उसकी मासूमियत पर फ़िदा हो गए मेरे अल्फाज़ भी मेरे ज़ज़्बात भी
हम उसे देखकर ये कहाँ खो गए अब कटेगी नही मेरी ये रात भी
अब के मुस्का के तुमने जो देखा मुझे तो मै दिल को भला कैसे समझाऊंगा
मुझको डर है कहीं दिल ना दे दूँ तुम्हें कितने नाजुक हुए मेरे हालात भी
यूँ तो मुश्किल भरा है सफर ये मेरा आप आओगे तो रोशिनी आएगी
गूँज जायेगी ऐसे गली ये मेरी जैसे गलियों में गूंजे ये बारात भी
एक तो तू हसीं उसपे ऐसी अदा उसपे आवाज में मदभरा ये नशा
उसपे मौसम का ये जादुई पैतरा आज हद करने आई है बरसात भी
जबसे लिखने लगा हूँ तुम्हें नज़्म में सब मुबारक मुबारक ही कहने लगे
हो गए हैं रुहानी मेरे शेर भी हो गए हैं रुहानी ये नगमात भी
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