Tuesday, 5 March 2024

ग़ज़ल - थोड़ा धीरे धीरे

ग़ज़ल - थोड़ा धीरे धीरे || कविराज तरुण || 7007789629

सच को झूठ बताना है और वो भी थोड़ा धीरे-धीरे
दुख में भी मुस्काना है और वो भी थोड़ा धीरे-धीरे

वक़्त लगेगा कहते कहते ज़ख्म मेरा गहराया है
पर मुझको दर्द छुपाना है और वो भी थोड़ा धीरे-धीरे

एक नही दो नही न जाने कितनी बार सताया है 
फिर भी उसे मनाना है और वो भी थोड़ा धीरे-धीरे

इश्तहार में निकला है कल नाम हमारा महफिल से
ये तुमको भी दिखलाना है और वो भी थोड़ा धीरे-धीरे

इक बार इजाजत दो मुझको तो दुनिया तेरे नाम करूँ
ये बातें करते जाना है और वो भी थोड़ा धीरे-धीरे

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