Thursday, 28 September 2023

ग़ज़ल - कलयुग

ग़ज़ल - कलयुग

221 2122 221 212
कल का ग़ुमान मत कर, जो है वो आज है
किसके हवाले कबतक, ये तख़्त-ओ-ताज़ है

अंतिम सफर सभी का होता है एक जैसा
माना अलग तरह का रश्मोरिवाज़ है

हर चीज मे मिलावट हर बात खोखली
कैसे हैं लोग इसके कैसा समाज है

वहशी बना हुआ है जिस दिन से आदमी
उस दिन से जानवर का बदला मिजाज है

कलयुग तुम्हे मुबारक अब रंग-ओ-रोशिनी
फैला जहाँ मे तेरा अब कामकाज है

मतला शेर - मोहब्बत मेरी

दो आँखों में सिमटी है सल्तनत मेरी
यही मक़ाम है मकसद और दौलत मेरी
तमाम किस्सों में क्या ख़ाक बयाबानी है
अभी देखी कहाँ जमाने ने मोहब्बत मेरी 

Friday, 22 September 2023

मतला शेर - कहा ही नही

साथ रहते हुए भी रहा ही नही
आँख में बस गया तो बहा ही नही 
उसकी धड़कन लगातार कहती रही
मुँहजुबानी मगर कुछ कहा ही नही

Thursday, 21 September 2023

लहजा समझता है

मेरी बातों से ज्यादा वो मेरा लहजा समझता है
बड़ा मगरूर है जाने वो खुद को क्या समझता है
मैं इतना ही तो कहता हूं मेरे ख्वाबों में आ जाओ
जरा सी बात का मतलब वो कुछ ज्यादा समझता है

Saturday, 16 September 2023

ग़ज़ल - काश

काश! ऐसा हो किसी दिन लौट आये तू कभी
वक़्त की रुसवाइयों को भूल जाये तू कभी

उन दिनों की याद में हम फिर न सोये रात भर
जागती आँखों को आकर फिर सुलाये तू कभी

तुमने हँसकर बादलों को ऐसे घायल कर दिया
वो बरसते ही रहे के भीग जाये तू कभी

अपने दिल की हसरतों को क्या बतायें आप से
बिन कहे और बिन सुने ही मुस्कुराये तू कभी

जिंदगी भर गीत तेरे ही लिखें मैंने तरुण
काश! ऐसा हो कि इनको गुनगुनाये तू कभी

Friday, 1 September 2023

ग़ज़ल - ताज़ा तरीन है

हर मोड़ पर हैं मुश्किलें फिर भी यकीन है 
अहसास तेरे साथ का ताज़ा तरीन है

जो रुक गया था बीच मे वो तो है ग़मज़दा 
जो साथ तेरे चल पड़ा वो मुतमईन है

मिट्टी के होके कर रहे किस बात का ग़ुमाँ 
कबतक किसी के नाम लिखी ये जमीन है

ये जिंदगी है और इसका है ये फलसफा
दिल की नजर से देखिये तो सब हसीन है

इस उम्र मे सही गलत का सोचना भी क्या
जिस ओर चल पड़े कदम वो बहतरीन है

कविराज तरुण