बड़े घरों में ओ रहने वाले, ज़रा सा रहमोकरम दिखाओ
बहुत दिनों तक रहे फलक पे, कभी जमीं पर उतर के आओ
तुम्हे मुहब्बत के इस सफर में, तमाम राहें दिखाई देंगी
के एक दरिया तुम्हे मिलेगा, है पार जाना तो डूब जाओ
कभी समंदर हुई थी आँखें, कभी बहारे चमन हुआ था
कहूं भला क्या मै आज तुमसे, कोई कहानी तुम्ही सुनाओ
तुम्हे मुबारक है शाम शबनम, गुले बहारा तुम्हे मुबारक
हमारे हिस्से में रात काली, ये चांद थाली चलो छुपाओ
जो साथ आये वो दूर हैं अब, यही तो उल्फत मे हो रहा है
बदल सको जो रिवाज़-ए-उल्फत, हमारी महफिल मे पेश आओ
कविराज तरुण
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