कोई तो रोको ...
मेरी बस्ती जल रही है ।
गाँधी सुभाष भगत सिंह...
हर हस्ती पिघल रही है ।।
इस वतन का कोना-कोना
बना राजनीति का खिलौना
मौन है क्यूँ राजा...
जनता उबल रही है ।
कोई तो रोको ...
मेरी बस्ती जल रही है ।।
हो पंजाब सिंध मराठी
या क्षत्रिय ब्रह्म या भाटी
जाति धरम से हिन्द की...
अब आत्मा बिखल रही है ।
हिमखंडो का हिमालय
बंगाल की या खाड़ी...
पूरब की सरजमीं हो
या फिर हो कन्याकुमारी...
या फिर हो कन्याकुमारी...
विभक्त टुकड़ो में भारती की...
इज्जत उछल रही है ।
और साख इस वतन की ...
देखो फिसल रही है ।।
कोई तो रोको ...
मेरी बस्ती जल रही है ।
गाँधी सुभाष भगत सिंह...
हर हस्ती पिघल रही है ।।
--- कविराज तरुण
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