Thursday 1 July 2021

संशय

शीर्षक - संशय

संशय मन में आ जाने से सबकुछ दूभर हो जाता है
अच्छा खासा व्यक्ति कदम आगे करने से घबराता है

जो भी काम मिले उसको ना कहने की आदत लगती है
सीधी सादी बात उसे तब हिय के भीतर तक चुभती है
लोगों के फिर मानचित्र वो अनायास ही बनवाता है
संशय मन में आ जाने से सबकुछ दूभर हो जाता है

निराधार विषयों पर चिंतन कारण बनता है दुविधा का
मार्ग उसे मुश्किल लगता है फिर चाहे वो हो सुविधा का
आड़ी तिरछी रेखाओं में उलझा अपने को पाता है
संशय मन में आ जाने से सबकुछ दूभर हो जाता है

चित्त व्यथित हो जाता उसका घोर निराशा छा जाती है
मन की पीड़ा उछल उछल कर अश्रु हृदय से बरसाती है
दूर अकेलेपन का कोहरा चित्र भयानक दर्शाता है
संशय मन में आ जाने से सबकुछ दूभर हो जाता है

अच्छा होगा यदि हम केवल कर्मभाव को अपनायेंगे
चिंता शंका वहम छोड़कर मनोयोग से लग जायेंगे
कोशिश करने वाला ही तो अपनी मंजिल को पाता है
संशय मन में आ जाने से सबकुछ दूभर हो जाता है

तरुण कुमार सिंह
प्रबंधक-विपणन विभाग
लखनऊ अंचल

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