Thursday 7 January 2021

नववर्ष

रश्मियाँ भोर की कल तो आएँगी पर
रात स्वप्निल सुधा सी अमर कर दो
सोच लो ठान लो मन का संज्ञान लो
इस हिमालय से ऊँचा शिखर कर दो

रश्मियाँ भोर की कल तो आएँगी पर
रात स्वप्निल सुधा सी अमर कर दो

प्यार के द्वार पर हिय का दरबार है
आत्म चिंतन से संभव ये उद्गार है
नेत्र की अंजलि में चमक जीत की
बोली भाषा बने यों सहज फूल सी
कि लगे सब तरफ सिर्फ मुस्कान है
ये नया वर्ष आकर्ष मेहमान है

इन विचारों का मन में बसर कर दो
रात स्वप्निल सुधा से अमर कर दो

रश्मियाँ भोर की कल तो आएँगी पर
रात स्वप्निल सुधा सी अमर कर दो

तरुण कुमार सिंह
प्रबंधक
विपणन विभाग
लखनऊ

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