जो सदा धरातल पर रहता उसका होता सम्मान सखे
सकल सृष्टि के जीव जंतु करते उसका गुणगान सखे
जो धर्म पर अपने चलता, अत्याचार नहीं स्वीकारेगा
कर्म क्षेत्र में कुछ भी हो, प्रतिकार नहीं स्वीकारेगा
मानवता के बीच कभी, व्यापार नहीं स्वीकारेगा
हां! जब तक जीत नहीं जाता, वो हार नहीं स्वीकारेगा
इन्हीं तत्व से मिला जुला वो बनता है इंसान सखे
जो सदा धरातल पर रहता उसका होता सम्मान सखे
द्वेषभावना लेकर मन में, चिंता का अम्बार लगेगा
इतना दिल पर बोझ पड़ेगा, के जीना दुश्वार लगेगा
सरल नही तू बन पाया तो, कठिन जीत का द्वार लगेगा
मिथ्या बातें मिथ्या जीवन मिथ्या ये संसार लगेगा
लेष मात्र भी अपने अंदर रखना मत अभिमान सखे
जो सदा धरातल पर रहता उसका होता सम्मान सखे
धारण कर लो अपने अंदर, रघुकुल की रघुराई को
रामचरित की मन में अंकित कर लो हर चौपाई को
ऐसे देखो किसी और को, जैसे अपने भाई को
मर्यादा के नाम करो तुम, जीवन की तरुणाई को
तब जाकर तुम कर पाओगे इस जीवन का उत्थान सखे
जो सदा धरातल पर रहता उसका होता सम्मान सखे
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