आह्वान
शोक कैसा आज छाया तिमिर की गहराई में
;
आज स्वयं को खोजता क्यूँ तरुण निज
परछाई में |
कल्पना में खो गया सत्य का स्वरुप
अब क्यूँ ;
रोशिनी दिखती नहीं कोयला हुआ सब रूप
अब क्यूँ ?
रुधिर क्यूँ बन गया है आज पानी ?
क्या यही संताप है तेरी जवानी ??
मै नहीं मय बोलता है चहुओर अब तो
;
विपत्ति ने भी दिए पट खोल अब तो |
रश्मियों को दे दिया है क्यूँ निकाला
;
कृपाण तज क्यों हाथ में है मय का प्याला
?
बन गयी बस मोह की बेबस कहानी ?
क्या यही संताप है तेरी जवानी ??
शूल ने देखा चमन को चाहतों से ;
फूल ये महका अमन की हसरतो से |
बिन शूल के क्या फूल संभव थे बताओ
;
तुम भी बन शूल क्यूँ न मुस्कुराओ
?
शूल के कारण नहीं क्या फूलों की निशानी
?
क्या यही संताप है तेरी जवानी ??
क्षितिज छूने का अरमान धरती ने संजोया
;
बस इसलिए ही पर्वतों का बीज बोया
|
और वो शिखर पर शीश निज ऊँचा किये हैं;
जिसपर गगन ने हाथ अपने रख दिए हैं
|
पर नहीं क्यूँ आरोह सम्मत तेरी क्यूँ
जिंदगानी ?
क्या यही संताप है तेरी जवानी ??
-------- कविराज तरुण
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