Tuesday, 31 March 2020

इतिहास लिखा जायेगा

*इतिहास लिखा जायेगा*

तुम बेतहाशा लोगों को बरगालाओगे हमे मालूम है
झूठी बातें सीना ठोक कर बड़बड़ोगे हमे मालूम है
पर जो सच है वो बड़ी जल्दी लोगों तक पहुंच जायेगा
तब तेरी करतूतों का हर प्रयास लिखा जायेगा
जिन्ना प्रेमियों तुम्हारा पूरा इतिहास लिखा जायेगा

अपनी नफरत की दुकान मोबाइल में समेटकर
छोटे छोटे वीडियो में डर वहम लपेटकर
तुम साजिशों के अंधाधुंध पैतरे आजमाना
हर झूठ को सच है सच है कहके चिल्लाना
इन बेमतलब की दलीलों को बकवास लिखा जायेगा
जिन्ना प्रेमियों तुम्हारा पूरा इतिहास लिखा जायेगा

यूँ तो बातें बोलने का हक जताना
और फिर वो बोलना जो देश के खिलाफ है
कुछ युवाओं को अपने एजेंडे में फँसाकर
इसकदर ज़हर घोलना कौन सा इंसाफ है
मेरी तहरीर में हर लफ्ज़ साफ-साफ लिखा जायेगा
जिन्ना प्रेमियों तुम्हारा पूरा इतिहास लिखा जायेगा

तमाम सहूलियतों के लिए लाइन लगाने वालों
मुफ्त राशन के लिए हर कागज दिखाने वालों
बस देश के नाम पर ही तुम्हे ऐतराज़ है
बड़ी बेशर्मी बे-उसूलों में तुम्हारे कागजात हैं
तुम्हारी इस हरकत पर कुछ न कुछ खास लिखा जायेगा
जिन्ना प्रेमियों तुम्हारा पूरा इतिहास लिखा जायेगा

जिक्र आयेगा जब भी देश विरोधी बयानों का
जिक्र आयेगा जब भी जिन्ना के खानदानों का
तुम जैसों को तब नामुराद कहा जायेगा
तुम्हारी हर सोच को बर्बाद कहा जायेगा
और जो गुलाब में काँटे सजा के बैठो हो
तुम्हारी इस नीयत को मुर्दाबाद कहा जायेगा
कि कुछ लोग ऐसे भी थे जो अफजल के गुण गाते रहे
जिस थाली में खाया खाना उसमे छेद बनाते रहे
कि कुछ लोग ऐसे भी थे जो बसों में आग लगाते रहे जिद में अड़ जाने के बाद
कि कुछ लोग ऐसे भी थे दुनिया को भड़काते रहे अपनों से लड़ जाने के बाद
भूलें नही हैं हम अभी साँपो को कुचलना
भूले नही हैं दुश्मन के सीने पर मूँग दरना
वक़्त आने दो अभी कयामत का
वक़्त आने दो अपनी शामत का
फिर हर दर-ओ-दीवार पर तुम्हारा पाप लिखा जायेगा
जिन्ना प्रेमियों तुम्हारा सारा इतिहास लिखा जायेगा

हम चाँद भी लिखेंगे रात भी लिखेंगे
तुमने जो बिगाड़े वो हालात भी लिखेंगे
धधकती आग में जो ये शहर जल रहा है
उसके साथ हुई हर वारदात भी लिखेंगे
तेरी करतूतों का हर एक प्रयास लिखा जायेगा
जिन्ना प्रेमियों तुम्हारा पूरा इतिहास लिखा जायेगा

देखो तुम किसी खुमारी में मत रहना 
क्या कहते हो ? पेट्रोल बम का तुम्हे शौक है 
बेहतर होगा किसी चिंगारी में मत रहना
गलतफहमी और अफवाह का बाज़ार गर्म है
पर ज्यादा दिन इस होशियारी में मत रहना

तेरे मंसूबो का एकदिन अहसास लिखा जायेगा
जिन्ना प्रेमियों तुम्हारा पूरा इतिहास लिखा जायेगा

कविराज तरुण

Monday, 30 March 2020

ग़ज़ल - जानते हो

अदा जानते हो असर जानते हो
तिजारत के आठों पहर जानते हो

हमी से मुहब्बत हमी से ख़िलाफ़त
बड़े तुम सियासी हुनर जानते हो

हमे भी पता है तेरी हरकतों का
तुम्ही हो नही जो ख़बर जानते हो

कभी फुर्सतों में मुलाकात करना
सुना तुम रकीबों का घर जानते हो

हुये आज फिर लापता उस गली में
न कहना कि सारा शहर जानते हो

कहाँ से शुरू है कहाँ को ख़तम है
बताओ न तुम तो सफर जानते हो

दिले-मुफ़लिसी ने ये पूछा तरुण से
दवा जानते या ज़हर जानते हो


कविराज तरुण

ग़ज़ल - जानते हो

अदा जानते हो असर जानते हो
तिजारत के आठों पहर जानते हो

हमी से मुहब्बत हमी से मुखालत
बड़े तुम सियासी हुनर जानते हो

हमे भी पता है तेरी हरकतों का
तुम्ही हो नही जो ख़बर जानते हो

कभी फुर्सतों में मुलाकात करना
सुना तुम रकीबों का घर जानते हो

किसी मोड़ पर हुस्न से जो मिलो तो
न कहना कि सारा शहर जानते हो

अगर मुफ़लिसी मे मिलो तो बताना
दवा जानते या ज़हर जानते हो

कहाँ से शुरू है कहाँ को ख़तम है
बताओ न तुम तो सफर जानते हो

कि हर शायरी पर दिया दाद तुमने
ज़रा ये बताओ बहर जानते हो

कविराज तरुण

ग़ज़ल - हारा नही है

सफलता का कोई इशारा नही है
अभी वक़्त आया हमारा नही है

कहो ख़्वाहिशों से ज़रा दूर हो लें
भटकते दिलों का सहारा नही है

हुई गर्दिशों में हवा आज ऐसी
कहीं कोई बचने का चारा नही है

मुहाफ़िज़ रकीबों के हों हमनवां जब
तो इन कश्तियों को किनारा नही है

उसे तुम हराने का क्यों सोचते हो
जो अपनों की हरकत से हारा नही है

कविराज तरुण

Tuesday, 24 March 2020

कबतलक ?

कबतलक ??

कबतलक उस शख्स को बदनाम करोगे
कबतलक तुम बेरुखी के काम करोगे

कबतलक विद्रोह के ये स्वर उठाकर झोंक दोगे तुम शहर को आग मे
कबतलक पत्थर चलाकर देश का आँचल रंगोंगे दाग मे
और कितनी बदनुमा ये शाम करोगे
कबतलक उस शख्स को बदनाम करोगे

तुम खुदा की बात करते हो मगर इंसानियत क्या चीज है तुमको पता क्या
मजहबी बातें बताकर बलगलाकर सत्य को ही दूर करने का तरीका
चल रहा है जल रहा देश मेरा
पर मुझे विश्वास है होगा सबेरा
और तेरा झूठ सबके सामने आ जायेगा
ये तमाशा अनशनों का अनसुना रह जायेगा
कबतलक ये शोर खुलेआम करोगे
कबतलक उस शख्स को बदनाम करोगे

तुम देश को खंडित करने के मंसूबे रोज बनाना छोड़ो
भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्लाह गाना छोड़ो
जेएनयू में देश विरोधी नारे यूँ लगवाना छोड़ो
एएमयू में जिन्ना की फोटो पर फूल चढ़ाना छोड़ो
अफजल की बरसी होने पर रोना और चिल्लाना छोड़ो
हमे चाहिए आज़ादी ये फर्जी माँग उठाना छोड़ो

कबतलक शाहीन में संग्राम करोगे
कबतलक ये जुर्म सरे-आम करोगे
कबतलक तुम बेरुखी के काम करोगे
कबतलक उस शख़्स को बदनाम करोगे


कविराज तरुण

Tuesday, 17 March 2020

ग़ज़ल - गहरान होने दो

हौसलों को तुम ज़रा बलवान होने दो
धार पर तलवार की ये जान होने दो

कौन है जो रोक सकता है तेरी किस्मत
तुम लकीरों की ज़रा गहरान होने दो

उंगलियाँ उठने लगी हैं उस खुदा पर जब
तो जरूरी है कहीं शैतान होने दो

जान कर तुमको कभी मै जान ना पाया
हो सके तो तुम मुझे अंजान होने दो

कश्तियाँ मै इस भँवर से पार कर दूँगा
साहिलों से तुम अभी पहचान होने दो

कविराज तरुण

Saturday, 14 March 2020

करो-ना

हाथ जोड़ करके नमस्कार करो-ना
दूर से ही बात-चीत यार करो-ना

देख लो प्रकोप कैसा है जहान में
नॉनवेज का मिलके तिरस्कार करो-ना

वायरस अजीब आया ये वुहान से
फेफड़ों को ब्लॉक करता ये विधान से
फैलता ये वस्तु या किसी सामान से
मात इसको मिलती केवल तापमान से

मात इसको देने पर विचार करो-ना
हाथ जोड़ करके नमस्कार करो-ना

ये हवा में दस मिनट ही जागता रहे
वस्त्र पर मगर खुशी से भागता रहे
धातु पर भी कम नही है इसके आयुक्षण
तीन दिन शिकार ये तलाशता रहे

हैंड वाश दिन में कई बार करो-ना
हाथ जोड़ करके नमस्कार करो-ना
लिख दिया है मैंने तुम प्रचार करो-ना
हाथ जोड़ करके नमस्कार करो-ना

कविराज तरुण

ग़ज़ल - बुला रहा है

वो कौन सिरफिरा है हमको बुला रहा है
बे-फालतू मुसीबत अपनी बढ़ा रहा है

उसको नही पता है अंजाम-ए-इश्क़ शायद
काँटो की तश्करी में शबनम खिला रहा है

हर मोड़ पर मिलेंगे तुमको हजार चहरे
क्यों सामने से आकर यूँ मुस्कुरा रहा है

है प्यार का तजुर्बा कर लो यकीन मेरा
जो दिल से सोचता है वो चोट खा रहा है

ये बात भी अजब है समझायें और कैसे
मै दूर जा रहा हूँ वो पास आ रहा है

कविराज तरुण

Friday, 6 March 2020

अलंकार

दिव्यता का भव्यता का ये सहज प्रचार है
ये अलंकार है ये अलंकार है

भीड़ आई है तमस की सामने तो डर है क्या
सूर्य के हैं पुत्र सारे देह में दिया छुपा

शून्य से शिखर का ये सामरिक विचार है
ये अलंकार है ये अलंकार है

रंग लेके हाथ से ही छाप छोड़ने लगे
पृष्ठ था सपाट वृत्त-चाप छोड़ने लगे
दृश्य को बना अतुल विलाप छोड़ने लगे
ठंड में जमी कलम पे ताप छोड़ने लगे

आधुनिक प्रवेष का ये सौम्य सा सुधार है
ये अलंकार है ये अलंकार है

कविराज तरुण

Thursday, 5 March 2020

ग़ज़ल - कमल

विषय - कमल

कमल के फूल सा सुंदर तुम्हारा आज हो कल हो
कभी दिल चोट न खाये कभी कोई नही छल हो

दुआ बस एक है माँगी खुदा से बंदिगी करके
जहाँ मुश्किल मिले तुमको उसी के सामने हल हो

जो देखें ख़्वाब हैं तुमने सितारों की पनाहों में
निगाहों को हक़ीक़त में मुबारक वो सभी पल हो

ज़रा सी बात पर तुम हौसला क्यों तोड़ते अपना
जरूरी तो नही हरबार मीठा सब्र का फल हो

तेरा लड़ना जरूरी है फलक की आखिरी हद तक
'तरुण' डरने से क्या होगा भले कितने भी बादल हो

कविराज तरुण