रश्मियाँ भोर की कल तो आएँगी पर
रात स्वप्निल सुधा सी अमर कर दो
सोच लो ठान लो मन का संज्ञान लो
इस हिमालय से ऊँचा शिखर कर दो
रश्मियाँ भोर की कल तो आएँगी पर
रात स्वप्निल सुधा सी अमर कर दो
प्यार के द्वार पर हिय का दरबार है
आत्म चिंतन से संभव ये उद्गार है
नेत्र की अंजलि में चमक जीत की
बोली भाषा बने यों सहज फूल सी
कि लगे सब तरफ सिर्फ मुस्कान है
ये नया वर्ष आकर्ष मेहमान है
इन विचारों का मन में बसर कर दो
रात स्वप्निल सुधा से अमर कर दो
रश्मियाँ भोर की कल तो आएँगी पर
रात स्वप्निल सुधा सी अमर कर दो
तरुण कुमार सिंह
प्रबंधक
विपणन विभाग
लखनऊ
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