रेत में क्यों कोई फूल उगाना चाहे
वैसे ढल जायेंगे जैसे ये जमाना चाहे
बात उम्मीद की सुनने में अच्छी है
अपने हालात भला कौन बताना चाहे
छोड़ के वो तो गया ये तेरा मुकद्दर है
क्या हुआ दिल कहीं और ठिकाना चाहे
हर जुर्म इसी बात पे बढ़ता ही चला जाता है
मै दर्द छुपाना चाहूँ वो जुर्म छुपाना चाहे
रायशुमारी से तेरा कुछ नही होगा
उसको दूंढो जो तेरा बोझ उठाना चाहे
कविराज तरुण
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