कर आऊँगा
तू सिर्फ हसरत है मेरी
दिल की बगावत तो नही

ग़ज़ल - धूप छाँव

डूबना नही इस बहाव मे
कश्तियाँ गईं धूप छाँव मे

छूटते यहाँ हैं भरम सभी
सोचना ज़रा मोल भाव मे

फिर सफर लिए इक शहर बना
टूटते शजर हैं दूर गाँव मे

बात बात पर कहकशे लगे
क्या दिखा उन्हें हाव-भाव मे

साहिलों को ये कब पता चला
छेद हो गया कैसे नाँव मे

साँस चल रही खैर शुक्रिया
खींचतान है रख-रखाव मे

कौन कह सका आगे हो क्या
जिंदगी रुके किस पड़ाव मे

Saturday, 13 July 2019

कतअ 6

उसे इश्क़ न सही मलाल होने दो
दो चार अपने नाम के सवाल होने दो

कबतक छुपाओगे हाल-ए-दिल मियां
बोल दो जो भी हो बवाल होने दो

कविराज तरुण

ग़ज़ल - आये हैं

क्यों शहरों में झूठे बादल आये हैं
जाने कैसे कैसे पागल आये हैं

हमने तो बस हाथ लगाया था उनको
जाने कैसे इतने घायल आये हैं

हर पल जिनके साथ रही थी मक्कारी
लेकर आँखों मे गंगाजल आये हैं

मै किस मतलब से अब उनको प्यार करूँ
वो अपने मतलब से केवल आये हैं

खेल सियासतदारों का है बस कुर्सी
रैली में कुछ टूटी चप्पल आये हैं

कविराज तरुण

Thursday, 11 July 2019

ग़ज़ल - होने दो

अल्फाज़ो की एक शाम होने दो
एक दूसरे का एहतराम होने दो
वक़्त का क्या है गुजर जायेगा
दो पल ज़रा बैठो आराम होने दो
यूँ मुद्दतों बाद मिली बेमिसाल दोस्ती
अब इसका ऐलान सरेआम होने दो
कुछ खट्टे कुछ मीठे पल बहुत सारे
जरूरी है इनका गुलाम होने दो
यादों के झंरोखो से देख लेंगे तुम्हे
चाहे आगे हो जो भी अंजाम होने दो
मै जानता हूँ नाम कमाना है मुश्किल
हो सके तो खुद को बदनाम होने दो

Tuesday, 2 July 2019

कतअ 5

बारे मे जब भी तुम्हारे सोचता हूँ
फूल कलियों के नजारे सोचता हूँ

नींद का क्या है ये आये या न आये
जागकर ही ख़्वाब सारे सोचता हूँ

कविराज तरुण

Saturday, 29 June 2019

कतअ 4

मै उड़ना सीख जाऊँगा
हवा जो साथ हो मेरे
दवा की है किसे हसरत
दुआ जो साथ हो मेरे

बुराई ये नही की दिल
लगाया गैर से तुमने
बुराई ये कि बातों में
वफ़ा जो साथ हो मेरे

Sunday, 23 June 2019

कतअ 3

प्यार से दो घड़ी मुस्कुराया करो
तुम कभी सामने जबभी आया करो

ये जरूरी नही जिस्म का हो मिलन
इतना काफी है रूहें मिलाया करो

कविराज तरुण

Saturday, 22 June 2019

कतअ 2

ये दिल हसरतो के सिवा और क्या है
लुटा और क्या है बचा और क्या है

नही और कोई दुआ काम आई
बता दे मुझे अब दवा और क्या है

कविराज तरुण

ग़ज़ल - क्या फायदा

प्यार मजबूर हो तो भी क्या फायदा
वो अगर दूर हो तो भी क्या फायदा

माँग तेरी न हो जो मेरे सामने
हाथ सिंदूर हो तो भी क्या फायदा

जो मेरे दरमियां तेरी ख्वाहिश न हो
लाख मशहूर हो तो भी क्या फायदा

जीतकर तो तुझे जीत मै ना सका
हार मंजूर हो तो भी क्या फायदा

जब करेले से कड़वी हुई जिंदगी
मीठा अंगूर हो तो भी क्या फायदा

कविराज तरुण

कतअ 1

तू इतना हैरान परेशान क्यो है
दिल के मसलों से सावधान क्यो है

नही बताओगे तो क्या पता नही चलेगा
कहाँ की चोट है गहरा निशान क्यो है

कविराज तरुण

Wednesday, 12 June 2019

हाल-ए-दिल सुनाया जाये

सोचता हूँ कुछ हाल-ए-दिल सुनाया जाये
हौले हौले ही सही इन पर्दों को उठाया जाये

ये सफर जिंदगी का तब बेहतर हो जायेगा
रूठे चेहरों को जब फिर से मनाया जाये

जहाँ दरबार लगा हो उल्फ़त के मारों का
बहुत जरूरी है वहाँ हमको बुलाया जाये

ये मेरा शौक ही शायद मेरी अदावत है
ख़्वाहिश-ए-दिल कि गुल नया खिलाया जाये

लोग हँसते हैं तो बिल्कुल बुरा नही लगता
बस यही कोशिश कि जम के हँसाया जाये

कविराज तरुण

Tuesday, 11 June 2019

ओये सुन - चल ! अब तू कट ले

तुझे पता है क्या ! तेरी जुल्फों को मै बादल समझता था
जो खुद ही पागल है वो भी मुझे पागल समझता था
तेरे पीछे पीछे मैंने जाने क्या क्या न बर्बाद किया
जब जब मैंने साँस ली बस तुझको ही याद किया
और तू ये कह के चली गई - "जा किसी और से पट ले"
ओये सुन - चल ! अब तू कट ले

बाबू शोना जानू न जाने क्या क्या नाम दिये तुमने
एक गर्लफ्रैंड वाले अबतक सारे काम किये तुमने
मेरे खाने-पीने जगने-सोने की थी फिक्र तुझे कितनी
ऐसा लगता था सिर्फ मेरे लिए ही तू धरती पर बनी
पर मुझे क्या मालूम तुम्हे तो दिल से खेलने की लत है
ओये सुन - चल ! अब तू कट ले

कविराज तरुण

ग़ज़ल - बेहतर है

ग़ज़ल - बेहतर है

ये चिराग मेरी आँखों का नूर हो तो बेहतर है
रंज-ओ-गम तेरे चहरे से दूर हो तो बेहतर है

ये उदासी परेशानियां तुझपर ज़रा भी नही जँचती
तेरी अदाओं में फिर वही गुरूर हो तो बेहतर है

मै नही चाहता कि तुझे इश्क़ का नशा हो
पर थोड़ा बहुत इश्क़ का शुरूर हो तो बेहतर है

जब तुम नही दिखती तो दर्द होता है मुझे
इल्म इस बात का तुझे जरूर हो तो बेहतर है

मुहब्बत का मजा ऐशो-आराम में नही है
इस उल्फत में बदन थक के चूर हो तो बेहतर है

कविराज तरुण

Sunday, 12 May 2019

माँ

माँ

तेरी लोरी जब भी याद आती है माँ
एक ठंडक आँखों मे उतर जाती है माँ
भूल जाता हूँ परेशानियां रंजोगम इस जमाने का
इसतरह तू नींद मे सुलाती है माँ

गोल चपाती में आज भी तेरी सूरत मुझे नजर आती है
हल्की आँच पर उबलती सब्जियाँ
तेरे होने का अहसास दिलाती हैं

जब फालतू में जलता बल्ब कमरे में छूट जाता है
तो तेरी डाँट मुझे सुनाई देती है
दरवाजा खुला है मच्छर आ जायेंगे
ये चिंता अब मुझे रोज रहती है

माँ आज भी जब कभी मै भूखा सोता हूँ
तू सपनों में आकर बहुत गुस्साती है माँ

तेरी लोरी जब भी याद आती है माँ
एक ठंडक आँखों मे उतर जाती है माँ
भूल जाता हूँ परेशानियां रंजोगम इस जमाने का
इसतरह तू नींद मे सुलाती है माँ

कविराज तरुण

Thursday, 9 May 2019

जिजीविषा


घोर कुहासों में छुपकर
जीवन के मरुस्थल में
कहाँ चले हो पथिक अकेले
रुको तनिक विश्राम करो

सत्य प्रकाशित कहाँ स्वार्थ से
वैभव के इस दलदल में
भाव अकिंचन व्यथा अनगिनत
कुछ पल को तो संग्राम करो

जिजीविषा अगर न मन मे
कर्म सिद्ध कैसे जीवन मे
पत्थर के भीतर अंकुर हो
ऐसा कुछ तो काम करो

चाँद चकोरे की अभिलाषा
मौन प्रेम की अतुलित भाषा
विश्वास यदि है मधुर मिलन का
मन के भीतर शाम करो

कविराज तरुण

Sunday, 17 March 2019

हाँ मै भी चौकीदार हूँ

हाँ मै भी चौकीदार हूँ

मै चौकीदार मेरी नियत खराब नही
फालतू की बातों का देता मै जवाब नही
रट जो लगाई तूने राफेल की डील पे
पप्पू जी बात ये गहरी है झील से
देश की सुरक्षा का देता मै हिसाब नही
मै चौकीदार मेरी नियत खराब नही

नोटबन्दी से सुनो बेटा हुआ क्या नया
लोन के मकान का ब्याज है घटा
मेहनत के पैसे सीधे खाते में आते हैं
चोर गद्दार डर के बाहर भाग जाते हैं
कर देने वालों की लिस्ट है बढ़ी
मुद्रा से लोगों की ये हालत सुधरी
हुए मुमकिन अब सोचे जो ख्वाब नही
मै चौकीदार मेरी नियत खराब नही

कविराज तरुण

Thursday, 14 March 2019

कलम के सिपाही

*विषय - कलम के सिपाही*

सरेआम जब चौराहे पर सच ये बिकने लगता है
झूठ का ऐसा वार चले कि सच ये छुपने लगता है
माया के मंतर से ढोंगी गठरी अपनी भरते हैं
लालच तृष्णा चालाकी से मीठी बातें करते हैं

*तब उठता है ज्वार हृदय में मन व्याकुल हो जाता है*
*कलम सिपाही पृष्ठभूमि पर तब एक गीत सुनाता है*

चीरहरण होता है खुलकर जब इस बीच दुपहरी में
कलियां कुचली जाती हैं सामाजिक इस नगरी में
जब नारी की अस्मत पर नजरें ये मंडराती है
इन रश्मों के डर से जब ये सिसकी चुप हो जाती है

*तब उठता है ज्वार हृदय में मन व्याकुल हो जाता है*
*कलम सिपाही पृष्ठभूमि पर तब एक गीत सुनाता है*

रावण को जब रामराज का मालिक कहना पड़ता है
दुश्मन की हर साजिश को जबरन सहना पड़ता है
सत्ता के रखवालों से जब लोकतंत्र हिल जाता है
मान धरम सब बेच के नेता गठबंधन करवाता है

*तब उठता है ज्वार हृदय में मन व्याकुल हो जाता है*
*कलम सिपाही पृष्ठभूमि पर तब एक गीत सुनाता है*

सरहद पर आतंक का नंगा नाच दिखाई देता है
जब एक सैनिक की विधवा का कष्ट सुनाई देता है
सन्नाटों में विरह वेदना तब आवाज लगाती है
सपनों के खंडित होने की चिंता खूब सताती है

*तब उठता है ज्वार हृदय में मन व्याकुल हो जाता है*
*कलम सिपाही पृष्ठभूमि पर तब एक गीत सुनाता है*

कविराज तरुण

Thursday, 28 February 2019

देशप्रेम

देशप्रेम की अलख जगी है
गली गली चौबारे पे
भूल चुके तो याद दिला दूँ
कितनी बारी हारे थे

युद्ध कहो तो कह लो पर ये
बदला वीर जवानों का
अभी कहाँ देखा है तुमने
करतब इन विमानों का

कबर नही खुद पायेगी अब
गोलों में दग जाना होगा
इतनी बारिश होगी बम की
गम पीना बम खाना होगा

तुम्हे बड़ा ही शौक चढ़ा था
आतंकी मंसूबे थे
मानवता को आग लगाने
तुम घाटी में कूदे थे

अब घाटी की माटी से
अंगार बना हथगोला है
तेरे छदम इरादों का अब
पोल हिन्द ने खोला है

थू थू विश्व जगत मे तेरी
हर कोई गरियाता है
फिर भी ओछी हरकत से
तू बाज नही क्यों आता है

पुलवामा के जरिये तूने
मौत को दावत दे दी है
भूल गये बेटा गद्दी पर
बैठा अपना मोदी है

तुमको तो अधिकार नही है
एकपल भी अब जीने का
कहर अभी बरसेगा तुमपर
छप्पन इंची सीने के

कविराज तरुण
9451348935

Tuesday, 26 February 2019

शहीद की पत्नी की व्यथा

हमारे ब्याह की बातें सभी क्या याद हैं शोना
पकड़के हाथ बोला था जुदा हमको नही होना

चले थे सात फेरों में कई सपने सुहागन के
मिला था राम जैसा वर खुले थे भाग्य जीवन के

ख़ुशी के थार पर्वत सा हुआ तन और मन मेरा
मुझे भाया बहुत सच में तुम्हारे प्यार का घेरा

कलाई पर सजा कंगन गले का हार घूँघट भी
समझता अनकही बातें समझता मौन आहट भी

मगर संदेश जब आया हुआ आतंक पुलवामा
थमी साँसे जमी नजरें उठा हर ओर हंगामा

हुआ सिंदूर कोसो दूर मेरा छिन गया सावन
सुनाई दे रही चींखें बड़ा सहमा पड़ा आँगन

बुला पाओ बुला दो जो गया है छोड़ राहों में
सभी यादें सिसक कर रो रही हैं आज बाहों में

तिरंगे में लिपटकर देह आई द्वार पर माना
वतन पर जान दी तुमने मुझे है गर्व रोजाना

कविराज तरुण

Thursday, 21 February 2019

बेटियाँ

विधाता छंद

नही बेबस कहानी का रहीं किरदार बेटियाँ
जहाँ जाती बनाती हैं वहीं परिवार बेटियाँ
पराया धन कहो क्यों तुम यहीं हैं रूप लक्ष्मी का
यही नवरात की देवी यही हैं पर्व दशमी का

पिता की लाडली हैं ये यही माँ का सहारा हैं
यही हैं चाँदनी घर की चमकता सा सितारा हैं
नही घर में अगर बेटी हुआ फिर व्यर्थ जीवन भी
इन्ही के पाँव से आती बहारें और सावन भी

कविराज तरुण

Saturday, 16 February 2019

तुमको वापस आना होगा

मातृभूमि के हे रखवाले ! तुमको वापस आना होगा ।
बूढ़ी माँ के सपनों का , कुछ तो कर्ज चुकाना होगा ।।

लहू बहा है मेरे घर में , मैंने बेटा खोया है ।
आँख से आँसूँ सूख चुके हैं , मन भीतर से रोया है ।
पीड़ित अपनी पीड़ा से , देखो न दुखियारी हूँ ।
बस एक बेटा था जीवन मे , उसको भी अब हारी हूँ ।

इस पीड़ा में मर न जाऊं , क्या खोना क्या पाना होगा ।
मातृभूमि के हे रखवाले ! तुमको वापस आना होगा ।।

मेरे लाल की अर्थी पर , लाल रक्त के छींटें हैं ।
छुट्टी उसकी खत्म हुए , कुछ ही दिन तो बीतें हैं ।
शादी का बोला था उसने , माँ अगली बारी कर लूँगा ।
बहू करेगी सेवा तेरी , और एक प्यारा घर लूँगा ।

नही चाहिए मुझको कुछ भी , पत्थर ही बन जाना होगा ।
मातृभूमि के हे रखवाले ! तुमको वापस आना होगा ।।

वो दानव जो रक्त के प्यासे , सरहद पर इतराते होंगे ।
उनसे कह दो वध करने अब , बेटे मेरे आते होंगे ।
प्रतिशोध भरे तन मन मे काली , माँ का स्वर ललकार उठा ।
शिव का डमरू बजा है रण में , हर बालक हुँकार उठा ।

चुन चुनकर हर दानव को , सबक अभी सिखलाना होगा ।
मातृभूमि के हे रखवाले ! तुमको वापस आना होगा ।।

कविराज तरुण
यूको बैंक
समेशी शाखा -1260