Thursday 14 January 2021

ग़ज़ल - निगहबान था

जिसकी सूरत का दिल ये कदरदान था
वो किसी और के दिल का महमान था

ख्वाब उल्फ़त के यूँही बिखर जायेंगे
बात से बेखबर मै तो अनजान था

उसकी हर मुश्किलों में उलझता रहा
मै इन्ही आदतों से परेशान था

हाथ आया नही फूल मुझको कभी
मै बगीचे का कबसे निगहबान था

वो जिसे मै खुदा ही समझता रहा
वो मुसलसल सा बस एक इंसान था

कविराज तरुण

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