1212 1122 1212 22
मेरा ग़ुमान मेरे इश्क़ की जमीं शायद
सज़ा थी एक हसीं और कुछ नही शायद
थी जिसकी प्यास मुझे जो तलाश थी मेरी
उसी के नाम रही उम्र-ए-आशिकी शायद
तेरे मकान से निकला उदासियाँ लेकर
खुदा का शुक्र तेरी आँख भर गई शायद
किसी ने पूछ लिया जो बताओ कैसे हो
बता नही सकते हाल-ए-जिंदगी शायद
कि तेरी हद मे उजाले जवाँ रहे जबतक
किसी ने देखी नही सैल-ए-तीरगी शायद
ये मेरा जिस्म मेरी रूह का तमाशा है
तमाशबीन रही साँस की लड़ी शायद
इसी फिराक मे तस्वीर ले के सोता हूँ
न जाने कब हो कोई शाम आखिरी शायद
कविराज तरुण
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