शहर की आजकल मेरे हवा खराब है
सुलग रही जमीं फलक ये माहताब है
अभी अभी खबर मिली कहीं गया कोई
अभी अभी दिलों का खौफ़ कामयाब है
जली हुई चिता की आग देख सामने
डरा हुआ सिमट रहा वो आफताब है
मिले अगर खुदा तो पूछ लूँगा मै उसे
तू जिंदगी का ले रहा ये क्या हिसाब है
सवाल जस का तस यही बना हुआ 'तरुण'
वो कौन बेरहम कुचल रहा गुलाब है
कविराज तरुण
Super
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