गीत - उम्मीदों का तारा देखा
काली तम की रेखाओं में , मैंने फिर उजियारा देखा
उम्मीदों का तारा देखा , उम्मीदों का तारा देखा
मेघ गगन पर आच्छादित था , और निशा छाई थी मन मे
प्रेम हृदय में संचित करने , भटक रहा था मै उपवन में
तभी दूर पर्वत पर मैंने , जलता हुआ सितारा देखा
उम्मीदों का तारा देखा , उम्मीदों का तारा देखा
राह कठिन थी पलपल माना , छोर-छोर पर निर-आशा थी
टूट रही थी पतझड़ बनके , जो भी मन में अभिलाषा थी
तभी राह का भेद बताते , मैंने एक इशारा देखा
उम्मीदों का तारा देखा , उम्मीदों का तारा देखा
झूठ बराबर छलक रहा था , कुंठाओं के साथ शहर में
अँधियारे की विकट कालिमा , घिरी हुई थी आठ पहर में
सच का दीप लिए तब हाथों , मैंने हाथ तुम्हारा देखा
उम्मीदों का तारा देखा , उम्मीदों का तारा देखा
आँच नही आ सकती सच पर , उम्र झूठ की क्षणभंगुर है
घोर तमस की परिपाटी पर , बीज सत्य का ही अंकुर है
इसी सत्य के लिए सदा ही , झूठ को मैंने हारा देखा
उम्मीदों का तारा देखा , उम्मीदों का तारा देखा
अंधे एक थपेड़े से ही , दूर हुई थी नाँव हमारी
शून्य हुआ था जलथल जीवन , छाई आँखों में अँधियारी
तभी जोहते बाँट हमारी , मैंने पास किनारा देखा
उम्मीदों का तारा देखा , उम्मीदों का तारा देखा
काली तम की रेखाओं में , मैंने फिर उजियारा देखा
उम्मीदों का तारा देखा , उम्मीदों का तारा देखा
तरुण कुमार सिंह
प्रबंधक
अंचल कार्यालय, लखनऊ
क. सं. - 57228
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