Sunday, 27 November 2022

निकल रहा है

कहीं पे जुगनू टहल रहा है
कहीं पे सूरज निकल रहा है

इसी गुमां में बढ़े कदम ये
ज़माना पीछे ही चल रहा है

हटा रहे क्यों ये धूल जाला
इसी से दिल ये बहल रहा है

तुम्हे लगेगा तुम्ही शहंशा
तुम्ही से हर कोई जल रहा है

मगर पता क्या किसे हक़ीक़त 
के ऊंट करवट बदल रहा है

कविराज तरुण

Saturday, 26 November 2022

आने वाला कल होगा

माना थोड़ा वक्त लगेगा पर संकट का हल होगा
आज नही है तेरा तो क्या आने वाला कल होगा

रात में जुगनू चांद सितारे माना कि इतराते हैं
भोर उदय जब होता सूरज ये सारे छुप जाते हैं
पर्वत को सन्नाटे में ही बरबस रहना पड़ता है
आंधी धूप थपेड़ों को भी डटकर सहना पड़ता है

तू जितना सह जायेगा तू उतना और प्रबल होगा
आज नही है तेरा तो क्या आने वाला कल होगा

चींटी इक इक दाना लेकर मीलों लंबा चलती है
हर कठिनाई से लड़कर वो जीवनयापन करती है
पतझड़ में पेड़ों की डाली बिन पाती रह जाती है
पर मौसम आने पर वो ही फूलों से भर जाती है

सही समय आने पर तेरा हर इक काम सफल होगा
आज नही है तेरा तो क्या आने वाला कल होगा

कर्म सिवा कुछ हाथ नही तब चिंता का मोल भला क्या
सत्य नही धारण जिसमे उस व्यक्ति का बोल भला क्या
तुझे पता है तेरी ताकत मात्र यही आवश्यक है 
जीवनपथ पर दौड़ अनवरत सोच यही तू धावक है

जैसी तेरी करन होगी वैसा आगे फल होगा
आज नही है तेरा तो क्या आने वाला कल होगा

Wednesday, 2 November 2022

गजल - हो जायेगा

दो शब्द मीठे बोलने से क्या बुरा हो जायेगा
पर दो दिलों के दरमियां कम फासला हो जायेगा

क्यों नफरतों का बीज फैला है जहां में हरतरफ
ये बीज आगे पेड़ बनकर फिर खड़ा हो जायेगा

ये आग वाला खेल माना दे रहा है मौज भी
पर एकदिन इस आग से ही हादसा हो जायेगा

इस प्यार में जो शक्ति है वो है नही अलगाव में
हां देखिए इस शक्ति से कितना भला हो जायेगा

है कौन किसका सोचने की क्या जरूरत है 'तरुण'
जो ना हुआ अबतक किसी का वो तेरा हो जायेगा